सोमवार, नवंबर 30, 2009

९१ कोजी होम

मैंने जापानी लोगो में ,एक बात देखी ...मेहमान की इज्जत करना कोई उनसे सीखे ....मेहमान की आव -भगत करना........... वो भी किस तरह से करना चाहिए ....,वहीं जा कर जाना । जापान सेक्स फ्री देश है .....वहाँ सडक पे आप को हर तरह की किताबे मिल जाती हैं । शाम होते ही .....इतना रंगीन हो जाता है ...जिसको शब्दों से ब्यान नहीं किया जा सकता है .....
वहाँ जुआ बहुत ज्यादा खेला जाता है ......शराब और सिगरेट खूब पिया जाता है .....यह सब काम वहाँ का माफिया ही चलाता है ......इस माफिया में शामिल होने के लिए ....हर आदमी को अपनी लेफ्ट हाथ की कानी उंगली अपने हाथों से काट के ही कोई शामिल हो सकता है .......इस तरह का सीन हमारी फ़िल्म में भी था .जिसे हमने होंडा शहर में एक बहुत पुराने बंगले फिल्माना था ....हम सभी लोग सुबह ही पहुँच गए ....जैसा जापान में होता है वैसा ही कुछ करने की
कोशिश की गई .....सभी को काला सूट पहनना था ....यही ही वहाँ के माफिया लोगों का ड्रेस है ......एक हाल जिसमे बॉस के बैठने की एक खाश जगह बनी थी .....ठीक उसके सामने वह आदमी था .....जो इनकी संस्था में शामिल होने के लिए अपनी फोर्थ फिंगर को अपने हाथों से काट के .....बॉस को सौंपेगा ......बॉस का आदमी एक चाकू और एक सफेद रुमाल सौपता है ......हम लोगों ने एक नकली कटी हुई उंगली का इंतजाम किया था ......फ़िल्म का यह सीन अच्छी तरहं शूट हो गया ......

मैं अपने जापानी सहायक के साथ ....शूटिंग ख़त्म होने के बाद ,वापस गिफू आ रहा था ,जहाँ हम लोग ठहरे थे ....रास्ते में वह अपने घर ले गया मुझे ...अपनी माँ से मिलाया ...माँ सिर्फ़ जापानी भाषा ही जानती थी .....जो कुछ वह कह रही थी ....वह मुझे अंग्रेजी में समझा रहा था .....उसकी माँ ने मेरे बारे में जानना चाहती है मैं कहाँ का रहने वाला हूँ ? हिदुस्तानी तो हूँ ही ......पर वह शहर के बारे में जानना चाहती है .....मैंने बताया बनारस के पास अकबरपुर नाम की जगह है वहाँ का रहने वाला हूँ ......फ़िर उसकी माँ चुप हो गई ...और कुछ सोचने लगी ......उसने कुछ जापानी में अपने बेटे से कहा ......उसका भी एक हिन्दुस्तानी दोस्त था ....वह सिपाही था ....उसकी मुलाक़ात टोकियो में उससे हुई थी ......चार महीने बाद उसकी एक चिट्ठी आयी थी .....
और उसने लिखा था ....इस जन्म में उससे नहीं मिल पायेगा .....वह औरत पटना का नाम ले रही थी ....मेरे सहायक
ने पूछा कोई पटना जगह है ? मैंने हाँ में जवाब दिया ......फ़िर उसकी माँ ने कहा वह पटना का ही रहने वाला था

बात -चीत करते -करते काफी देर हो चुकी थी ...मैंने खाना भी वहीं खाया ,क्या खिलाया मुझे नहीं मालूम ....सिर्फ़ एक कटोरी चावल था .....बिल्कुल सादा खाना था ...उसकी माँ ने बताया ....उसका दोस्त पंडित था ......मुझ से पूछा
तुम क्या हो ...मैंने खुश हो कर कह दिया ...मैं भी पंड़ित हूँ .....इतना कहते ही उस औरत ने मेरे सामने से एक प्लेट
में कुछ नान -वेज रखा था उठा लिया .....मेरे सहायक ने कुछ कहा अपनी माँ को जिसे मैं नहीं समझ पाया ......
और वह प्लेट फ़िर मेरे सामने कर दी .....फ़िर उसकी माँ ने खींच कर अपनी तरफ़ कर ली ......मेरे सहायक ने मुझ से पूछा ....पंडित लोग सिर्फ़ वेज खाते हैं ?.......मैंने कहा ...हाँ ......यही तो मेरी माँ कह रही थी ...मुझसे ...फ़िर आप क्यों खाते हैं ? मैं चुप हो गया .....मेरे पास कोई जवाब नहीं था ......वहाँ थोड़ी देर और बैठ कर .....हम दोनों वापस
गिफू आ गये .....रात का कोई दो बज रहा था .....
आंखों में नींद नहीं थी ......बार -बार उस जापानी माँका ख्याल आ रहा था ....जिसका पहला प्यार कोई हिदुस्तानी था ....कुछ और नये प्रश्न मन में घूमने लगे ....एक बार फ़िर से मिलने की इच्छा जगी
कल सुबह फ़िर होंडा सिटी जाना था .....सोना तो जरूरी था ......आँखे बंद कर के लेट गया .....और अपने बच्चों के बारे में सोचने लगा .....

