ख़ुदा हम सभी में होते हैं बस एहसास करने की बात है
रेहाना दीदी में ख़ुदा रहते हैं यह सभी लोग जानते थे ,जब भी
हमें किसी चीज की जरूरत होती हम उनके पास जाते ,हमारे कुछ कहने
से पहले वह ला कर दे देती , हमारी जरूरत उन्हें पहले से कैसे
मालुम हो जाती थी ? यह रेहाना दीदी कोई और नहीं ,सुभाष घाई की
पत्नी थी। मेरे साथ सन ८६ में हुई एक घटना हुई , अचानक से मेरी नौकरी छूट गयी
तीन बच्चों का पिता था। कहाँ जाऊँ इसी सोच में बैठा हुआ था। तभी
ख़याल आया रेहाना दीदी का। मैं उन्हें पूना से जानता हूँ अशोक की
वजह से वह मेरा रूम मेट था और सुभाष जी का छोटा भाई।
मैं रेहाना दीदी के घर जा पहुंचा ,मुझे देख कर कहने लगी हमारे
.
घर का रास्ता भूल गए थे ? मेरे पास कोई जवाब नहीं था बस चुप रहने के
अलावा। मैंने कहा , नौकरी छूट गयी ? उन्होंने मेरी आँखों में झाँक कर देखा । मेरी आँखों
से दो आंसू टपक गए , फिर उन्हों ने पूछा चाय लोगे ? मैं सुभाष जी से बात
कर लूँगी .
और मैं सुभाष जी का सहायक निर्देशक बन गया फिल्म थी कर्मा ,........
.
रेहाना दीदी में ख़ुदा रहते हैं यह सभी लोग जानते थे ,जब भी
हमें किसी चीज की जरूरत होती हम उनके पास जाते ,हमारे कुछ कहने
से पहले वह ला कर दे देती , हमारी जरूरत उन्हें पहले से कैसे
मालुम हो जाती थी ? यह रेहाना दीदी कोई और नहीं ,सुभाष घाई की
पत्नी थी। मेरे साथ सन ८६ में हुई एक घटना हुई , अचानक से मेरी नौकरी छूट गयी
तीन बच्चों का पिता था। कहाँ जाऊँ इसी सोच में बैठा हुआ था। तभी
ख़याल आया रेहाना दीदी का। मैं उन्हें पूना से जानता हूँ अशोक की
वजह से वह मेरा रूम मेट था और सुभाष जी का छोटा भाई।
मैं रेहाना दीदी के घर जा पहुंचा ,मुझे देख कर कहने लगी हमारे
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घर का रास्ता भूल गए थे ? मेरे पास कोई जवाब नहीं था बस चुप रहने के
अलावा। मैंने कहा , नौकरी छूट गयी ? उन्होंने मेरी आँखों में झाँक कर देखा । मेरी आँखों
से दो आंसू टपक गए , फिर उन्हों ने पूछा चाय लोगे ? मैं सुभाष जी से बात
कर लूँगी .
और मैं सुभाष जी का सहायक निर्देशक बन गया फिल्म थी कर्मा ,........
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