बुधवार, अगस्त 26, 2009

गिलाफ

कुछ हर्फों का ज्ञान रखता हूँ ,
कुछ अपना पन बुनता हूँ ,
मेरे बुनें गिलाफ ,वो ले जाती ,
शाम होते होते वापस कर जाती ,
अपने हाथों के निशां उस पे दे जाती
रात भर उसके हाथों पे सर रख के सोता ,
माँ मुझे कोसती ,उसका नाम गलियों से भरती ,
आज मेरे लिखे गिलाफ पे किसी और का नाम लिख लाई ,
मुझे दिखा कर मेरा दर्द लगी कुरेदने ,
उस रात ,उसका घर जल गया ,
माँ उसे ले आई ,अपने घर में दिया पनाह ,
अब हर पल साथ रहता हूँ ,
पर एक हिदायत है माँ की ,
दूर रहना इससे ,यह तेरे भाई की अमानत है

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