बुधवार, दिसंबर 09, 2009

९१ कोजी होम

सुबह देर तक सोता रहा ,हल्ला सुन कर आँख खुल गयी । फाईट मास्टर अकरम की आवाज आ रही थी ,
नीचे जा कर देखा ......हमारे निर्माता चंचल जी से झगड़ रहा था ....अपने पैसे मांग रहा था ...जो उसके
साथ आए थे फाईटर ,उन्होंने डुप्लीकेट का काम किया था ,उनके भी पैसे अभी तक, नही मिला था । और
अकरम को उन्हें पैसे देने ही थे । बहस होती रही ,मैंने बीच -बचाव करने की कोशिश की ...अकरम मुझसे
नराज हो गया ....और कहने लगा .....आप हमारे बीच मत पड़िये और उसने मुझे धक्का दे दिया और मैं गिर गया ...मुझे गुस्सा आया ....कुछ कहता इससे पहले उसने पास पड़े चाकू से अपना हाथ काट लिया और फ़िर हाथ की सिगरेट से अपना गला जला लिया ....यह सब देख कर हम सभी लोग डर गये । निर्माता भी घबरा गया ....उसको डर था , कहीं पुलिस केस न हो जाय .....और फ़िर अकरम को समझाते हुए बोला ....ठीक है ...मैं देता हूँ ...,मैं अपने कमरे में चला गया ...थोड़ी देर बाद अकरम और उसके साथी मेरे पास आए और कहने लगे ......सर मुझे माफ़ कीजिएगा ,अगर मैं यह न करता तो ..यह
चंचल मेरे पैसे ना देता ....और फ़िर इंडिया में कौन इनके पीछे -पीछे भागता । मुझे यह सब नाटक करना पड़ा ...सारी मुझे आप को भी धक्का देना पड़ा ...कहीं लगा तो नहीं .....मैं चुप रहा ...मेरे भी पैसे बाकी थे
अब इस हादसे के बाद कौन पैसे मांगे ...मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ....मुझे चुप देख कर अकरम ने पूछा मुझ से कहा क्या आप के भी पैसे बाक़ी हैं ? मैंने सिर्फ़ हूँ में ही जवाब दिया ...फ़िर कहने लगा आप के तो पैसे मिल ही जायेगें ...मारे तो हम गरीब लोग जाते हैं ....पर मुझे पैसे से ज्यादा अपनी बेइज्जती ख़राब लगी थी ......अकरम नोट दीखते हुए मुझ से कहने लगा ...इतने जापानी नोट मैंने पहली बार देखा है
आज सिर्फ़ एक सीन करना बाकी था ....इस हादसे के बाद मेरा मन शूटिंग करने को नहीं कर रहा था .....यूनिट के लोग तैयार हो गये थे ....मुझे भी तैयार होना पड़ा ....अप्पू घर जैसी एक जगह थी वहीं ही शूटिंग करनी थी .....एक सीन था जिसमें हीरो हिरोइन का लव सीन था ...निर्माता मुझ से कह रहा था इस सीन में एक किस करा दीजिये ....मैंने कहा उन से आप पूछ लीजिये हिरोइन से वह किस सीन देगी .....उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी ...और मैं नहीं चाहता था ..यह सब ...मेरे गुरु गुलज़ार साहब की कही बात याद आयी ...निर्माता के बहकावे में कभी मत आना जैसा तुम्हारा कांसेप्ट हो वैसा ही शूट करना ....
शूटिंग ख़तम हो गयी सभी लोग बहुत खुश थे ....शाम को होटल पे पार्टी रखी गयी सुबह से ही मेरा मूड आफ था ...कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ....सातो भी मुझसे बात नहीं कर रहा था डर के मारे .....शूटिंग से जैसे हम लोग अपने होटल की तरफ जा रहे थे ....सातो ने मुझ से कहा ...सर यू वांट
बाई यूओर सन ड्रेस .....नो मनी,,,मैंने उसको बताया ....पर उसने मेरी बात को अनसुनी कर दी और मुझे एक बड़े स्टोर में ले कर गया .....मैंने पहले मना किया पर वह माना नहीं ...जबर्दस्ती मुझसे कपड़े खरीदने की जिद्द करने लगा .....मैंने खुछ कपड़े जरुर खरीदे ....जब हम लोग एक दुसरे काउंटर पे पहुंचे तो वहाँकी सेल्स गर्ल इसकी कजन थी ....आप लोग सोच रहें होगे मैं इस जापानी लडकी का नाम क्यों नहीं बता रहा हूँ .....उसका नाम शांता था ......यह नाम सातो की माँ ने ही दिया था , फ़िर मुझे इस हिन्दी नाम का मतलब मालूम हुआ ... की यह नाम क्यों दिया गया है । सातो की माँ को इंडिया से कितना लगाव था ....शांता कोई उसे नहीं बुलाता था ...सभी उसे सी कहते थे .....उसने भी मुझे एक पैकेट दिया और कहा यह आप की वाइफ के लिए है ....मैंने पूछा ..है क्या इसमें ? उसने कहा प्लीज ओपन इन इंडिया .......और फ़िर वह मुस्कराने लगी ....मुझे डर लगने लगा कहीं कुछ ऐसा वैसा न दे दिया हो ......चलते हुए उसने विदा किया गले लग के .......वह फील आज तक मुझ में रची -बसी है

जारी ,,,........ ।

1 टिप्पणी:

अजय कुमार ने कहा…

ये फिल्म तो खत्म हो गयी , लेकिन आपकी फिल्म की कहानी तो जारी है ज्यादा सेंसर मत कीजियेगा ।