गुरुवार, जनवरी 06, 2011

आज गुलज़ार साहब ७५ के हो गये हैं ,मैं ६४ क़ा .....हम में आज भी वही रिश्ता है

जो सन ७३ में था । आज भी मैं वैसे ही डरता हूँ जैसे मैं तब डरता था ....बदला

जो कुछ है ........वह है हमारी उम्र ....वह भी नाना बन गये ,मैं भी ............

..................आज भी मैं उनसे मिलता हूँ ना मिलूं तो उनका ही किसी बहाने से

फोन आ जाता है .......तब मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है आज भी डांटते हैं

.............अभी हाल में डांटा था.......वजह रविन्द्र नाथ टैगोर के बारे में ........बहुत

कुछ ना जानना ..................सच में जितना वह जानते हैं ...उतना मैं नहीं .......मैं ने

नेट पे आके टैगोर के बारे में खूब पढ़ा ...कब - कब क्या लिखा ....कैसे ...जान ...गण..मन

...अधिनायक लिखा और किस हालत में लिखा ....और कैसे देस क़ा रास्ट्रीय गीत बन गया


....................एक बहुत खुबसूरत घटना है ,तब गुलज़ार साहब और राखी जी एक साथ गौतम

एपार्टमेंट में रहते थे शादी हुए कुछ ही महीने हुए थे ....मैं पांचवा सहायक था ।

किसी काम से मैं उनके घर गया ......आफिस कोजी होम ही था ......राखी जी

घर में मिली .......उनको कुछ पौधों की जरूरत थी ....मुझे पता दिया ........पता था ....बाम्बे

साइड क़ा ......और उन्हों ने यह भी कह दिया ........गुलज़ार साहब को भी नहीं मालूम होना


चाहिए .......मैं उस पतंग की तरह ...बबूल के पेड़ से जा लटका ,जिसका फटना जरुरी था .....

राखी जी ने मुझे दो सौ रूपये दिए .......और कहा मौक़ा जब लगे तो ले आना ...............

दो दिन हो गया ....मैं जा नहीं सका ......हम सहायक लोग अपनी -अपनी स्क्रिप्ट

लिखने के लिए फाईलें और पेपर बाम्बे स्टोर से लाते थे ........

मैं अपने सहायक दोस्तों में सबसे ज्यादा पढ़ा -लिखा था ...सभी दसवां पास थे .....

मेराज साहब सिर्फ बी कॉम थे ......मेरी और मेराज साहब की कहीं बहुत ज्यादा पटती थी

और मैंने मेराज साहब को पौधे लाने वाली बात बता दी .....कुछ सोचनेके बाद कहने लगे ........

देखो बस एक ही रास्ता है .....पौधे तो लाने ही होंगे .....उस समय उनके पास स्कूटर था ,शाम

को हम दोनों बाम्बे की तरफ चल दिए ........जे .जे .आर्ट्स कालेज के बगल में एक नर्सरी थी

वहाँ से वह खास पौधा लिया .......

यह पौधा हमने अपने घर में रखा .......सुबह कैसे राखी जी को दिया जाय .....जब गुलज़ार

साहब घर पर ना हो ......यह सब एक फिल्मी या जासूसी ढंग से हम लोग कर रहे थे ....

गौतम बिल्डिंग के चौकीदार को दिया और उससे से कहा यह ....गुलज़ार साहब के घर पे दे के

आ जाओ .....और उसे मैंने एक रुपया दिया .......यह सब एक भय काम करा रहा था

गुलज़ार साहब ......कभी नहीं चाहते हैं उनके सहायक इस तरह के काम करे ....

यह सब मुझे मेराज साहब ने बताया था


एक दो दिन गुजरे थे .....गुलज़ार साहब ने मुझे बुलाया और समझाया .......पढने लिखने

क़ा काम किया करो ....यह उम्र फिर नहीं मिलेगी ....एक बार निर्देशक बनने के बाद ......

आज सोचता हूँ तो समझ में एक बात आती है वह बचपन से मास्टर थे ................

एक और ऎसी ही घटना है .....भूषण बनमाली गुलज़ार साहब के बहुत करीबी दोस्त थे .......एक दिन

उनको पता चला भूषण जी ने नींद की गोलिया खा ली ......मर जाना चाहते थे ......गुलज़ार साहब उनके

घर पहुंचे .... भूषण जी होश में आ चुके थे .......गुलज़ार साहब जब पहुंचे दोचार बात चीत करने

के बाद ....एक झन्नाटे -दार लपड रशीद किया ....यह सब हमें भूषण जी बताया था .........

........ क्यों मारा ......इतना पढ़ा लिखा इंसान ने यह हरकत क्यों की .........





2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

गुलज़ार साहब से जिंदगी कैसे जी जाए ये सीखा जा सकता है...

नीरज

Syed Asad Hasan ने कहा…

u know...u r very lucky that you have worked with Gulzar sb and have a long time relationship with him. You are indeed a good person that's why he cares about you and often calls you.......