बुधवार, सितंबर 02, 2009

९१ कोज़ी होम

गुलज़ार साहब मुझे राम लाल कह के बुलाते हैं ,पर मेरा नाम रामलाल नहीं है ।
कई बरसों बाद उनकों मेरा असली नाम मालूम हुआ । कुछ यों हुआ ,मुझे एक
प्रूफ सर्टिफिकेट चाहिये था ,जब मैंने अपना नाम लिखा ,तो कहने लगे ,तुम्हारा
नाम रामलाल नही है ? मैंने हाँ में सर हिलाया ,तो कहने लगे , आज तक तुमने
कहा क्यों नही ? ........सर आप बुलाते थे ,मैं सुनता था । पर यह सही नही है ,
....मैं चुप रहा ,फ़िर कहने लगे ......अब मैं तुम्हारा नाम बदल नही सकता ,और
आज तक वो मुझे इसी नाम से बुलाते हैं , रामलाल की गलती क्यों हुई और कैसे हुई ?
जब मैं पहली बार गुलज़ार साहब से मिला था ,उनको मैंने रामलाल जी की कुछ किताबें
दी थी , और उनके जेहन में कहीं रामलाल रह गया । बस यही वजह है ।
अभी हाल की बात है ,किसी काम से मैं गुलज़ार साहब से मिलने गया था ।
वहाँ पहले से शर्मीला टैगोर जी आईं थी ,मैं उनसे करीब बीस बरसों बाद मिल रहा था ।
मुझे देखते ही , दुसरे पल उन्होंने कहा ,तुम रामलाल हो ,मैंने हाँ में सर हिलाया ,पास ही
गुलज़ार साहब भी थे । उन्होंने हंसते हुए कहा "यह राम लखन है ,रामलाल नहीं ।
मेडम सोच में पड़ गई ,नहीं .........राम लाल है हम सभी लोग हंस पडे ,वो नही समझी ....... ।
कुछ देर बाद गुलज़ार साहब ,ने हकीकत बताया । उन्होंने कहा " हाँ नाम में क्या रखा है ।
कुछ भी बुलाओ सुनने से मतलब है ।

4 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

आपके जिन्दगी के पन्ने से कुछ सुनहरी यादे छिटके बाहर आयी ............यह जानकर अच्छा लगा.....खुबसूरत यादे

Arshia Ali ने कहा…

Sahi kahaa NAAM MEN KYA RAKKHAA HAI.
( Treasurer-S. T. )

ajai ने कहा…

९१ कोजी होम के संस्मरण बहुत
रोचक हैं रामलालजी
क्षमा कीजियेगा
राम लखनजी

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

यादें ज़िन्दगी का सरमाया होती हैं...