गुरुवार, सितंबर 10, 2009

परछाई

एक छाँव की तलाश ,टूट गया भागता -भागता ,
साँस ली जब भी राहत की ,दूर किसी के बुलाने से ,,
................स्वप्न कह रहा हूँ ,
आँख की नीद टूट के बिखर गई ,
एक साया मुझ तक आया ,देख कर मेरी नींद को ,
तुम सो रहे हो ,इस कलयुग में जागो -जागो देखो
मैं जग रहा हूँ ,कल को पकड़ने के लिए ,
अब मेरी आंखों में नींद नही रहती ,
बहुत इलाज कराया ,पर बीमारी गई नही ,
सुबह आँख जब खुली ,पत्नी मुझे जगा रही थी ,
शिकायत कर रही थी ,रात भर सोने नही देते ,
क्या -क्या बड़ बड़ करते रहते हो रात भर ,
.......चाय पीते-पीते पूछा ,क्या बड़ बड़ कर रहा था ?
कोई दर्द है , जो मुझ से छिपाते हो ......?

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