जब हम सहायक गुलजार साहब के साथ बैठते ,खाली वक्त में ,
तब वो यादें बताते जब वो विमल राय जी के सहायक थे । और वो
चार बंगले ,वर्सोवा रोड अँधेरी पश्चिम में रहते थे । उस वक्त चार बंगला
में सिर्फ़ चार बंगले थे और एक चर्च ,बंगले तो टूट रहें है । गुलज़ार साहब
उन्ही किसी एक बंगले में रहते थे । चार बंगले में वो चर्च अभी भी है ।
वेर्सोवा रोड से एक पतली सड़क इन बंगलो तक आती थी ,
पास ही समुन्द्र था ,जब हाई टाईड होता था वो सड़क समुन्द्र के पानी में
डूब जाती थी ,तब यह लोग वेर्सोवा रोड पे बैठ कर लो टाईड का इंतजार
करते थे ।
इसी दौर में गुलज़ार साहब के पिता का इंतकाल हो गया ,
और वो दिल्ली में रहते थे ,उनको जाना था ,पैसे भी नही थे ,कैसे जाए
उनकी समझ में नही आ रहा था । माँ तो बचपन में ही गुजर गई थी ,
बेटे को माँ की शक्ल भी याद नही है । मोहन स्टूडियो में उदास बैठे
सोच में खोये ,तभी किसी ने बताया ......तुम्हे बिमल दा बुला रहें हैं
गुलज़ार साहब आफिस में अन्दर पहुंचे "बंगाली लहजे में कहा ,तुम दिल्ली
जाओ तुम्हारा हवाई जहाज का टिकट आ गया । गुलज़ार साहब बताते हैं
दादा बहुत कम बोलते थे । और गुलज़ार साहब दिल्ली पहुंचे .......पिता का
अन्तिम दर्शन पाया यह बताते ...तब तक उनकी आखें भर आई थी ./.हम
सभी चुप हो गये ...तब तक राम चाय ले आया था ...वो शाम हम सभी की बडी
गमगीन रही ...सोचते रहे कितना दुःख उठाया है उन्हों ने अपने जीवन में बहुत
सारी ऐसी बातें हैं जो ......लिखना ठीक नही है ................. ।
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