मंगलवार, दिसंबर 22, 2009

९१ कोजी होम

टोकियो से हमारा हवाई जहाज करीब एक बजे उड़ा ,घर जाने का अलग मजा था । आखों में एक ताजगी थी अपनों से मिलने की ....इस फिल्म का ४० प्रतिशत ...शूट बाकी था , जो इंडिया में करना था ...हम सभी लोग करीब आठ बजे शाम को मुम्बई पहुँच गये ....सभी लोग अपना समान ले कर बाहर निकलने लगे ...कस्टम अधिकारी से मुलाक़ात हुई ...वह हमें देख कर पहचान गया । यहाँ से जाते समय ,यही स्टाफ था ....उसने हम लोगों को ग्रीन चैनल से ही जाने दिया ...और खुद ही बोल पड़ा .....आप लोग जापान से कुछ ला नहीं सकते ....वहां सब कुछ इतना महंगा है ...आप लोगो ने दो वक्त का खाना खा लिया हो वही बड़ी बात है

हम सभी लोग बाहर आ गये .....हमें लेने के लिए कोई न कोई आया था ....सभी लोग अपने -अपने घरों की तरफ चल दिए ....
दो -चार दिन आराम किया ....फिर से काम शुरू हो गया एडिटिंग
का ....वामन साहब एडिटर थे ......लिंक स्टूडियो से मिल कर पब्लिसिटी का काम शुरू किया ....और आगे की शूटिंग प्लानिंग किया ......
इसी बीच मैं किसी काम से मुम्बई से बाहर गया ......जब वापस
तो पता चला .....निर्माता ने गाने की शूटिंग शुरू करा लिया ....यह सुन कर मुझे गुस्सा आया .....और निर्माता से मेरी कहा सुनी हो गयी ....और बात इतनी बढ़ गयी .....मैंने वह फिल्म छोड़ दी ......और कह दिया किसी और से करा ले मैं नहीं कर सकता .......

अपना बैलेंस पैसा लिया .....और दुसरे काम की तलाश शुरू हो गयी .....इस फिल्म को छोड़ के मैंने गलती की थी यह मुझे आज महसूस होता है ....उम्र ही ऐसी होती है ...गुस्सा नाक पे बैठा होता है ......
दो महीनो की भाग -दौड़ में मुझे एक काम मिला ....एक निर्देशक के साथ का .....फिल्म मैं निर्देशन करूँ गा और नाम उसका आयेगा
मैंने काम करने के लिए हाँ कह दिया .....यह सोच कर फिल्म बड़ी है ....पैसा अच्छा मिले गा .....और लोगों से पहचान भी हो जायेगी ........
इसी बीच ..........

2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

आपने सही किया , लेकिन फिल्म का नाम तो बताइये

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपकी खुद्दारी को सलाम...पैसा तो फिर भी आ जाता है एक बार बिक गए समझौता किया तो फिर उसे वापस पाने का कोई रास्ता नहीं...इतना गुस्सा तो नाक पर बैठा होना ही चाहिए...आगे क्या हुआ...कौनसी फिल्म थी वो बताएं...आपके किस्से बहुत ही रोचक होते हैं लेकिन आप उन्हें धारावाहिक जासूसी उपन्यास की तरह बीच में ही छोड़ देते हैं...उत्सुकता अपने चरम सीमा पर पहुँच चुकी होती है तब तक...

नीरज