सोमवार, अगस्त 31, 2009

बेटी

सब से बडी खुशी ,बेटे के होने से होती ,
उदासी से चेहरा ,भर जाता लडकी के आते ,
सब से ज्यादा दुःख बेटे देते ,
अथाह सुख बेटी से मिलता ,
वो दो -दो घरों को सभाँलती ,
बेटे अपने पिता का घर तोड़ के चल देते ,
खून के आसूं बेटे ही देते ,
बेटी अमृत का रस पिलाती ,
बुढापे का सहारा बेटे कभी नही बना ,
बेटी तो अन्तिम संस्कार करने आ जाती ,
फ़िर माँ -बाप बेटे के लिए तरसते हैं क्यों ?
बेटी के कोख में आते ,गंदी नाली से बहा देते ,
सच कहता हूँ ..........;
इसी की सजा -बुढापे में भोगते हैं वो ,

4 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

मैं काफी समय से आपके ब्लॉग को देख रहा हूँ और बेटी के लिए जो प्रयास आप कर रहे है, वह नितांत सराहनीय है ! कृपया अपने इस पुण्य काम को जारी रखे ! देर से ही सही, लेकिन लोग आपकी बात जरूर समझेंगे !!

anuradha srivastav ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना.........

भंगार ने कहा…

hi

Udan Tashtari ने कहा…

बेटी के कोख में आते ,गंदी नाली से बहा देते ,
सच कहता हूँ ..........;
इसी की सजा -बुढापे में भोगते हैं वो ,

-कितनी बड़ी बात कह गये आप!