सोमवार, अक्तूबर 26, 2009

९१ कोजी होम

गुलज़ार साहब की ,अंगूर फ़िल्म की कहानी लिखी जा रही थी ,इस फ़िल्म की
कहानी ....सेक्सपियर के प्ले "कमेडी आफ ऐएयेरस "पर आधारित थी ।
इसी प्ले पे सन ६० के दौर में बिमल राय के बैनर पर " दो दुनी चार "के नाम
फ़िल्म बन चुकी थी ,इस फ़िल्म लेखक और गीत कार गुलज़ार साहब ही थे ।
और निर्देशक देवू सेन जी थे ,जो विमल राय के मुख्य सहायक थे .....और अब
अंगूर फ़िल्म के सहायक लेखक थे ....गुलज़ार साहब निर्देशक और लेखक -गीत कार
भी थे । दो दुनी चार में किशोर कुमार जी और असीत सेन जी थे ......अंगूर फ़िल्म में
संजीव कुमार जी और देवेन व् र्मा जी थे ।
दोनों फिल्में चली .......
अंगूर फ़िल्म के निर्माता जय सिंग जी थे ......जो मुरादाबाद के पास स्येवहारा.........
के रहने वाले थे ........बहुत अच्छे इंसान हैं ........इस फ़िल्म के बाद मिर्जा गालिब सीरयल
भी इन्होने गुलज़ार साहब के साथ बनाया था ....मेरे साथ उनका घर जैसा रिश्ता हो गया ...
मेरे साथ सन २००३ में एक सीरियल बनाया ....जिसक नाम था "देहलीज़ एक मर्यादा "
हमेसा अच्छा व्यवहार काम आता है .........
हाँ तो मैं अंगूर फ़िल्म की बात कर रहा था सन ८४ का दौर था ........मेरी शादी हो चुकी थी
बच्चे भी हो चुके थे ......घर तो अपना था ......पर बच्चों को पालने के लिए पैसों की जरूरत
होती थी ......तभी मैंने एक विडियो कैमरा खरीदा ....जिसकी वजह से मेरा घर चलने लगा
अंगूर फ़िल्म की शूटिंग फिल्मिस्तान स्टूडियो में चल रही थी .....होटल के बाहरी भाग का सेट
लगा हुआ था ........सेट पे कैमरा मैंन लाइट करवा रहे थे ........जिस शाट की लाइट हो रही थी
वह मैंने गुलज़ार साहब के बताई हुई दिशा से ही करा था .........जब गुलज़ार साहब बाहर से आए
और जब देखा फुल लाईट ..मुझ पे गुस्सा गए और कुछ जयादा ही गुस्सा गए ..........मैं मुख्य
सहायक था उस वक्त ........मैं कुछ नही बोल के चुपके से सेट से बाहर हो गया ........गुलज़ार साहब
और सहायक के साथ काम करते रहे ........शूटिंग ख़त्म हुई .......मैं बाहर बैठा था तभी सुंदर गुलज़ार
साहब का डराइवर मेरे पास आया ,और कहने लगा .....आप को साहब बुला रहें है ........मैं कुछ कहता
गुलज़ार साहब ख़ुद आ गए ........और कहने लगे "घर ही जा ही रहे हो ?...चलो मेरे साथ मैं छोड़ देता हूँ
मैं गाड़ी में बैठ गया ......रास्ते में गुलज़ार साहब कहने लगे "राम लाल मुझ से गलती हो गई ,
मुझे यह नही कहना चाहिए था .................यू .......मैं चुप रहा मेरी आँखे आसुंओं से भरी थी ....एक खोमोशी
थी हमारे बीच ....कब मेरा घर आ गया ........मुझे पता नही चला ....चलते -चलते मैंने इतना ही बस कहा
सर मुझे माफ़ कीजियेगा ..........अगर मुझसे कोई ग़लती हुई है ..........
दुसरे दिन मैं सेट पे पहुँचा ........पहले जैसे फ़िर से काम शुरू हो गया .............

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