…………पहली बार पिता जी को गुस्सा होते देखा……मैं चुप रहा…बडा घर लिया गया
……………मीरा फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी ,फिल्मिस्तान स्टूडियो में ,बाबू जी
और माता जी लखनऊ चले गये थे ....उन लोगो की शूटिंग देखने क़ा बहुत मन था ....
....लेकिन कभी दिखा नहीं सका ..... ।
आज पहला दिन था शूटिंग क़ा विनोद खन्ना क़ा सीन था ......हेमा जी के साथ ....
हेमा जी को गेट-अप करने में थोड़ा वक्त लगता था ......गुलज़ार साहब ने विनोद खन्ना
क़ा शाट पहले लगा दिया ..........उनके चार -पांच शाट ले लिया गया......फोटो एल्बम
जब आया .....तो देखता हूँ .....विनोद खन्ना जी के गले में तीन लटों की मोतिओं की
माला था .....मुझसे गलती हो चुकी थी ....मतलब जो शाट लिया जा चुका है ,उसको
फिर से लिया जाय ......विनोद जी गले में माला पहना के ........अब गुलज़ार साहब को
कौन कहे ?मैंने चंदू से कहा (यन .चंद्रा ) वह भी घबरा गया .....कहने लगा गलती
तुमने की है ...और तुम ही गुलज़ार साहब से कहो ......अगले शाट की तैयारी चल रही थी
.....कम्बाइन शाट था हेमा जी और विनोद जी क़ा .......इस शाट के होने से पहले ...पिछ्ला शाट
री -टेक कर लेना चाहिए ......
..........मैंने हिम्मत कर के .....गुलज़ार साहब के पास गया .....और उनसे कहा
......सर मुझसे एक गलती हो गयी .......और पूरी घटना को बता दिया....उन्होंने कुछ नहीं
कहा ......और दादा को कहा ......पिछले शाट को री - टेक करने के लिए .....मुझे कुछ नहीं कहा
मेरी गलती को माफ़ कर दिया ......
एक दस रोज की शूटिंग थी ....इस सेट पे ,
दो रोज बाद .......रात क़ा कोई नौ बजा होगा ......मैं हेमा जी को सीन देने के लिए ,उनके मेकअप
रूम की तरफ जा रहा था ,तभी फ्लोर के बाहर एक टैक्सी आ कर रुकी ......यहाँ तक कोई कार
नहीं आती थी .....मैं कुछ समझा नहीं ......कुछ सोचता ,तभी टैक्सी से धर्मेन्द्र जी निकले ....
मैंने उनको पहचान के नमस्ते किया ......हेमा जी के बारे में पूछा ......मैंने हेमा जी के मेकअप रूम
की तरफ ईशारा कर दिया .......कुछ सोच के धर्मेन्द्र जी ने कहा ....सुनो इस टैक्सी क़ा बिल
प्रोडक्शन से दिला देना ......इतना कह के वह हेमा जी के मेकअप रूम की तरफ चल दिए॥
........मैंने तरन जी से बिल देने को कहा ......फिर मेकअप रूम की तरफ गया ,जिसमें हेमा जी थीं
नाक किया .....और अन्दर पहुंचा ....मैंने धर्म जी को बताया .....टैक्सी क़ा बिल दिला दिया
फिर मैंने कहा ....पापा जी बिल तो सवा दो सौ क़ा था .....इतना सुनते ही , धर्म जी बोल पड़े ...
अरे वह मैं आर .के .स्टूडियो से आ रहा हूँ .....डायरेक्टर छोड़ नहीं रहा था ....बस मैंने बाथ रूम
जाने क़ा बहाना बताया .......और स्टूडियो से बाहर आ गया ......फिर टैक्सी की और यहाँ
चला आया ......मैंने सीन दिया हेमा जी को .....और सेट पे आ गया .....चंदू को बता दिया
धर्मेन्द्र जी आ गये हैं अब क्या शूटिंग हो गी .......?
