सुभाष घई जी के काम करते हुए ,करीब आठ महीने हो चुके थे ....मन नही लग रहा था ।
और राजस्थानी फ़िल्म के निर्माता भी , जिसको करने के लिए मैंने हाँ कह दिया था ,इधर
फ़िल्म कर्मा भी पूरी हो चुकी थी ....और कुकू खन्ना की फ़िल्म उत्तर -दक्षिण भी शुरू हो गई
मुझे इस फ़िल्म में भी मुख्य सहायक का काम करना था ......कुकू खन्ना संगीत कारा उषा खन्ना
के छोटे भाई हैं .......यह फ़िल्म भी शुरू हो गई .......मेरे पास इतना काम आ गया की साल भर के लिए
निश्चिंत हो गया ......
कैसे भी कर के मैं राजस्थानी फ़िल्म करने ,राजस्थान के धनला गाँव गया ....और चौबीस
दिन में पुरी फ़िल्म ...... पूरी की ......इस फ़िल्म में देवेन्द्र खंडेलवाल और प्रीती कटारिया थीं ......यह फ़िल्म सिर्फ़
पैसे के लिए किया था ।
उत्तर -दक्षिण फ़िल्म भी शुरू होने से पहले की एक घटना है पहली बार जब मैं माधुरी दीक्षित
से मिला था .....माधुरी जी बिल्कुल नई थी ......इस से पहले राजश्री की एक फ़िल्म कर चुकी थी कोई इनकों
नही जानता था ....हिन्दोस्तान की इतनी बडी नायिका बनेगी ......हुआ इस तरह .....उस समय मेरे पास विडीयो
कैमरा था ... सुभाष जी ने मुझ से कहा ..कैमरा लाने के लिए .......मैं कैमरा ले कर उनके घर पहुँचा ...माधुरी जी
के लिए ..कुछ ड्रेस बने थे .....उसका ही ट्रायल था .....और उसे विडियो पे शूट कर के देखना था ....माधुरी जी ने वो
ड्रेस पहने और सुभाष जी के साथ उनकों शूट किया ..........सच कहूँ मुझे .....माधुरी जी बिल्कुल अच्छी नहीं लगी
एक तो बहुत दुबली -पतली ......मैं सोचने लगा ....एसा क्या देखा सुभाष जी ने माधुरी में ....? तभी सुभाष जी ......
सुभाष घई हैं .....और मैं .........एक सहायक ॥
उत्तर -दक्षिण की शूटिंग गाने से शुरू हुई ......फिल्मिस्तान स्टूडियो में सेट लगा था ....वही ड्रेस
माधुरी जी ने पहना जिसको सुभाष जी ने विडियो पे शूट किया था ......इस फ़िल्म में जैकी सराफ ...और रजनी कान्त थे ........
....जैकी मुझे पहले से जानते थे ...कर्मा में हम साथ थे .....रजनी कान्त जी से पहली बार मिल रहा था ......
शूटिंग होते -होते एक दोस्त की तरह हो गए थे ......
एक साल गुजर गया ........फ़िर खाली हो गया .....कोई काम नहीं था ....मेरा विडियो कैमरा चल रहा था । फ़िर काम की तलाश शुरू हो गई .........और गुलज़ार साहब से मिले भी सालो -साल हो चुके थे
सुभाष जी ने एक और फ़िल्म शुरू की ....जो अपने भाई आशोक घई के लिए बना रहे थे ..फ़िल्म का
नाम था ......राम लखन ....मैं फ़िर से सुभाष जी का सहायक बनना चाहता था ......अशोक घई मुझसे कहने लगा
अबे सारी जिन्दगी सहायक ही बनेगा .....अब तू डायरेक्टर बन चुका है ना ...हिन्दी न सही राजस्थानी फ़िल्म तो की
...........मैंने उसकी बात ठीक लगी ......बस तब से मैंने सहायक की चादर उतार फेंकी ......
5 टिप्पणियां:
बहुत ही अच्छे लग रहे है आपकी यादे ...........
yaadon ki gaadi chalaate rahiye
आपका ब्लॉग पढ़ा सुन्दर यादे लिखी है आपने शुक्रिया ...लिखते रहे ..
bahut achcha laga aapka sansmaran padh kar....
मेरी रचनाएँ !!!!!!!!!
JEEVAN KI SUNHARI YAADON KO SIMET KER LIKHA AAPKA BLOG ..... BAHOOT ROCHAK HAI ...
एक टिप्पणी भेजें