गुरुवार, दिसंबर 03, 2009

९१ कोजी होम

जापान में रहते हुए करीब एक महीना हो चुका था ,अब घर वालों की याद आने लगी थी । घर वालों से फोन पे बात चीत हो जाती थी ,पत्नी की फरमाईश थी ....लिपस्टिक लाने की और एक किचन नाईफ की ...छोटे बेटे को चलने वाले
इस्पाईडर मैन की .....सारी मांगें मुझे ध्यान में थी ....पर यान नहीं था .....मैंने
पैसे की मांग की ......तो हमारे निर्माता ने यह कह के टाल दिया .....आप को एक साथ दूंगा .....मैं चुप हो गया .....पराये देश में मैंने यह महसूस हो गया
यह निर्माता कुछ ज्यादा होशियार हो गया ......कहते हैं सीधी अंगुली घी नहीं निकलता .....सुबह हुई ....सभी लोग शूटिंग पे जाने के लिए तैयार थे ....लोकेशन एक बहुत बड़ा पार्क था ....जहाँ पे हमें शूटिंग करनी थी ,हम सभी लोग वहाँ पहुंचे शूटिंग शुरू हुई .....पहला शाट होते -होते दो घंटे हो गए ...और सीन भी हीरो के साथ था ...निर्माता चंचल जी शूटिंग में थे ....इस तरह से लेट होते देख कर मेरे पास आए और कहने लगे ,आज इतना देर क्यों हो रही है ....मैंने कहा हीरो साहब शाट ही सही ही नहीं दे रहे हैं ....उसने अपने भाई से कहा .....क्या हो गया आज तुझे ....और दोनों भाई जापानी में बात -चीत करने लगे ......चंचल जी वहाँ से चले गए ....दुसरे पल शाट ओ के हो गया .....मुझे भी कुछ नहीं समझ आया .....अनिल को बुलाया ...करीब की कुर्सी पे बैठने को कहा .....फ़िर पूछा उससे ..आज तुम्हे क्या हो गया ? बार -बार गल्ती .....क्यों कर रहे थे ? अनिल कुछ बोला नहीं ..मैंने फ़िर से पूछा
उसकी आँखे भरी हुई थी ....मुझे लगने लगा ,मैंने.... वगैर बात की मुसीबत ले ली है ...अनिल ने अपने आसुंओं को रोकते हुए पूछा ....अगला शाट क्या है
मैंने उसे समझाया ....सीन क्या कर रहे हो उसको समझो उसको
जानो ...बाहर....से अपना मन हटाओ ....तब तक शाट तैयार हो चुका था ...अनिल ने अगला शाट दिया ......और वह भी बहुत अच्छा ....हम लोग अगले सीन की तैयारी करने लगे ......लंच का टाईम हो चुका था और हमारे निर्माता के होटल से हिन्दुस्तानी खाना भी आ चुका था ....खुला हुआ पार्क था
पर पार्क में एक चिड़िया भी नही थी ....जमीन पे चलने वाली चींटी का भी नामोनिशान नही था ....मैंने इसकी वजह जानने की कोशिश की तो पता चला ...जापान ने इन सब को एक जगह रहने की फिक्स की हुई है ...वहीं पर ही यह सब देखने को मिलेगा ...मुझे यह सब बातें झूठी लगी ......पर उस दिन
के बाद से मैंने गौर करना शुरू किया तो पता चला यह सब बिल्कुल सही है
खाने में पुलाव था । पुलाव हम सभी ने खाया ...मैं अपने जापानी सहायक के साथ बाथरूम की तलाश में निकला ......पास ही जापानी में कुछ लिखा था ..उसके साथ इस्टैर-केस से नीचे....उतरा हम नीचे उतरते जा रहे थे ..पहले सुपर बजार था ...फ़िर नीचे उतरे ...पता चला नीचे रेलवे स्टेशन है ...मैंने फ़िर जापानी सहायक से पूछा ...इसके नीचे भी और कुछ भी है ....वह मुस्कराया और कहने लगा ...नीचे सरकारी आफिस है ....बताने लगा जितना जापान ...जमीन पे बसा है ......उतना ही जमीन के नीचे बसा है ...
मैंने घड़ी देखा आधा घंटा हो चुका था ...फ़िर हम लोग लिफ्ट
