हमारे शास्त्रों में कहा गया है , हर मनुष्य को सिर्फ एक वक्त का भोजन करना चाहिए ....
गुलज़ार साहब एक ही वक्त भोजन करते हैं ......जब मैं उनके पास वतौर सहायक लगा
तो पता चला ....सुबह एक गिलास दूध पीतेहैं ........फिर शाम को खाना खाते हैं ,वह भी
दो फुल्के थोड़ी सी शब्जी .....और कुछ नान वेज ....आचार का बहुत शौक है ....हर किश्म
का आचार के शौकीन हैं ....आंवले की चटनी बहुत अच्छी लगती है .....मछली बहुत शौक
से खाते हैं वह भी राखी जी के हाथ का .....
हम सहायक लोग तो दोपहर का खाना खाते ही थे .....हम सभी लोग उनके
कपड़ों की नक़ल करते थे ...उस तरह बनने की नक़ल करते थे ....पर यह दोपहर में न खाने की
की आदत किसी ने नहीं डाली .....हाँ गरीबी बस कभी कधारनहीं खाते थे ....
हाँ अब इस उम्र में जा कर ,डाक्टरों के कहने पे ....सैंड बिच खा लेते हैं .....वो
आज भी वो सुबह पांच बजे उठ जाते हैं .....और टेनिस खेलने चले जाते हैं .....यह आदत भी किसी
सहायक ने नहीं अपनाई ......बस हर कोई गुलज़ार बनना चाहता था ......बहुत सादा जीवन जीते हैं
किसी के सहारे आज तक जिए नहीं ......जितना कुछ है बस उनका ही है .....
आज भी मैं अपना परिचय गुलज़ार साहब सहायक हूँ कर के बताता हूँ ......एक बार इसी बारे में बात
चीत हो रही थी .....गुलज़ार साहब खुद ही कहने लगे ...मैं भी बहुत दिनों तक अपने आप को विमल रॉय
का सहायक बताता था .....आप को गुलज़ार साहब एक संत से कम नहीं लगे गें ....
1 टिप्पणी:
एक बेहतरीन और अच्छा इंसान ही बेहतरीन और अच्छी फ़िल्में बना सकता है, गीत ग़ज़ल लिख सकता है...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
नीरज
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