बुधवार, अगस्त 03, 2011

यादें

बचपन में .मेरा मन खेलने में बहुत लगता था ,सभी बच्चे खेलते हैं
कोई नयी बात नहीं है ..............मैं कुछ ज्यादा था ....बहुत डांट खाता था
कैसे भी पास होता हुआ ,एक -एक क्लास पास होता जा रहा था ...........लेकिन
ना तो बहुत तेज था पढ़ने में ना बहुत ही कमजोर था .....बस ठीक -ठीक था
घार के बगल में स्पोर्ट्स मैदान था ....हम बच्चे उसी मैदान में खेलते थे ...खेल ही खेल
में मुझे पता ही नहीं चला मैं बहुत अच्छा स्पोर्टस मैन बन गया हूँ तब मैन सातवीं क्लाश
में पढ़ रहा था ................
स्कूल में एनवल स्पोर्ट्स हुआ .............और मैं हर दौड़ में पहला नंबर आया
बहुत सारा ईनाम मिला .....पहली बार पिता जी बहुत खुश हुए .............स्कूल में मेरा
अच्छा खाशा नाम हो गया
उसी साल मुझे लखनऊ शहर के सभी कालेजों की स्पोर्टस मीट्स में भेजा गया
वहां मैंने आठ सौ और पंद्रह सौ मीटर की रेस में भाग लिया आठ सौ में फर्स्ट आया और
पंद्रह सौ में तीसरा नंबर आया ................
मेरी फोटो दूसरे दिन स्वतंत्र भारत पेपर में नाम और फोटो आया ............मैं अपने
घर में हीरो बन गया ...........पिता जी क़ा सिर्फ यही कहना था .....पढो -लिखो वरना जिन्दगी
बेकार हो जायेगी ............और उसी साल सातवीं क्लास में फेल भी हो गया .............
अब मेरा भी जी यही कहने लगा नहीं पढो गे तो चपरासी की भी नौकरी कोई नहीं देगा
...........सब कुछ तो छोड़ दिया और लगा पढाई करने लगा ...........पास होगया ............
बचपन में फ़ुटबाल खेलने क़ा बहुत शौक था और वह खेलता रहा ..............घर में इसकी खबर किसी को भी
नहीं थी ................