मेरी मुलाकात उससे ,एक ट्रेन के सफर में हुई थी ,मेरे पास एक बर्थ थी ,कानपुर में एक जानपहचान का आदमी मिला ,मुझसे कहने लगा तू तो मुम्बई ही जा रहा है ना ! मैंने हाँ में कहा ,क्यों क्या बात है ? कहने लगा ,क्या है एक असामी लड़की मुंबई जा रही है ,उसे अपनी सीट पे आपने साथ ले जावो ? मैं चुप, फिर उसने पूछा क्या सोच रहा , लो वह आ ही गयी ,खुद सब कुछ कहने लगा ,इसके साथ बैठ जाओ यह मुंबई ही जा रहे है मेरी तरफ देख के क्या सीट नंबर है तेरा ? लो ट्रैन भी चल दी ,चलो बैठ जाओ ,वह लड़की जिसे अभी तक मैंने ठीक से देखा भी नहीं था ,मेरे साथ आ के ,मेरी सीट पे बैठ गयी ,मैं खिड़की से बाहर देखने लगा आस - पास बैठे लोग समझनहीं पा रहे थे ,यह क्या माज़रा है कोई एक घंटे के बाद ,उसकी तरफ देखा तो वह सीट के सहारे सर रख के सो रही है ,इस बार उसका चेहरा मैंने ठीक से देखा , बिल्कुल शांत ,गोरा रंग ,बैठी हुई नाक ,ओंठो का रंग लाल सुर्ख बार -बार सर उसका एक तरफ गिर रहा था ,मैं उसके थोड़ा करीब हो के बैठ गया ,इस बार उसके सर को मेरे कंधे का सहारा मिल गया ,और वह आराम से सोती रही।
उरई स्टेशन आया, गाडी यहां रुकी,, रुकने से एक झटका सा लगा और उस असामी लड़की की आँख खुली ,और तुरंत ही जब एहसास हुआ मेरे कंधे का सहारा उसने लिया है , तुरंत ही कहा सॉरी …… कोई बात नहीं। फिर कहने लगी मैं सो नहीं पाया कल से ,बहुत भीड़ था ट्रेेन में ,सॉरी। नो प्राब्लम ऐसा है ,आप आराम से लेट जाइए ,अभी तो लंबा सफर है ,वह अपनी छोटी -छोटी आँखों से मेरी तरफ देखती रही। जैसे उसे कोई भला इंसान मिल गया हो। इतना कहने के बाद सच में ही मेरी सीट पे लेट गयी ,और मुझे थैंक्स कहा लेकिन मैंने खिड़की नहीं छोड़ी वहीं बैठा रहा ,उरई से ट्रैन चल दी ,सामने बैठे हुए एक साहब ने हिम्मत कर के मुझसे पूछ ही लिया ,कौन हैं मेडम ? थोड़ा रुक के जवाब दिया, पहले मैंने उनकी आँखों में झांक के देखा , और फिर जवाब दिया , मेरे दोस्त की बहन है ,मेरे साथ चल रही है ,अब कुछ मत पूछना ! वह सच में डर गया ,यही सब बात चीत हो ही रही थी ,उस असामी लड़की ने मेरे जांघो पे अपना सर रख दिया ,यह देख के मैं एक पल को डर गया ,लेकिन जिन साहब ने मुझसे पूछा था ,वह यह देख के बाथ रूम की तरफ चल दिए , मैं बिलकुल ही फंस गया और वह सच में सो रही थी या जाग रही थी ?
उरई से झांसी तक आने में करीब तीन घंटे लगे मेरे पैर सुन हो रहे थे ,और वह आराम से कभी इस करवट कभी दूसरी करवट होती रही ,सामने वाले मौलाना जी अंदर ही अंदर हंस रहे थे ,बीच में एक बार उन्होंने कहा भी मुझसे ,मोहतरमा को एक तकिया दे दीजिये वरना ……………………। मेरी हालत उस कुत्ते की थी ना घर का ना घाट का ,कैसे भी जब झांसी आ के गाड़ी रुकी मेरे कहने से पहले वह खुद ही वह उठ बैठी ,कहने लगी खूब सोई, अब तो भूख लगी है। सामने बैठे मौलाना जी की हम पे पूरी नज़र रहती थी हर बात को बकायदा सुन रहे थे। हम दोनों स्टेशन पे आ गए ,वह मेरे हाथों में हाथ डाले स्टेशन पे घूमने लगी ,जैसे कोई नए जोड़े हों,, ट्रैन झांसी में दो घंटे रुकती है,, पीछे से पंजाब मेल आती है,, उसी में यह चार डिब्बे लगते हैं,, फिर गाड़ी आगे जाती है। हम दोनों में अभी तक कुछ ही बाते हुई थी ,एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं पूछा गया ? इसकी पहली वजह थी ,उसे सिर्फ इंग्लिश ही आती थी मुझे सिर्फ हिंदी ,दोनों थोड़ा हिंदी और इंग्लिश समझ और बोल पाते थे। हम स्टेशन के एक रेस्टोरेंटमें पहुंचे ,और लड़की ने मटन का ऑर्डर किया मैंने थाली मांगी वह उस समय बारह आने की आती थी। लेकिन मुझे एक ही डर सता रहा था यह साढे चार रुपए का बिल कौन देगा?
