गुरुवार, नवंबर 19, 2009

९१ कोजी होम

फ़िल्म एक इस तरह का मिडिया है ,जब तक आप काम चल रहा है आप की मार्केट में पूछ है ...अगर काम नहीं है , आप से मिलने वाले आप से दूरी रखना शुरू कर देते हैं ........यह सभी के साथ होता है । कहते है .......... यह लाईन बड़ी कूत्ती

है ,इस लाईन का मतलब आज तक मुझे समझ नहीं आया ।

जब आप का काम चल रहा हो ,तभी आप को काम को खोजना शुरू कर देना चाहिए ,वरना कब तक आप को बेकार बैठना पड़ेगा, आप को मालूम नही । मेरे साथ हमेशा यही ही हुआ है ....जब तक मेरे पास काम है ,मैं काम नहीं खोजता ,कही बेमानी लगती है जो मैं काम कर रहा हूँ उसके साथ ,इस तरह मैं सोचता हूँ ....उस काम के साथ ......यानी मैं वेकार रहा महीनो तक ,रक्खे पैसे कब तक चलता है ,.........घर से बाहर निकला .....एक दोस्त से मिला ....उसने एक आदमी से मिलाया ...जो फ़िल्म एक्टर ......... चाहते हैंऔर
फ़िल्म बनाने के लिए पैसा भी लगायेंगें .......और कहानी भी उनके पास थी ....कहानी बहुत खूबसूरत थी ,
कहानी एक हरिजन की थी ....उसकी जवान बेटी गौने से पहले ही ....पेट से हो गयी है ......अब क्या करे ?


बेटी का कतल कर देना चाहता ,दादी (ललिता पवार ) पोती से पूछती है ........और वो गावं के पंडित के लडके नाम
बताती है ...दादी पंडित के घर जाती है .......और मार खा के घर वापस आती है .....
फ़िल्म को बीस दिन में पूरा करना था ......फ़िल्म में कोई गाना भी नहीं था .......फ़िल्म का लोकेशन ,
मध्य प्रदेश में इटारसी एक जगह है ......वहीं पास में एक गावं है ....वहाँ जा कर पूरा करना था ......

मैं यूनिट ले कर इटारसी पहुँचा ,..........और फ़िल्म डे नाईट कर के फ़िल्म पुरी की फ़िल्म का नाम था

......(नागफनी ) फ़िल्म रिलीज करने की बहुत कोशिश की ......पर रिलीज नहीं हो पाई .......

मेहनत सब बेकार हो गई .......चार से छे महीने इसी फ़िल्म में उलझा रहा .....फ़िर नये काम की तलाश

शुरू होगई .....मेराज साहब के छोटे भाई अशफाक कैमरा सहायक थे .....मेरे पास आए और कहने लगे ......एक

निर्माता जपान से आए हैं ...उन्हें हिन्दी में फ़िल्म बनानी और उनकों कहानी चाहिए ......आप के पास कोई है तो चल कर सुना ......दीजिये ........वह लोग संतूर होटल में ठहरे हैं ......मैंने अशफाक से कहा ,तुम ही उन लोगों से

कल का वक्त ले लो .....और साथ में तुम चलना .......उस शाम मैंने अपनी दो -चार कहानी तैयार की .....

फ़िर कल के इन्तजार में रात बीतने लगी ...........

3 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

डूबते सूरज को कोई पसन्द नही करता फ़िल्म लाईन में, सही है

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आप कहानी कार हैं कहानियां लिखते हैं लेकिन अपने ब्लॉग पर बहुत थोड़े से शब्दों में काम चलाते हैं...ये ना इंसाफी है...इतने छोटे छोटे टुकड़ों में लिखने से पाठक को ताल मेल बिठाने में मुश्किल होती है...कृपया किस्सा थोडा लम्बा लिखें और उसे एक ही पोस्ट में पूरा करें अगर वो बहुत ही अधिक लम्बा न हो तो...

नीरज

Science Bloggers Association ने कहा…

हमें भी कल का इंतजार है।
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सिर पर मंडराता अंतरिक्ष युद्ध का खतरा।
परी कथाओं जैसा है इंटरनेट का यह सफर।