शुक्रवार, नवंबर 13, 2009

९१ कोजी होम

मिर्जा गालिब का पायलट एपिसोड बनाने के लिए , इस तरह का सेट बनाना था
जो ग़ालिब के घर से हो कर ,बल्लीमारा की गलिओं को पार करता हुआ .... ...पास की मस्जिद तक
जाता हो ....इसी सेट पे नसीर के दो गेट -अ़प थे ,बचपन ,जवानी ,और बूढापे का ,बचपन का तो
विशाल सिंह ने किया ......और दो नसीर को करने थे .....नीतिश रोय आर्ट डारेक्टर थे ......और जो उन्होंने
सेट लगाया वह कमाल का था .........फिल्मालय स्टूडियो ...फ्लोर नंबर एक ....सेट अन्दर घर का लगा ...गेट
से बाहर निकल कर बल्लीमारा की गल्ली .....वो गल्ली सीधे मस्जिद की तरफ़ जाती है .....और मस्जिद का सेट
एक एपिसोड बनने के बाद ....पूरा सेट तोड़ दिया गया .......और पायलेट एपिसोड दिल्ली भेज दिया गया पास होने के लिए .........करीब एक साल बाद दूरदर्शन से चिट्ठी आई .....यह एक ऐसा सीरियल था ,जिसमें
सिर्फ़ सत्रह एपिसोड थे .......हमारे निर्माता गुलज़ार साहब से कहते रहे ....इसको छबीस एपिसोड बना दीजिये
पर गुलज़ार साहब ने कहा ....मेरी लिखी हुई स्क्रिप्ट सत्रह में ही पूरी हो रही .....आगे बढ़ा नहीं सकता ।
सत्रह एपिसोड बनने में करीब एक साल लग गया .....फिल्मालय स्टूडियो में एक मैदान था ,जिस
जगह पे .....गालिब का घर ....गली .बाजार ....मस्जिद ....यह सब सेट के रूप में लगा था .....
सुबह नौ बजे की सिफ्टहोती थी .....और शाम होते -होते शूटिंग होती थी .....मनमोहन सिंह कैमरा मैंन थे
जगजीत सिंह जी ने ...इस सिरिअल में अपनी आवाज से ग़ालिब के गज़लों और शेरों को नई
जिन्दगी दी ....उनकी पत्नी चित्रा जी ने उनका साथ दिया .....नसीर साहब जब सीन करते .....सीन को वो एक दिन
पहले घर से तैयार कर के आते थे .......और हमें वही सीन करने होते थे ......
मनोहर सिंह जी ने एक हिंदू शायर का किरदार किया था .......नसीर साहब के साथ दो सीन थे
गुलज़ार साहब ने कहा ...मनोहर सिंह ही इस किरदार को निभायेगें ......पैसे को लेकर निर्माता खुश नही थे
मनोहर सिंह कुछ ज्यादा ही पैसे ही मांग रहे थे ........निर्माता ने कहा मैं इतने पैसे नहीं दे सकता .....मनोहर सिंह
के घर सेट जो लगा था ....वह सिर्फ़ दो दिनों के लिए था ....उसके बाद टूट जायेगा ......जय सिंह ने जिद्द कर लिया
इतने पैसे मैं नही दे सकता ....मेरी समझ में नही आ रहा था ..क्या किया जाय ?
दुसरे दिन समय पे शूटिंग हुई ........निर्माता ने मुझ से पूछा ...मेरे बताये पैसे पे मनोहर सिंह मान
गए .....मैंने हाँ में सर हिला दिया .....शाम को पेमेंट देना था ...निर्माता ने पाँच हजार का चेक बनाया .....मैंने
वो चेक सुनील को दिया और कहा ..पाँच हजार कैश भी दे देना .....सुनील की कुछ समझ में नही आया ....उसे
समझाया यह पैसे मेरी तरफ़ से है .......दो आदमिओं की जिद्द में आज शूटिंग ना होती .....अगर सेट टूट जाता
बाद में यही सेट बनाने के लिए पचास हजार लग जाता ......सुनील मेरी बात समझ गया .......
कई महीनो बाद जय सिंह जी ने मुझ से पूछा ....मनोहर सिंह कैसे मान गए ...फ़िर मैंने उनकों
सच बता दया .......
ग़ालिब साहब जो टोपी लगाते थे .....उसकी कापी करने के लिए ....गुलज़ार साहब ने गालिब
की पुरानी फोटो को देखा .......ग़ालिब की टोपी में उपरी हिस्से में एक सफेद पैच था .......उसी को अपनाया
गया ......एक घटना है इसी सेट की .......एक सीन था ...जिसमें गालिब आम खाते हैं .....आम का सीजन था नही
आम आए कहाँ से .....बडी मुश्किल से दस -बारह आमों का इंतजाम हुआ .....एक दिन पहले मैं उसे ले आया .....
और घर में रख दिया ....... सुबह जब मैं शूटिंग के लिए जाने लगा तो पता चला ....आम कोई खा गया .....
सिर्फ़ कुछ ही आम बच्चे हैं .....रात को मेरे बच्चों को जब पता चला ...पापा आम ले कर आए है .....मैं तो सो गया
बच्चों ने ...मेरी माँ से आम मांगा और उन्होंने दे दिया .....माँ से कहा ..यह आप ने क्या किया ....यह तो शूटिंग
का आम था ......सेट पे पहुँचा .....और एक झूठ बोलना था ......सेट पे एक आदमी मेरे पास आया
और कहने लगा आप से कोई मिलने आया है ......जब मैं उससे मिलने गया ....वह अपनी पूरी फैमिली ले कर
आया था ...शूटिंग देखने के लिए ...यह वही आदमी था जिससे मैं आम लेकर आया था ......मुझे जान में जान
आई .....मैंने बहुत प्यार से उसकी फैमिली को सेट पर ले गया .....और इससे पहले कुछ कहता .....उसने कहा
मैं आप के लिए एक पेटी आम ले कर आया हूँ .... मेरी जान में जान आई ........नसीर साहब को खाना था ना ॥
और आप के जाने के बाद ...यह पेटी आई मेरे पास ......मेरे साले ने जावा से भेजा था ...यह सारा किस्सा मैंने
नसीर साहब को बताया .....वह भी बहुत अच्छे ढंग से मिले ....और मैंने उनकी फैमली को लंच खिलाया .....
और आज तक मेरे दोस्त हैं ........

