मंगलवार, सितंबर 15, 2009

९१ काजी होम

भूषणबनमाली गुलज़ार साहब के दोस्तों में एक वो दोस्त थे ,
जो साये की तरह उनके साथ रहते थे । गुलज़ार साहब उन्हें बहुत
प्यार करते ,बहुत इज्जत करते उनकी , ज्यादा तर फिल्मों
में सहायक लेखक होते । जितने दोस्त वो gulzar साहब के होते ,
उतने ही दोस्त हम सहायक के थे । गुलज़ार साहब और हमारे बीच की
कडी की तरह थे ,हम लोगों की कोई तकलीफ ,जो हम गुलज़ार साहब को
सीधे नही कह पाते । हम लोग भूषण जी का सहारा लेते ।
उनकों पढ़ने -लिखने का बहुत शौक था ,किसी विषय के
बारे में कोई जानकारी हासिल करनी हो तो भूषण जी ...........,
वक्त ने एसी करवट ली , एक समय एसा आया ,दोनों
लोगों का आपस में मिलना -जुलना बंद हो गया । भूषण जी अपनी जिन्दगी
में खुश थे ,गुलज़ार साहब अपनी ...... ।
भूषण जी से मैं गाहे -बगाहे मिलता ,वो गुलज़ार साहब का हाल -चाल
पूछते " कैसे हैं भाई" ? वही गुलज़ार साहब का हाल था ।
भूषण जी का काम -काज ठीक -ठाक चल रहा था ,इसी बीच सुना
वो मद्रास चले गये और फ़िर वहाँ से चंडीगढ आ गये । वहाँ उनकी सास
रहती थी । जाडे की सुबह थी ,बागीचे में धूप सेंक रहे थे .....कुछ सोच के
कमरे में सोने चले गये .........फ़िर नहीं उठे ,उनके इस तरह चले जाने से
गुलज़ार साहब को बडी तकलीफ हुई ,एक दोस्त था नराज़ हो कर गया .... ।

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