बुधवार, फ़रवरी 08, 2012

चंद्रमुखी (२)

हम दोस्तों को रहते हुए दो दिन हो चुके थे मनाली में,
बस हम में एक बात क़ा जिक्र था ,वह कितनी हसीन थी।
हम दोस्तों की आँखे उसे ही खोजती रहती थीं,,,,
लेकिन वह नज़र नहीं आयी ....धीरे -धीरे उसका जिक्र
कम होने लगा ,लेकिन मैं नहीं भूल पा रहा था ,चुरा के दोस्तों से
याद कर लिया करता था ...............

आज हम वापस बम्बई जा रहे थे .....हम सभी लोग बस में बैठ
गये थे ..........चलते -चलते मेरी आँखें उसे ही खोज रहीं थी .......
बस चल दी ....सुबह क़ा वक्त था रात भर के हम सभी जगे थे आँखों में
नींद थी ....सभी दोस्त सो चुके थे मैं ही अकेला जाग रहा था मण्डी आने से पहले
हमारी बस एक जाम में फंस चुकी थी ...........मैं बस से निकल के नीचे
आया , यह देखने के लिए ॥ किसी को कुछ नहीं मालुम था ,हर कोई जानना
चाह रहा था ....हुआ क्या है ?
यह जानने के लिए मैं आगे बढ़ रहा था ........तभी मेरी नजर एक
कार पर गयी, वही औरत अपने आदमी के साथ बैठी थी ...हमारी आँखे चार हुई
मैं आगे बढ़ लिया ....मुझे लग रहा था, जैसे उसकी आँखे मुझे पीछे से घूर रहीं है
मैं बहुत आगे नहीं बढ़ पाया .......वापस हो लिया ....इस बार जब मैं उसके पास
से गुजरा, इस बार वह तो नहीं पर उसका पति मुझे ध्यान से देख रहा था ...........
मै थोड़ा डर गया ......और मैं अपनी बस की तरफ चल दिया ..........

अब मैं कहीं अपने आप को गलत साबित करने लगा ,किसी की पत्नी
को इस तरह नहीं देखना चाहिए .....कहीं उसका पति मुझे डांट दे तो मैं .......इसी
सोच पे मैंने चुप्पी लगा दी .....फिर
बस में आया दोस्त अभी भी सो रहे थे ....मैं अपनी सीट पे आके बैठ गया
आँखे बंद कर के सोने की कोशिश करने लगा ॥
हम सभी दोस्त बम्बई पहुँच गये .....मैं भी कुछ महीनो में उसे भूल गया .....जिन्दगी
बिलकुल खाली थी ...कोई साथी -कोई दोस्त नहीं था ....घर वाले शादी पे जोर दे रहे थे
मैंने हाँ कह दिया ......मैं बहुत खुश था मैंने अपनी पत्नी की फोटो देखी उसकी सुन्दरता
देख कर ............मैं हैरान था ...यह तो वही लडकी थी जिसे मैंने कुल्लू मनाली में देखा
था ............ ।

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