पहले बिल देने की इच्छा ज़ाहिर की लेकिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया , नो ई विल पे ,और उसने पैसे दिए ,फिर उसने कहा आई वांट स्मोक ,मैंने कहा ओके , मैं बाहर गया एक सिगरेट जला के ले आया ,उस वक्त खुले रूप में लड़कियां सिगरेट नहीं पीती थी ,रेस्टोरेंट में मैं एक कस लेता था , फिर उसे दे देता था। इस तरह उसने सिगरेट का मजा लिया
तभी वेटर ने कहा साहब पंजाब मेल आ रही है। हम दोनों जल्दी से उठे और अपने कम्पार्टमेंट की तरफ चल दिए।
मौलाना जी हमारा इंतज़ार ही कर रहे थे ,कहने लगे ,मुझे लगा आप लोगो ने झांसी को ही आशियना बना लिया है ,अब मुझे लगा इन्हे भी कोई जवाब देना चाहिए ,जनाब हम तो आजाद पछींं हैं,, कहीं भी बसेरा बना लेते है,, कहीं भी चटाई बिछा के सो जाते हैं,, हमारा क्या है, आप ने कुछ खाया -पीया या यूँ ही सूखते रहे डब्बे में ? अब कुछ बोले मैंने उस बेला को (फिलहाल उसे बेला ही बुलाते हैं ) खिड़की के पास बिठा दिया , मौलाना जी से रहा नहीं गया ,कहने लगे मोहतरमा की आँखों में कोयला चला जाएगा , हुजूर अब बिजली का इंज्जन लगेगा ,कोयला नहीं उड़े गा ,कोयला का वक्त गया।
बेला कुछ समझ नहीं पा रही थी ,लेकिन उसे यह महसूस हो गया था ,जो बाते हो रही थी उसे लेकर हो रही थी , तब उसने मुझसे पूछा व्हाट ही इज सेयिंग ,कुछ नहीं बस उनको अच्छा नहीं लग रहा व्हाई यू आर सो क्लोज टू मी ? ओह ओल्ड मैन ,पुअर ,मौलाना यह सुन के चुप हो गए ,और वह असामी लड़की मुझ से इस तरह चिपक के बैठ गयी ,और कभी -कभी
मुझे छेड़ देती ,मेरे गालो को छू लेती और मेरी जाघों के बीच अपना हाथ दाल देती ,मतलब बेशर्मी की हद हो चुकी थी। मौलाना अब खिड़की से बाहर ही झांकते रहे बस ,कभी कदार कनखिओं से झांक लेते ,टूटी -फूटी इंग्लिश में अपने बारे में बतलाया ,उसने अपने बारे में बताया वह मुंबई में सेंजेबियस में पढ़ती है ,मैं अब समझ गया बड़े घर लड़की है ,तभी तो घर से इतनी दूर पढ़ती
है।
रात का कोई नौ बजा था ,भोपाल आने वाला था ,भूख लगी थी हम दोनों को ,हम लोगो ने सोचा, अब खाना खा लेना चाहिए लेकिन कैसे खाया जाय ,माँ ने मुझे पूड़ी और शब्जी बांध के दिया था ,लेकिन दोपहर को खा नहीं सका था ,अब तक बेला से इतनी पहचान हो चुकी थी कि छिपा के खा सकता नहीं था ,मैंने कहा ,माँ ने कुछ फ़ूड दिया है ,यु लाइक टू ईट ,?यह
सुन के उसने बेहिचक हाँ कह दिया। फिर मैंने अपने बैग से एक डिब्बा निकाला ,एक ही डब्बा था ,मैंने उसके हाथ में पकड़ा दिया और बैग बंद कर के ऊपर रख दिया ,उसने मेरी तरफ देखा और कहा खोलो ,मैंने खोल के देखा ,तो पाया मीठी वाली पूड़ी थी और आचार आम का ,आचार देख के बोल पड़ी ,आई लाइक पिकल्स ,और मुस्करा इस तरह थी जैसे उसको कुछ वह मिल गया
