शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

आठ इकतालिस की लोकल ट्रेन

झगड़ कर मैं घर से निकला ,
वगैर खाए -पिए ,आफिस को ,
अंधेरी स्टेशन ,पहुंचा तो ,
आठ इकतालिस की ट्रेन निकल चुकी ,
अब नौ दो को पकड़ना है ,
तभी अचानक एनाउस हुआ ,
नौ दो की गाडी अब .........,
प्लेटफार्म नंबर एक से जायेगी ,
भीड़ भागी ,एक नंबर पे ,
मैं वहीं खडा ,लगा सोचने ,
ट्रेन आने दो ,पटरी क्रास कर लूँगा ,
ट्रेन आई ,मैं पटरी पे कूदा जाने को ,
एक शोर सुनाई पडा कानों पे ,
ट्रेन ट्रेन -- देख ट्रेन --आ रही ,
पीछे मुड के देखा ...........,
तेजीसे एक ट्रेन ,मुझ से बीस कदम पे ,
अंत आ गया ----मेरा .....,
सभी याद आए ,फ़िर गिर पडा वहीं ,
ट्रेन रुकी ----मैं जिंदा था ,
हाथ -पैर सलामत थे ,
फ़िर होश आया तब ,जब मुझे निकाल कर ,
पब्लिक ने प्लेटफार्म पे लिटाया ,
इसके बाद ,क्या -क्या कहा लोगो ने ,
कह नही सकता ...भर पूर गलियां दी ,
घर आ गया ,बीबी मुझे देख के ,सुबह का गुस्सा अभी था
कहाँ से मुहं ,काला कर के आए हो ?
सच कहता हूँ ,
जी कर था था ,
क्यों बच गया ,
तभी एक फोन आया ,
उसने उठाया ,सुनती रही ,सिर्फ़ सुना ,
मैंने पूछा ,किसका फोन ?
कुछ नहीं बोली .......चुप सिर्फ़ ,
सुबह आफिस के लिए निकला ,
सामने खडी वो मेरे ...बोली ,
कल के लिए मुझे माफ़ करना ,
और रोने लगी ......,