सोमवार, जून 25, 2012

teen maai

मैंने अपना बचपना ठीक से देखा नहीं ,जब एक दिन का था
मुझे नहीं मालूम ,माँ ने कैसे ,अपने शरीर में समेट  लिया था
और फिर ,कुछ दिनों के बाद उन्हें महसूस हुआ होगा ।मैं उनके
उदर में एक अंस रूप में आ गया हूँ ......माँ ने मेरे बारे में पिता
से छिपाया होगा ........

               पहली बार किसे बतलाया हो गा ?शायद अपनी नन्द को
 ,फिर उसने अपनी माँ को ,फिर भैया से ........इस तरह
से मेरे बचपन का पहला हफ्ता गया होगा  .....
                बाबु जी पे , इन सब बातो से , कोई असर नहीं  हुआ होगा
 ....माँ उसी तरह से चौका बर्तन करती रही होगी ...अकेले पन  पे
........वह मेरे साथ खेला करती होगी ,पढना -लिखना जानती नहीं थी अपनी
माँ को कैसे बतलाये ...........

                  मैं एक -एक दिन बड़ा होने लगा हूँगा ...... आस पडोस की औरतों को
पता चला होगा .......खूब ...माँ का मजाक हुआ होगा , लोगो ने खूब छेड़ा  होगा
फिर एक दिन माँ मुझे लेकर अपनी माँ के घर आ गयी होगी .....यहाँ भी माँ की
सहेलिओं  ने खूब ताने कसे होंगे ..... मेरी मौसिओं ने मुझ से खूब बात -चीत
की होगी ............

       माँ की कोख में ....खूब खेलता था, माँ ने कई बार मुझे बतलाया था ....मेरा लात
मारना उसे बहुत अच्छी तरह से याद था .....माँ ने ही मुझे बतलाया था ,बरसात का
मौसम था रात का कोई आठ बजा था ..........खूब बारिश हो रही थी .....और मेरी माँ को दर्द
शुरू हुआ .........और कुछ ही देर बाद ...मैं चाँद से पृथ्बी पे आ गया ............

              मेरी दादी बहुत खुश थी ......पोते का होना बहुत शुभ माना जाता है ,मेरी दादी
ने खूब दान दिया .......किसी की झोली खाली नहीं  ..रखी .

पूरा गाँव बधाई देने आ पहुंचा .......गाँव के लोहार ने मेरे लिए लकड़ी का पालना बना दिया
और दादी के पास ले के आ गया .......लोग कहते हैं दादी ने दस विसा खेत उसको जोतने के

लिए दे दिया था ............महीनो दावत चलती रही ..........

         मेरी देख भाल के लिए सुत्काहिया की लड़की कौली को रख दिया था .....
वही मुझे बड़े होने के बाद बताती थी "तुहार माई ,बस दूध पिआवत रहिन ,दिन भर हमही खेलावत
रहे "दिन भर बुकवा मीजी और दिवरिया पे कोइयला से चीन्हा खींच देत रहे .............

सांझे के तुहार माई पूछ्या ........कीतना बार मीजे ? ........दादी ने उसकी शादी करवाई सारा खर्च उन्होंने
ही किया था ...........

            मेरी सेवा इसी तरह चलती रही ....मैं चांदी की करधन पहनता था .और पैरों में कड़ा वह भी
चांदी का .........दो साल का जब हुआ मेरा दूसरा  भाई पैदा हुआ .....दादी बहुत खुश हुई जिसकी इन्तहा नहीं थी
उसी साल गाँव में चेचक फैली ......जिसकी चपेट में मैं माँ ,और मेरा छोटा भाई आ गये ,,,,,,,मैं और माँ
तो बच गये .........पर मेरा छोटा भाई नहीं बच  ....सका 

                    लोग कहने लगे हमारे घर या यूँ कहे हम पे नज़र लग गयी ............है

फिर दादी ने कोई .....ख़ुशी नहीं मनाई ....मैं अपनी दादी को तीन माई कहता था .......यह किसी को नहीं
मालूम और ना ही मुझे मालूम है

          जब दस साल का हुआ .....लोग मुझसे जबरदस्ती दादी कहलवाते थे ,जितना मैं अपनी दादी
प्यार करता था .......उतना किसी को नहीं .........









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