गुरुवार, नवंबर 24, 2011

मैं कौन हूँ ?

...........जब ध्यान में बैठता हूँ ....सोचता हूँ ...मैं कौन हूँ .....?
फिर आस्मां में खडा हो के .....अपने आप को देखता हूँ मुझे पृथ्वी
गोल सी चपटी सी नज़र आती है .....उसमें फिर खुद को खोजता हूँ
बहुत खोजने के बाद .....मेरा अस्तित्व रेत के कड़ के बराबर लगता है
..........मैं किस बात क़ा अभिमान करता हूँ ?मेरा यह मकान है यह मेरी जमीन है मैं
इसका मालिक हूँ ....कितने सालों तक ....कब तक उसके बाद ,उसके बाद ....
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ध्यान से बाहर आया ............फिर वही मोह -माया .........जल्दी लगने लगी
आफिस जाने की ....गुस्सा होना नास्ता अभी तक तैयार क्यों नहीं
...........दौड़ के बस पकड़ना ..............

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