बुधवार, जून 20, 2012

 मैं और गुलज़ार साहब

सन 77 की बात है ,महीना था सितम्बर का ,मैं और काका कपूर
हम  किसी  काम से लिन्किंग  रोड गये थे ।हम दोनों जब वापिस
आये ....गंगाधर ने एक खबर दी ..........तुम्हारे पिता की मौत हो
गयी .........यह सुन कर मुझे विस्वास नहीं हुआ ,तभी फिर फोन
की घंटी बजी .....यह मेरे दोस्त टंडन का फोन था ,उसने भी यही
खबर दी ....मुंबई से लखनऊ पहुँचने के लिए 24 घंटे लगेगें .......
         मैं घर का बड़ा बेटा था ,मेरा पहुंचना....बहुत जरूरी था  मुझे ही
अंतिम संस्कार भी  करना था ......माँ ने कह दिया था जब तक  तुम नहीं आवो गे
तब तक कुछ नहीं होगा .......पैसे के नाम पे मेरे पास कुछ नहीं था .....

        मैं गुलज़ार साहब से मिला और उनको इस हादसे के बारे में बताया ,
उन्होंने मेरे लिए हवाई जहाज का टिकट करवा  के दिया और दूसरी सुबह मैं
लखनऊ पहुँच  गया ....एक महीना रह के वापस मुंबई आ गया ....
           मेरे मुंबई दोस्त समझते थे की मैं अब वापस नहीं आऊंगा .....
काका कपूर .......एक सहायक था
गंगाधर .............गुलज़ार साहब का मैनेजर था
मैं .......................मैं भी एक सहायक था
अशोक घई ने मेरा एक मजाक बना  दिया था ,मैंने लखनऊ में तेल की दुकान खोल ली है
यन चंद्रा मेरे दर्द को समझता था .....उसने मुझे  मानसिक ताकत दी ....
कुछ लोगो का एहसान हम जिन्दगी भर नहीं भूलते .....

तुम्हे कोई ना भूले ......( हर समय तैयार रहना  चाहिए किसी की भी सहायत करने के लिए )

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