सोमवार, सितंबर 14, 2009

कला

दर्द को भुनाना सभी को आता नहीं ,
यह भी एक कला है ...........,
झूठ बोल के माँ की कफन के लिए ,
लोगों से पैसे मांग लेते हैं ,
यह भिखारी ..........,
पेट की आग बुझाने के लिए ,
बेटे बेटी को अँधा लंगडा बना देते ,
शाम होते .....,
नौटांक लगा कर रात रंगीन करते ,
उस रोज गुस्से में डांटा बहुत गुस्से में ,
उस भिखारी को ...,
जिसको मैं जानता था ...,
आज उसने भी पलट के जवाब दिया ,
तुम भी तो यही करते हो ,
दूसरो के दर्द बेचते हो ...!
पत्नी होते , दूसरी औरतों के किस्से लिखते हो ,
क्वांरी लड़कियों के दिल में झांकते हो ,
फ़िर एक गीत की कल्पना करते हो ,
तुम्हारा यह गुनाह मेरे मांगने से क्या कम है ?
दो लाईने लिख के लाखो की मांग करते हो ,
उसकी बातें सुन कर सहम गया ,
लगा सारा मेरा भेद उसको मालूम है ,
अब मैं उस राह से नही जाता ,
एक दिन वो मुझे खोजता -खोजता ,
मेरे घर आ पहुंचा ,देख कर उसे मैं डर गया ,
बोला साहब , आप ने राह क्यों छोड़ दिया ,
आप से तो , कभी -कभी .....उसकी आँखे भर आई ,
मेरी बीबी मुझसे बहुत खफा है ....
उसको मनाने के लिए आप तक आया ,
कल आप उसी राह से आइयेगा .......,

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