सोमवार, अगस्त 02, 2010

९१ कोजी होम

अचानक फिल्म की कहानी ख्वाजा अहमद अब्बास साहब की एक

कहानी पे आधारित थी .....करीब दस रोज में .....हास्पिटल के सेट

की शूटिंग पूरी हो गयी ......इसी दौरान मेरी अच्छी पहचान मेराज

साहब से हो गयी .......वह गुलज़ार साहब के मुख्य सहायक थे .....वह

इलाहाबाद के थे ....जिससे उनके कुछ करीब हो गया .....

मेराज के अलावा ......और सहायक थे ....राज यन सिप्पी ,

चंदू ,सजीव कपूर ...और इन सब के बाद मेरा नम्बर आता था ....इसी

बीच........गुलज़ार साहब ने मुझसे कहा ......शरदचंद के नावेल विप्र दास

पे फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने को .......नावेल को किस तरह एडाप्ट किया

जाता है मुझे नहीं मालूम था .....लेकिन पूरे नावेल को एक फिल्म की शक्ल

जरुर दे दी थी ............

.....मेरा खाना पीना मेरे दोस्त चंदर वहन कर रहा था ....लेकिन कब तक

......एक महीने बाद बीत चुका था .....कहीं से कोई पैसे की उम्मीद नहीं थी ..गुलज़ार

साहब से क्या कह के पैसे मांगू .......मुझे तो कोई काम भी नहीं दिया था ....सिर्फ शूटिंग

देखते रहो .....पिता जी को चिट्ठी लिखी .......कुछ पैसे मांगे ......घर पैसा तो आ गया

.......पर साथ में एक हिदायत भी दी ......".कुछ नहीं चल रहा है तो वापस घर आ जाओ "

.......पाँच सौ रुपया तो जरुर भेज दिया था ......शिवाजी पार्क जहां मैं रहता था ....रोज

गुलज़ार साहब के आफिस जाना तो होता था .....और काम की तलाश शुरू हो गयी ....या

तो दूरदर्शन ज्वाइन कर लूँ .....या फिल्म डिविजन ज्वाइन कर लूँ ......

..........इसी उधेड़ -बुन में ....क्या करूं ,क्या न करूँ .... अशोक से मिला वह

गोगी आनन्द का सहायक था ....उससे कहा .....क्या करूं ....जहाँ से कुछ पैसे मिले

......उसने एक ही बात कही .....अगर नौकरी ही करनी है तो अपने शहर में जा कर भी

कर सकते हो ......गुलज़ार साहब के यहाँ लगे हो ....लगे रहो वह खुद ही कोई रास्ता

निकालेगें ......मैंने उसकी बात मानी ......और गुलज़ार साहब क़ा साथ नहीं छोड़ा .....

गुलज़ार साहब.ने ..... महीना पूरा होते ही ....मुझे डेढ़ सौ रूपये दिए .....वह भी

अपनी जेब से .......निर्माता सिर्फ चार सहायक को ही पैसा देता है ...मुझे यह सब खुद

ही गुलज़ार साहब ने मुझे बताया ....इस शहर में वगैर पैसों क़ा जीना बहुत मुश्किल है ....

.....इसी बीच चीफ प्रोडूसर यफ .डी. के थापा साहब से मिला .....उन्होंने मुझे दो शार्ट फिल्मे फॅमिली

प्लानिग पे दी .....बनाने के लिए ...एक सहारा मिल गया .....जीने के लिए

...............अचानक फिल्म पुरी हो गयी ....रिलीज भी हो गयी ......फिल्म कोई

गीत नहीं था .....फिल्म भी बहुत छोटी थी ......कमर्शियल नहीं थी ......नहीं चली ....

.......फिल्म का स्क्रीन प्ले ...इतना खुबसूरत था ....गुलज़ार साहब कई एवार्ड भी मिले

.......इसी बीच खुश्बू नाम की फिल्म शुरू हुई .....जीतेन्द्र साहब हीरो थे साथ में हेमा मालनी जी

थीं .....अब मुझे थोड़ा बहुत काम दिया जाने लगा ...कन्विंस मनी पंद्रह रुपया मिलता था वह

भी मिलने लगा .........हालात थोड़े सुधर गये ....अब सभी सहायक दोस्त बन गये थे ......

.....चंदर मेरा दोस्त .....लखनऊ वापस चला गया ....मैं खार डांडा रोड पे एक बंगले में एक बेड की

जगह मिल गयी पेइंग गेस्ट वतौर ....महीने का डेढ़ सौ देना पड़ता था ....यहाँ से मैं गुलज़ार साहब

के आफिस तक पैदल ही जाता था ...जब फिल्म की शूटिंग नहीं चलती तो एडिटिंग के लिए

फिल्म सेंटर जाना पड़ता था ...मैं अक्सर गुलज़ार साहब के आफिस तक पैदल ही जाता था

.......यह वह दौर था .....राखी जी गुलज़ार साहब अलग हो के अपने बंगले में रहने चली गयी थी

गुलज़ार साहब अकेले हो गये थे .....अकबर नौकर अब भी उनके साथ था ....गुलज़ार साहब अब

गौतम एपार्टमेंट में रहने आ गये थे ...कोजी होम को सिर्फ आफिस बना दिया था .....

गौतम एपार्टमेंट में आठवे फ्लोर पे रहते थे गुलज़ार साहब ,आधा फ्लोर पे जीतेन्द्र साहब

रहते थे ....और आधे में गुलज़ार साहब ......इस घर की कल्पना भी बहुत कमाल की थी ....इसमें

आँगन भी था ....और आँगन के चारो तरफ बरांडा .....बरसात में जब पानी बरसता बड़ा अच्छा लगता

अकबर नौकर अब भी उनके पास था ....अब वही उनका ख्याल रखता ....

इसी घर में उनकी बेटी बोस्की क़ा पहला जन्म दिन मनाया गया था ...और एक किताब

गुलज़ार साहब ने लिखी थी बच्चों के लिए वही उनका उपहार था ....बेटी के लिए ....

इसी घर में पहली बार कवि बच्चन जी मुलाक़ात हुई थी ...और साथ में तेजी बच्चन जी भी थी

.....इसी घर में एक याद और जुड़ी है ......जब मेरी वजह से ... रात भर गुलज़ार साहब घर के बाहर रहे

.......हुआ यूँ ....मैं गुलज़ार साहब के घर ...सुबह सुबह आ गया था ....खुश्बू फिल्म की एडिटिंग में

जाना था ....जब मैं पहुंचा तो घर में गुलज़ार साहब अकेले ही थे .....अकबर भी छुट्टी पे गया था

गुलज़ार साहब ने घर को ताला लगाया ....और चाभी मुझे दे दी उस गुच्छे में घर की कई चाभियाँ

लगी थी ......लिफ्ट से नीचे आये और फिल्म सेंटर की तरफ चल दिए ......