गुरुवार, अगस्त 27, 2009

९१ कोजी होम

सन ७६ का दौर था ,मैं डांडा खार रोड पे रहता था ,
हमारा आफिश करीब था ,अक्शर पैदल ही जाता था
तब मुम्बई में ऑटो रिक्शा नही चलता था ,आफिस में
राम सुबह जल्दी आ जाता था ,मै पहुंचता ,उसे मेरे बारे
में मालूम था , की मै इस शहर में अकेला हूँ । आते ही
चाय पिलाता ,घर से लाई चपाती, हम दोनों मिल कर चाय
से खाते । कभी कधार तो गुलज़ार साहब भी ,उससे मांग
लेते थे । गुलज़ार साहब जब आफिस पहुंचते ,डोर बेल ऐसे
बजाते हम लोग समझ जाते वो आ गए । आज भी वैसे ही हुआ
वो अन्दर आए ,और अपने कमरे में चले गये । थोडी देर बाद
राम भी अन्दर पहुंचा । मै मौसम फ़िल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने लगा
दस मिनट के बाद गुलज़ार साहब बाहरआए ,तिपाई पे लेट गये
ऐसा वो कभी नही करते थे ,मैंने झांक के देखा ,वो दर्द से तिलमिला
रहे थे ,मैंने राम को बुलाया ,गुलज़ार साहब कुछ बोल नही रहें थे ,
सिर्फ़ दर्द से कहर रहें थे ,मै भी कुछ समझ नही पा रहा था ,कैसे
क्या करूं ,दर्द उनके सिने में था । राम से कहा ड्राईवर पांडे को बुला
लो , राम नीचे भागा और पाण्डेय को बुला लाया ,पाण्डेय ने जब
साहब को ऐसे देखा ,उसने तुंरत डाक्टर गोखले को फोन किया ,और
साहब को ले कर घर पहुंचा । डाक्टर साहब आए ,उन्होंने चेक किया
इंजेक्शन दिया ,और गैस की बात की । गुलज़ार साहब ने तीन चार दिन
तक आराम किया , अभी कुछ दिन पहले इस घटना के बारे में बताया
तो उनको बिल्कुल याद नही था । लेकिन उनका वो दर्द आज भी मेरे
जेहन में वैसे ही पडा है ।

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

रोचक संस्मरण...आखरी पंक्ति में असली दर्द उभर कर सामने आता है...
नीरज

भंगार ने कहा…

bahut