सुबह हुई .....आज की शूटिंग का प्रोग्राम देखा ...सारे सहायक मेरे पास आकर बैठ गए उनसे बात -चीत की ....फ़िल्म की हिरोइन का ज्यादा काम हो नहीं रहा था ....हम सिर्फ़ प्रेम जी का ही काम कर रहे
थे .....सारे सहायक कहने लगे ....एक सीन प्रेम जी के साथ है हिरोइन का वह कर लेते हैं ........
हम सभी लोग होंडा सिटी पहुंचे ...पहला सीन की सारी तय्यारी हो गयी थी .....हिरोइन और प्रेम जी के साथ था ......हमारी हिरोइन चाइल्ड आर्टिस्ट थी ......एक्टिंग उसके रग -रग में भरी थी ,बहुत आसानी से सीन हो गया .....यह वह लडकी थी ,जो बचपने में लडकों का किरदार निभाती थी ....उसका नाम है प्रियंका ....
पहली बार सन ९० में मैंने मोबाइल फोन देखा था .....हमारा जापानी सहायक के पास था .....मुझे उस समय यह सब इस तरह का लग रहा था ....जैसे मैं किसी और दुनिया में आ गया हूँ .....डी टी यच का डिस यहीं देखा
उस वक्त पेजर हिन्दुस्तान में आ चुका था .....
माल का कन्सेप्ट यहीं देखा ,जिसमें हमने शूटिंग की .....एक चीज और मैंने यहाँ देखा .....जहाँ हम लोग रहते थे ...वहाँ से रेलवे स्टेशन थोड़ी दूरी पे था ......कुछ लोग बस से जाते थे ....बस में कंडक्टर नाम की चीज
नहीं थी .......कुछ लोग साईकिल से जाते थे .....हर आदमी के पास साईकिल थी ......जिसका प्रयोग कहीं पास जाने के लिए रखते थे ....या तो रेलवे स्टेशन जाने के लिए .....स्टेशन पे एक खाश जगह होती थी जहां लोग अपनी -अपनी सायकिल पार्क करते थे .....यहाँ देखने वाला कोई नहीं था .......शाम होते -होते जब लोग अपने काम से वापस आते .....किसी की भी साईकिल ले कर कोई चला जाता .....जिसकी साईकिल होती वह दुसरे की साईकिल
लेकर चला जाता .......देखा कैसा देश है यह ........एक बार यहाँ आने के बाद ...आप का जी ,यहाँ से जल्दी आने का नहीं होता ......यहाँ की औरते आदमिओं से ज्यादा काम करती हैं .....पर मर्द से प्यार भी बहुत करती हैं ......यूरोप से कहीं ज्यादा एडवांस हैं यहाँ के लोग ............

2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

bahut achchha hai JAPAN ka safar
lekin pooraa likhiyega

नीरज गोस्वामी ने कहा…

इत्तेफाक से मेरा जापान जाना भी तभी याने नब्बे के दशक में शुरू हुआ था और मैं भी वहां के तौर तरीके देख कर बहुत हैरान हो गया था...अब वहां पाश्चात्य सभ्यता का प्रवेश हो चूका है...घर टूट रहे हैं...लोग तनाव में रहते हैं लेकिन कुछ भी हो वहां के लोग गज़ब के हैं...बहुत ही रोचक संस्मरण लगे आपके...लगा जैसे आपके साथ ही जापान घूम रहा हूँ...वाह...लिखते रहें...
नीरज