सुबह १५ अगस्त का दिन ,
डरा हुआ , घर से निकला ,
स्वंइन ,स्वइन ,स्वइन ,सब ओर,
सिग्नल पे ,गाड़ी खडी हुई ,
अध्नगा लडका ,बेच रहा तिरंगा ,
डर के कांच नही खोला ,
बाहर से दिखाता रहा तिरंगा ,
सिग्नल खुला , मैं चल दिया ,
आफिस में झंडा फहराया ,
नास्ता पानी चाय चली ,
कुछ घंटों बाद ,वापस घर चला ,
वही सिग्नल ,फ़िर लाल मिला ,
वही लड़का ,
फ़िर भाग के मेरे पास आया ,
इस बार उसने ,हरे रंग का मास्क पहन रखा ,
मैंने कांच खोला ,
ले -लो ,साहब ,सुबह से एक नहीं बिका ,
यह है क्या .....?
मैं पूछ बैठा ......!
आपको नही मालूम ...?
झंडा है ...साहब ,ले लो साहब ,
सुबह से एक नही लेता कोई ,
नही बिका तो ,माँ खाना नहीं देगी ,
साहब ....ले ...लो ,एक लो साहब ,
सिगनल खुला ,उसकी समझ अच्छी लगी ,
सौ रूपया निकाला ....कार चलती रही ,
उसके हाथ में सौ रूपया दिया ,
पाते सौ रूपए ,लडके ने सारे झंडे ,
आसमान में उड़ा दिया ...,
उसके चेहरे की चमक ,
मेरे चेहरे पे आ गयी ,
बहुत सालो बाद ,खुशी का झंडा लहराया ,