दुःख की घडी जब होती है ,तब खुछ लिखा नहीं जाता ,
कुछ दोस्तों ने कहा की किनारा फ़िल्म वाली घटना में
कुछ छिपाया ........जीतेन्द्र जी और भूषण जी में
फ़िल्म को पूरी होने तक सिगरेट नहीं पीने की शर्त
लगी थी , भूषण जी ने शर्त तोड़ दी थी ,पर जीतू जी ने
उसके बाद आज तक सिगरेट नहीं पी ........... ।
इसी फ़िल्म में लीला मिश्रा भी एक किरदार निभा
रहीं थी ,वो पढी -लिखी नहीं थी ,बनारस की थी ,पति के साथ
सन ५० के दौर में बम्बई आयी थी । पति के गुज़र जाने के
बाद बच्चों को पालने के लिए एक्टिंग को चुनना पडा । पर एक बात थी
बडा -से -बडा ऐक्टर उनके सामने जब आता ,उसकी साँस फूलने लगती
वो क्या बोलेंगी किसी को कुछ नहीं मालूम होता ........,
उनकों जब मैं सीन सुनाने जाता ,पहले कहतीं ...एक बार सीन
पूरा पढ़ दो .......हम पढ़ते .....फ़िर एक बार सुनती .......फ़िर कहती
तुम जीतेन्द्र के डायलाग सिर्फ़ बोलना .......फ़िर मौसी जो बोलतीं उसको सुन कर
लेखक भी अपनी लेखनी पे शर्मा जाता ......
यह व्ही मौसी हैं जिन्हें आप ने शोले फ़िल्म में देखा था ,एक कमाल
और मौसी में था ,संवाद बोलते समय जो अपने पल्लू से खेलती थी वह गजब
का होता .......हम से वो अक्सर अवधी में ही बात करती थी ...
एक बात और कहूंगा ;......एसा कोई सगा नही जिसने उन्हें ठगा नहीं
1 टिप्पणी:
परिस्थितवश एक्टिंग की ,लेकिन अच्छी की
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