एक सफर था मेरा
उनका भी एक सफर थाहम साथ जिए फिर भी अलग -थलग
सोच की एक बूँद ,चिपक कर मेरे साथ
रंग -रूप बिलकुल उनका था
पर उठना -बैठना मेरे साथ था
वह आज बहुत बड़ा आदमी हो गया
अक्सर अपने माँ -बाप को खोजता
मुझ तक आता है
पकड़ कर बहुत रोता है हाथ मेरा
मैं खामोश सा चुप कराता हूँ उसको
तू बरसात की रात मुझे मिला था
खार डांडा की रोड पे
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