९१ कोजी होम ,जी हाँ ......यह किसी फ़िल्मका नाम नहीं है
यह उस जगह का पता है ,जो गुलज़ार साहब का आफिस ,
हुआ करता था । १८ अगस्त को उनका जन्म दिन था ,
अब वो अपने जन्म दिन पे ,इस मुम्बई शहर से दूर कहीं
चले जाते हैं । एक सप्ताह के लिए ,आज भी उनका बँगला
फूलों से भर जाता है .पर वो नहीं होतें हैं ,जब तक वापस आते
हैं । फूल मुरझा जाते हैं ,और नौकर उसे कचरे में फेंक देते हैं ।
फूलों से उनकों अब भी प्यार है ,हो सकता है ,लोगों का झूठा प्यार
जताना अच्छा न लगता हो ? इसीलिए शहर छोड़ के चले जाते हैं ।
मैंने भी ,आज तक नहीं पूछा ,ऐसा वो क्यों करते हैं ? वैसे उन्होंने
एक फ़िल्म आंधी में कहा था , हमारी जिन्दगी ,एक खुली किताब की
तरह होती है ,कोई भी पढ़ लेता है ,जान लेता है । अपना कुछ नही रह
जाता ,अब शायद वो नही चाहते .......... । मै भी उनके जन्म दिन पर
उनके घर गया , घर के मुलाजिम मिले ...उस लिस्ट में अपना नाम लिखा दिया
की मै भी आया था ,सन ७३ से २००९ तक इसी तरह जाता हूँ ,पहले होली
की तरह हुडदंग हुआ करता था । अब नही ......क्यों .....? उम्र हो सकती ....?