सोमवार, फ़रवरी 13, 2012

चंद्रमुखी (६)

..........चंद्रमुखी को मैं बिल्कुल भूल चुका था ,मैं तीन बच्चों क़ा बाप
बन चुका था ,दो बेटे ,एक बेटी .......जवानी में एक भूल होने से बच गया
था ........

मुम्बई से मेरा ट्रांसफर ,गोवा हो गया ..........बच्चों के साथ गोवा रहते हुए
करीब दस साल हो चुके थे ...बचे भी बड़े हो चुके थे .......बहुत पैसा कमा
लिया था ........अपना बँगला था गाड़ी थी ....सब सुख था .....किसी चीज की
कमी नहीं थी .............

पर एक अधूरा -पन , एक सूना -पन .....कैन मुझे घेरे रहता था........जैसे आज भी
कैन मुझे ........चंद्रमुखी की तलाश थी .......मुझे यह भी मालूम था .......आज उसकी
वह सुन्दरता नहीं होगी ..........फिर भी एक उम्मीद थी ..कहीं वह ...बस मिल जाय ....

रोजाना की तरह सुबह -सुबह बीच पे टहल रहा था ...........यह सारे बीच रात को
को बहुत रंगीन रहते हैं ......सुबह बिल्कुल नग़ -धडंग लगते है .......जैसे किसी ने इनकी
अबरू छीन ली हो ...............मैं तेजी से वाक़ कर रहा था ........मेरे पास गोवा क़ा पुलिस
क़ा एक आदमी आया .........और मुझसे कहने लगा .........साहब आप को हमारे साहब बुला रहे हैं
......मैं कुछ समझा नहीं ...........क्या बात है ........? उसके पास कोई जवाब नहीं थी

मैं जब उस होटल में पहुंचा ...........इन्स्पेक्टर ने कहा .....आप साहब ,सुबह-सुबह यहाँ टहलते
हैं ....एक औरत की एक लाश मिली है .......आप इसे देखे .........आप पहचानते हैं की नहीं ,यह
बताएं हमें ...........एक दूसरे कमरे में मैं गया ........उसके चेहरे से जब चादर हटाई ........बहुत ध्यान
से देखने के बाद ....मैं उसे पहचान गया ...............यह कोई और नहीं ....चंद्रमुखी थी

इस्पेक्टर ने मेरी तरफ देखा ....और पूछा आप पहचान रहे हैं ? चुप रहा मैं .....चुप रहने में ही ....
भलाई है ....नहीं -नहीं मैं नहीं पहचानता ...कौन है ?

मैं घर की तरफ चल दिया ..............एक कहानी क़ा अंत हो गया ...........
मेरी भी जिन्दगी से एक कहानी क़ा खात्मा हो गया .........आज मुझे अपने बारे में सच्चाई .....
मालुम हुई .............

मैं कितना ..........झूठा और मक्कार हूँ ......









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