से ऊपर आए ....यूनिट के लोग खाना खा चुके थे ,शूटिंग शुरू की हमें सीन में कुछ जापानी लोगों की जरूरत थी ...हीरो के साथ सीन था ....निर्माता ने अपने आफिस में काम करने वाले कर्मचारिओं को ले आए ...इन लोगों को थोड़ी बहुत हिन्दी आती थी .....एक चीज मुझे समझ नहीं आई ....यहाँ के पार्क में जो बैठने की बेंच थी ...उन पर सेक्सी मैगजीन पड़ी थी ....यह किस ने रखा है यह समझ आया ...यह जान बूझ..कर रखी हुई हैं ...मैंने भी एक मैंगजीन उठा कर देखना शुरू किया ...तभी दो जापानी लड़कियां मेरी बेंच पे आ कर बैठ गयी ...मैंने डर के उनकों वहीं पे रख दिया .....और शूटिंग में शामिल हो गया .......अब मेरी समझ में सब आ गया .......शाम तक वहीं शूटिंग करता रहा ....दिन डुबतेही शूटिंग पैकअपहो गया ....निर्माता का भाई
ललित जी मेरे पास आए ....उन्होंने मुझे एक लिफाफा दिया ....और माफ़ी मांगी ,बताया बीस हजार यान है इसमें .....बाद में मुझे पता चला मेरे जापानी सहायक ने अनिल को पैसे की बात बताया था ....और अनिल मेरे बारे में जनता था मैं कैसा इन्सान हूँ .....मेरे चेहरे पे एक चमक आयी पैसा मिलते ही.....जापानी सहायक ने कार निकाली और हम लोग नागोया से युनिमा की
तरफ चल दिया ....पैसा मुझे मिला ...पर मेरा सहायक जापानी बहुत खुश था
मैंने उसके साथ जा कर खरीद -दारीकी ..एक चीज मैंने वहाँ पायी.....मसाज सेंटर बहुत तादाद में हैं ...हम लोग इन सब को बहुत गलत ढंग से लेते हैं ...इन शब्दों का मतलब ही बदल दिया ....हम ने ...... ।
एक बार मुझे यहाँ पे लोकल ट्रेन में बैठने का मौक़ा मिला ...लोकल ट्रेन का रंग लाल रंग का होता है । मैं और मेरा जापानी सहायक दोनों रेलवे स्टेशन पहुंचे .....उसने एक मशीन से टिकट निकाला ...गेट पे पहुंचे गेट पे एक पन्च मशीन लगी थी ...टिकट पन्च किया .....प्लेटफार्म पे आ गए ...भीढ़ भी उतनी जितनी मुम्बई में सुबह के वक्त होता है लोकल में
हर डब्बे के गेट के सामने दो लाइन लगी है ....इन दो लाइनों के बीच.....करीब दो फिट की जगह होती है ......जब ट्रेन आएगी ...तो डिब्बे से जो निकले गा वह दो फिट की जगह से निकले गा ...और अन्दर जाने के लिए लाईन.....से लोग जायेगें और अन्दर भी इसी लाइन की तरह खड़े रहें गें ....एक दुसरे के कंधे पे हाथ रख कर सब लोग अन्दर जायेगें .......इस तरीके को देख कर मन बड़ा खुश हो गया ..पुरी ट्रेन बहुत साफ़ -सुथरी थी ......
यहाँ के लोग ....हर सीजन के आते ही गर्मी के कपड़ों को फेंक देते है ,,,और ठण्ड के लिए दो कपड़े खरीद लेते हैं ....और सारा जाड़ा......उसी को पहने गें ..और फ़िर जब सीजन बदले गा ...इन कपड़ों को फेंक देंगे ....और एक बात सुबह यह लोग नहाते नही .....नहाने का काम रात को ही कर लेते हैं ...और सुबह वगैर नहाये चल देगें अपने आफिस अक्सर यहाँ के लोग लंच बाहर ही करते हैं .....शाम को खाना बनाने का काम होता है
जिन्दगी को कैसे जीना चाहिए कोई इनसे जाने ....हर पल को यह लोग जीते हैं हमारी यूनिट में एक साहब थे ...उनका रोमांस एक शादी शुदा जापानी औरत से हो जाता है .....अक्सर यह होटल से गायब हो जाते थे ....एक रात मैंने उनकों पकड़ा और समझाया हम दुसरे देश में आए है .....कुछ एसा मत करना जिससे हमारे देश की नाक कटे...........





2 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत बढिया संस्मरण. रोचक भी.

अजय कुमार ने कहा…

जापान के लोगों का अनुशासन सुन कर अच्छा लगा,लेकिन अनिल जी रोये क्यों ?