.............मेरी पहली रात कुछ इस तरह की थी .......मुझे नहीं मालूम था
मेरे बगल कौन सो रहा था ....वह कौन थी ,मेरी पहली मुलाक़ात उससे
थी ..........वह मुझे ध्यान से देखे ही जा रही थी ........फिर उसने मुझे
अपने शरीर से चिपका लिया ........और अपना दूध पिलाने लगी ..........
यही औरत थी जिसे मैंने आगे जा के माँ ........कहा था मुझे जब भी भूख लगती थी
मैं उसकी देह से जा लगता था .........मेरी रगों में उसका दूध धीरे -धीरे खून बनने
लगा था ....वह मुझे उस समय अपना दूध ना पिलाती तो मैं कब का मर चुका होता
.....................सालो साल उसे माँ कहता रहा उसके बने हाथ का खाना ही अच्छा लगता
था .......
उसी माँ ने मेरी दूसरी औरत से पहचान करा दी ............यही दूसरी औरत थी
जिसके साथ मेरी दूसरी रात गुजरी थी .........इसका दिया हुआ सुख अलग था उसने भी मुझे दूध पिलाया था
दो औरतो के बीच मैं फंस चुका था ......दोनों मुझे अपना कहती थी
दोनों एक दुसरे से जादा हक़ जमाती थी .....
जिसको जादा प्यार करूँ वही बुरा मान जाती थी
............एक दिन मैं दोनों को छोड़ के .........कहीं चला गया .........
दस बर्षों तक मैं घूमता रहा .............तलाश थी .........दोनों में से किसी एक के प्यार को चुनने की
किसी हल पे नहीं पहुच पाया ...............वापस घर आ गया यहाँ सब कुछ बदला हुआ था माँ
.............गुज़र गयी थी ...........एक औरत रह गयी थी ........ वह भी ..........................
बच्चों को लेकर कहीं और चली गयी थी ..........किसी और के साथ घर बसा लिया था ............
मुझे उस दिन जो कुछ समझ में आया ..............
माँ के अलावा हर रिश्ते झूठे हैं ....................
मेरे बगल कौन सो रहा था ....वह कौन थी ,मेरी पहली मुलाक़ात उससे
थी ..........वह मुझे ध्यान से देखे ही जा रही थी ........फिर उसने मुझे
अपने शरीर से चिपका लिया ........और अपना दूध पिलाने लगी ..........
यही औरत थी जिसे मैंने आगे जा के माँ ........कहा था मुझे जब भी भूख लगती थी
मैं उसकी देह से जा लगता था .........मेरी रगों में उसका दूध धीरे -धीरे खून बनने
लगा था ....वह मुझे उस समय अपना दूध ना पिलाती तो मैं कब का मर चुका होता
.....................सालो साल उसे माँ कहता रहा उसके बने हाथ का खाना ही अच्छा लगता
था .......
उसी माँ ने मेरी दूसरी औरत से पहचान करा दी ............यही दूसरी औरत थी
जिसके साथ मेरी दूसरी रात गुजरी थी .........इसका दिया हुआ सुख अलग था उसने भी मुझे दूध पिलाया था
दो औरतो के बीच मैं फंस चुका था ......दोनों मुझे अपना कहती थी
दोनों एक दुसरे से जादा हक़ जमाती थी .....
जिसको जादा प्यार करूँ वही बुरा मान जाती थी
............एक दिन मैं दोनों को छोड़ के .........कहीं चला गया .........
दस बर्षों तक मैं घूमता रहा .............तलाश थी .........दोनों में से किसी एक के प्यार को चुनने की
किसी हल पे नहीं पहुच पाया ...............वापस घर आ गया यहाँ सब कुछ बदला हुआ था माँ
.............गुज़र गयी थी ...........एक औरत रह गयी थी ........ वह भी ..........................
बच्चों को लेकर कहीं और चली गयी थी ..........किसी और के साथ घर बसा लिया था ............
मुझे उस दिन जो कुछ समझ में आया ..............
माँ के अलावा हर रिश्ते झूठे हैं ....................
1 टिप्पणी:
माँ के अलावा हर रिश्ते झूठे हैं *
अपने-अपने अनुभव पर हर सच-झूंठ निर्भर करता है ... !!
एक टिप्पणी भेजें