गुलज़ार साहब , मुझे बूढ़े सन७३ में भी लगते थे । क्यों ? मुझे नहीं मालूम
वक्त बीतता गया आज भी वैसे ही हैं ,वजह ....मुझे नहीं मालूम । जैसे बचपने
से सीधे बुढ़ापे में आ गये , वैसे भी ,उन्हें बुढ़ापे से ज्यादा प्यार है ,आप को उनकी
फिल्मों से ही पता चल जाएगा ,उनका हीरो बूढा ही रहता है । उनका हीरो ,कोई और
नहीं ....खुद वही ही होते हैं ....उनका हीरो खुद नहीं बोलता ....गुलज़ार साहब ही......
बोलते हैं ।
एक और पहलु उनका .....वह खुद ही से बोलते हैं ,सारे सवाल उनके ,सारे जवाब
उनके ....उनके सवालों के जवाब किसी के पास नहीं ....हाँ वह खुद ही हैं जवाब ,बहुत करीब किसी
के नहीं ....किसी के पास हैं तो ......सिर्फ उस खुदा के ,जो उनके अंदर बैठा है ...जिसका एहसास है
उनकों ....है
उनको दादू कह के बुलाओ ....तो .उनको बहुत अच्छा लगता है ...उनके साथ रह के एक बात
का एहसास हुआ .......आप कि सच्ची सोच ही उनके करीब पहुंचा सकता है ,.......और उनका
साथ पाने के लिए ......आप को बहुत साफ -पाक बनना पड़ेगा ...
एक बार मैंने उनसे पूछा ....आप को टेंसन कभी होता है ....सब कुछ है तो आप के पास
.........कहने लगे ,मुझे हर महीने की तीस तारीख को टेंसन होता है ..... मैंने पूछा तीस को क्यों ...?
तो कहने लगे .......एक तारीख को मुझे
अपने बैंक में देखना पड़ता हैं .....इतना पैसा है कि मैं अपने साथ काम करने वालों को वेतन दे सकता हूँ
.........मैं नहीं चाहता हूँ ....एक से दो तारीख न होने पाए ...वेतन देने में ......
मेरी बेटी उन्हें दादू ही कह के बुलाती है ....जो उन्हें बहुत अच्छा लगता है ....
मतलब यही है .....यही उनकी असली उम्र है ,जिसकी तलाश में उन्हें चालीस साल जीना पड़ा ....इस उम्र
को पाने के लिए ....वैसे लोग कहते हैं बुढ़ापा बड़ा दुःख दाई होता है ....पर गुलज़ार साहब को देख के लगता है ......
उनकों इसी उम्र कि तलाश थी ......
4 टिप्पणियां:
आपके माध्यम से गुलजार साहब को करीब से जानने का मौका मिल रहा है ,ऐसे ही लिखते रहिये
लाजवाब प्रस्तुति...कलाकार कभी बूढा नहीं होता...परिपक्व होता है...उथला नहीं होता गहरा होता है...
नीरज
भंगार जी प्रणाम.आप के संस्मरण मन खुश कर देते है.आप के साथ हम भी गुलज़ार साहब को अपने नजदीक महसूस कर लेते है...अपनी राय से हमें भी अनुग्रहित करें अहसान होगा. http://satyammpi.blogspot.com/2010/01/blog-post.html
satyammpi.blogspot.com
बहुत - बहुत धन्यबाद ,जो हमारे भंगार को पढ़ते हैं .
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