मंगलवार, दिसंबर 06, 2011

मैं और गुलज़ार साहब

बहुत दिन हो गये थे ,भाई से नहीं मिला था अगर महीना भर
हो गया तो ,मेरी दसा वैसी हो जाती जैसे रेगिस्तान में खोजता
एक इंसान पानी की एक बूंद ........
सुबह करीब ग्यारह बजे फोन किया ....बताया गया
साहब महबूब स्टूडियो गये हैं ,एक बजे तक आ जायेगे .....शनीवार क़ा दिन था
आफिस जाना नहीं था ....खाना खा के आराम करने के लिए अपने कमरे
में जाने से पहले सोचा ,एक बार फोन कर के देखता हूँ ....इस बार पता चला
गुलज़ार साहब आ गये हैं .....फोन उनको दे दिया गया ....आज भी उनसे
बात करते हुए मेरी घिघगी बांध जाती है ......जब की सन ७२ से जानता हूँ ....
................भारी आवाज में हेलो .हेलो सुना .........भाई मैं राम लाल बोल रहा हूँ
मिलना चाह रहा था ....?
आ जाओ ....!
मैं जल्दी -जल्दी तैयार हुआ और चल दिया ......करीब चार बजे उनके बंगले पे पहुंचा
सुन्दर उनका ड्राईवर मिला तीस साल से वह भी यहीं काम कर रहा है .....दो बाते उससे
की और ऊपर उनके कमरे की तरफ बढ़ लिया .....वही घर जहाँ मैं सन ७५ से आ रहा हूँ
आज भी वैसा लगता है ...जैसा तब लगता था कोई बदलाव नहीं ......अकेले तब भी रहते थे
आज भी वैसे ......एक शादी की एक बेटी है सब अलग -अलग ,फ्हों से सभी से बात -चीत
है आना जाना भी है अब तो एक नाती भी आ गया है .......भरे तो आज भी हैं पर मुझे क्यों
खाली लगते हैं ....यह घर सूना क्यों लगता है बीस सीढ़िया चढ़ के उनके कमरे के पास पहुंचा
.........वैसे एक बात और बता दूँ .......कुछ ही लोग हैं जो उनसे उनके कमरे में मिल सकते हैं
वरना सभी नीचे हाल और उनके आफिस में ही मिल सकते हैं

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