बुधवार, फ़रवरी 20, 2013

   बुढ़ापा 

उनकी उम्र ,यही कोई 85 से कुछ ऊपर है ......तीन बेटे छे बेटिओं की माँ हैं 
पति ने अपने जीते जी ,कोई घर -वार नहीं बनवाया ....एक किराये के मकान 
में रहती थी ....बेटियां अपने ससुराल में है ,बेटे अलग -अलग रह रहे हैं 

               बूढी माँ जी ,अक्सर बेटिओं के साथ ही रहती है ....कभी किसी के साथ 
कभी दूसरी के साथ ....बेटों के यहाँ इनका  मन नहीं लगता है ...बहुएँ इन्हें माँ नहीं समझती 
जब तक हाथ पैर चलता  रहा सभी ने इन्हें खूब प्यार किया .....
                 अब चला जाता नहीं बस धीरे -धीरे बाथ -रूम तक चली जाती हैं ....शरीर 
भारी होने से ठीक से चला नहीं जाता और कोई बिमारी नहीं है दवाई खाने की बहुत शौकीन हैं 
सरदर्द की दवाई .....पेट दर्द के लिए खा लेती है पेट दर्द ठीक हो जाता है 
                  खाना मिले न मिले पर पान जरुर मिल जाय खाने के लिए ....पति की पेन्सन 
इतनी मिल जाती है किसी के आगे हाथ फैलाने की नौबत नहीं आती है .....एक बेटी अपने 
पति से झगड़ के इनके पास आ गयी आज बीस सालों से इन्हीं के साथ रहती है ...पति को भूल चुकी 
है पर उसके नाम का सिंदूर जरुर लगाती है ....हर तीज -त्योहार उसके नाम का जरुर रखती है 

                  माँ की सेवा इस तरह से करती है जैसे उसके लिए ही यह बनी है ....कभी -कभी यह 
कहती है मैं तो माँ के सेवा के लिए उनके कोख से पैदा हुई हूँ ...जिस दिन माँ नहीं रहेंगी ......वही 
दिन भी मेरा आखरी दिन होगा 

                   इधर कुछ दिनों से उनसे चला नहीं जाता ,एक पैर में इतना दर्द होता है कि बिस्तर से उठा नहीं 
जाता ...बाथ  रूम तक नहीं जा पाती ......पोती पास नहीं आती .....बदबू आती है दादी से ......
सभी दूर -दूर बैठते हैं बेटी ही उन्हीं के पास रहती है और वही ही उनकी देख -भाल करती है 

                     अब उनके पास कोई नहीं आता ,सभी दूर हो गये ..........बहु कहती  है ऐसे जीने से मर जाना ठीक है 
बूढी माँ ने सब की आँखों में देखा ...........हर कोई यही चाहता है मैं जल्द से जल्द मर जाऊ ......मौत मेरे बस में 
थोड़े है ..........
                     एक महीना बीत गया सब कुछ बिस्तर पर हो रहा था  ....मेरे आस पास इतनी बदबू थी ,की मुझसे 
भी सांस लेना नहीं होता था .......बूढी माँ मरने के तरीके खोजने लगी .....एक दिन ,बेटो को कहा मुझे नीद नहीं आती है 
नीद की गोली ला दे ....छोटे बेटे ने एक पैकेट जिसमे दस गोलियां थी ला के दे दीं .......
                      
                      माँ ने आज पूड़ी  खाने की इच्छा जाहिर की ......खूब मन से खाया अपनी बेटी को भी खिलाया 
बहु गुस्से में अपने पति से कहने लगी ......तुम्हारी माँ भी ना ....मरने को है और पूड़ी खाने की इच्छा गयी नहीं ......
लड़के ने कहा बस आज की और बात है .......कल से तुम्हारी साड़ी तकलीफे दूर हो जाएगी 


                       रात का कोई दो बजा था बूढी माँ ने बेटी को जगाया .....और बिस्तर के नीचे  से चार पत्ते नींद की गोली 
के निकाले और उसे दिए खाने को दस गोलियां .....बेटी तो खा गयी और वहीं सो गयी ....बूढी माँ ने देखा पानी तो है 
नहीं .......कैसे खाएगी इतनी नींद की गोलियां बाथ रूम तक जाना था पानी लाने के लिए ......तभी बेटे ने उनको पानी का 
ग्लास दिया .........जैसे उसको कुछ मालूम ही ना हो ........और अपने कमरे में सोने चला गया ...........


                           सुबह ......हुई परिवार खुश था ......सब के चेहरों पे चमक थी .......

                      दो घन्टों बाद ......सारी तैयारी हो चुकी थी ले जाने की ........तभी नाती रात के सो के चार टिकट ले आया था 
दुःख को दूर करने के लिए .......आज तो खाना भी बाहर था 

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