3 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आज तसल्ली हुई ये दास्ताँ पढ़ कर...थोडी लम्बी लिखी है ना आपने...अच्छा लगा...मिर्जा ग़ालिब उस वक्त से लेकर आज तक मेरे बहुत पसंदीदा सीरियल में से है...उसकी डी.वी.डी. आज भी फुर्सत मिलने पर देखता हूँ...ग़ालिब के जूतों से निकली चरमराहट की आवाज़ का तो मैं दीवाना था...वो कैसे निकली गयी थी? आज का आपका ये एपिसोड न्बहुत दिलकश लगा ऐसे ही लिखते रहें...

नीरज

अजय कुमार ने कहा…

रंग जमने लगा है

Neeraj Rohilla ने कहा…

किन अल्फ़ाजों में आपका शुक्रिया अदा करें।
बमुश्किल १३ साल के रहे होंगे जब टीवी पर इस सीरियल को देखा था और तभी जगजीत सिंह जी की गायकी और गालिब के अशार दिल में बैठ गये थे। बहुत से शब्दों का तो अर्थ भी पता नहीं था लेकिन अदायगी के भाव से ही अंदाजा लगाते थे।

आज मेरे पास मिर्जा गालिब टी वी सीरियल का डीवीडी सेट है और इसे कितनी भी बार देख लो मन नहीं भरता।

आपको हमारा नमन...