गुलज़ार साहब को भी बता दिया ......गया.......... धर्म जी आगये हैं ......
...थोड़ी देर बाद हेमा जी सेट पे आयी .......सीन पूरा किया .....
दस बज चुका था ....पैक अप हो गया .....हम सभी लोग अपने -अपने घरों को चले गये
.......शूटिंग दस रोज की पूरी हुई ......अगले शूटिंग प्रोग्राम की तैयारी होने लगी .......
हम सभी सहायक आफिस में बैठे थे .......तभी लखनऊ से मेरे लिए फोन आया ......फोन पे
जो सुना.........वह सुन कर .....मैं बेचैन हो गया ......अभी तो कुछ दिन पहले पिता जी आये थे
और यह सुन कर ......बाबू जी नहीं रहे ........उनका देहांत हो गया......... ।
मुझे घर जाना था ...कल तक लखनऊ पहुंचना था ......काका कपूर ने मेरा हवाई जहाज का टिकट
करा दिया ......पैसे गुलज़ार साहब ने दिया था ......दिल्ली से ट्रेन पकडनी थी .......
.....मैं ......सुबह दुसरे दिन , लखनऊ पहुँच गया .......मेरा ही इन्तजार हो रहा था ....पिता जी
का शव ......बगीचे में बर्फ की सील्लिओं पे पड़ा हुआ था ......बाबू जी को देख कर .....बम्बई
उनका आना सब कुछ घूम गया ......मैं अपने आप को कमजोर नहीं होने देना चाहता था ....बड़ा जो था
.....उनका अंतिम संस्कार कानपूर में जा के किया .......
करीब एक महीना लखनऊ में रहा ......छोटा भाई ......मुझसे दस साल छोटा था अभी पढाई ही
कर रहा था ....घर को चलाने वाला कोई नहीं था .....
..........पिता जी की नौकरी ...मिलने क़ा एक ही रास्ता था .... यह साबित कर दिया जाय
बड़ा लडका नालायक है ......किया भी यह गया ......जब मुझे यह आशा हो गयी ....भाई को
नौकरी मिल जायेगी .....मैं फिर से मुम्बई आ गया .....
.......दोस्तों ने यहाँ यह फैला दिया ......अब मैं वापस नहीं आउंगा ......गुलज़ार साहब ने बड़ी
आत्मीयता से मेरा हाल जाना .......अब लगने लगा ....अब मेरे सब कुछ गुलज़ार साहब हैं .....
...........अभी पिता जी गुजरे तीन चार महीने ही हुए थे .......माँ क़ा फरमान आ गया ......
तुम्हे शादी करनी पड़ेगी .......माँ लडकी देख चुकी थीं .....माँ ने यह भी बता दिया ....लडकी को
तुम्हारे पिता जी भी देख कर गये थे ...और पसंद भी कर के गये थे ....
अब मेरे पास हाँ -ना कहने क़ा कोई रास्ता नहीं था .....तीन मार्च सन ७८ में हमारी शादी भी हो गयी
घर तो था ही मुम्बई में ....चिंता किसी बात की नहीं थी ...नौकरी भी थी गुलज़ार साहब के साथ
............फिल्म मीरा भी पूरी हो गयी ........रिलीज भी हुई .......लेकिन चली नहीं
हमारे आफिस में फिर से सन्नाटा हो गया ......शादी भी हो गयी ....फिल्म भी कोई नहीं है ......
हम सहायक को तभी पैसा मिलता था ......जब कोई फिल्म होती गुलज़ार साहब के पास .....
.......कैसे गुजर -बसर किया उस दौर में ......?
2 टिप्पणियां:
रोचक वृतांत...आपकी जीवनी संघर्ष की लम्बी श्रृंखला है...प्रेरक प्रसंग हैं
नीरज
धर्मेन्द्र जी का आना ,शूटिंग का नही हो पाना ??
क्या गड़बड़्झाला है । क्या धर्मेन्द्र जी प्रोड्युसर हैं इस फिल्म के ?
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