लिबास फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी ......लखनऊ जहाँ मेरा घर है ,
माँ का फोन आया ..मुझे पुत्र की प्राप्ति हुई २८ जनवरी १९८३ था ...मैं बहुत
खुश था ....मिठाई बांटी ...सीन जो शूट हो रहा था वो राज बब्बर और शबाना आजमी
के साथ था .....सीन कुछ इस तरह था , किचन का नल जिससे थोडा पानी बह रहा था
और शबाना जी उस नल को नौकरानी के साथ मिल कर ठीक कर रहीं थी .......तभी राज
जी घर में आए ......शबाना जी को देख कर ....बोल पडे "आप इधर आएयें ,मैं ठीक कर देता हूँ
यहाँ एक बात ध्यान देने की है .....यह नल असली था और पानी भी सीधे छत की टैंकी .......
से आ रहा था ......मास्टर सीन था ....पूरा सीन करते -करते दोनों कलाकार ..........
भीग गए ......और शबाना जी ने राज बब्बर जी को नसीर का कुरता और पैजामा दिया
यह सीन का आखरी वक्त का परिवर्तन था ......इसी फ़िल्म से राज जी के छोटे भी कुकू बब्बर
ने अपना कैरियर शुरू किया ........सन ९० की बात है .....मेरे पास काम नही था ...एक फ़िल्म
जो बनाई थी ......निर्माता चंचल बक्षी से मेरा पैसे को ले कर झगडा हो गया ....मैंने इस इन्सान
पर बहुत विश्वास किया था .....और मुझे ही धोखा दिया .....पैसे भी नही दिया और नाम भी .....
फ़िल्म रीलीज हुई ......फ्लाप हो गई ...इस फ़िल्म को जापान में शूट किया था ......
काम की तलाश में एक दिन ......राज जी के आफिस में पहुँचा ......अब कुकू बब्बर
निर्माता बन चुके थे .......मैं जब उनसे मिला तो ...कहने लगे ....सहारा कम्पनी टी .वी चैनेल
खोलना चाहते हैं .........पहली बार मैं यही सुमित रॉय से मिला ....राज बब्बर जी कहने से ,मुझे
दो रोटी का सहारा मिल गया ............
3 टिप्पणियां:
लिखते रहिये , अच्छा है
एक सुझाव - कही कही लगता है
की तारतम्य टूट गया ,पहले और बाद की लाइन में
अलग अलग बात होती है |
गुस्ताखी माफ
आप dilchasp लिख रहे हैं .......... agle ank की pratiksha rahegi .........
ek episode men bahut kam baat batate hain...thoda lamba...detail men likhiye...
neeraj
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