जिसकी वर्षों से इच्छा थी और कहने लगी यू ईट चपाती ,एण्ड आई विल टेक मैंगो पिकल्स ,उसने दोनों आचार उठा लिए और खाने लगी ,और मैं मीठी पूड़ी खाने लगा। वह यूँ चटखारे ले खाने लगी की सामने बैठे मौलाना जी से रहा नहीं गया ,और बोल ही पड़े ,क्यों भाई, बहन का पैर भारी है क्या ? जो इतना आचार खा रहीं है। पैर का तो पता नहीं ,हाँ ! हाथ भारी जरूर है , यह सुन के मौलाना
साहब चुप हो गए ,उनको एहसास था ,अब कुछ और बोला तो कुछ उलटा हो ही जाएगा। मैं मौलाना जी की तरफ देखता रहा ,और मीठी पूड़ी भी साथ -साथ खाता रहा ,गुस्सा इतना आ रहा था , यह कुछ और पूछे मैं इसके मुँह पे एक कस के घूंसा जमा दूँ , मौलाना समझ गया था कि मैं गुस्से में हूँ ……………… .।
रात का एक बज रहा था , सामने के मौलाना जी सो चुके थे। जाड़े का मौसम था ,मेरे पास एक कम्बल था ,जिसे मैंने बैग से निकाल लिया था , लेकिन बेला के पास कुछ नहीं था लेकिन उसने लेदर का जैकेट पहना हुआ था पैरों में गर्म मोज़े थे , यह शरद रात इन्हीं कपड़ों में ही बिताएंगी ,मुझे लगा रात मेरी बैठे -बैठे ही गुजरेगी ,मैंने आधा कम्बल उसकी तरफ बढ़ा दिया
सभी लोग सो चुके थे , बेला भी खामोश सी बैठी खिड़की से बाहर झाँक रही थी ,चांदनी रात थी ,चाँद के उजाले में कुछ नज़र आ रहा था ,और इस ठंड रात में बाहर का मौसम कैसा होगा इसका अनुमान अंदर से लगाना मुश्किल ही था । मैं आँखे बंद किये ,यही सोचे जा रहा था । रात तो बड़ी लम्बी है ,इस तरह बैठे बैठे कैसे गुजरेगी ?और एक सीट पे दो लोगो का सोना ,और फिर वह एक लड़की है
बार बार मैं अपने दोस्त को कोसता जा रहा था ,उस वक्त ट्रेन की जो सीटें होती थी वह पटरे की होती थी ,नीचे से भी ठंडी हवाएँ से छू रही थी । तभी मुझे महसूस हुआ ,वह मुझे हिला रही थी ,आँखे खोली ,बेला मुझसे कह रही थी ,यु स्लीप , आई ....... सिट। नो नो नो आप सो जावो ……… । उसने मेरी बात को अनसुनी कर के मुझे जबरदस्ती लिटा दिया ,और उसने अपना बैग ,एक तकिया बना
के मेरे सर के नीचे रख दिया ,मुझे उसकी बात माननी पड़ी ,और उस ने कम्बल ठीक से मुझ पे डाल दिया ,और थोड़ा सा अपने ऊपर रख लिया । मैं आँखे बंद किये यही सोचे जा रहा था ,कैसा रिस्ता बनता जा रहा था ,उसने कम्बल में से मेरे सर को सहलाने लगी ,उसका हाथ गर्म था ,उसका इस तरह सहलाना मुझे अच्छा लगने लगा , सच कहता हूँ मुझे अपनी माँ की याद आने लगी ,एक पल को उसके बारे में जो गलत -सलत विचार थे वह सब कहाँ गए ,मैं कब सो गया मुझे पता नहीं चला ।
सुबह जब आँख खुली तो वह सीट पर नहीं थी ,किससे पूछूं समझ नहीं आ रहा था ,कोई स्टेशन था ,बाहर चाय ,गर्म चाय ,चाय गर्म आवाजे आ रही थी ,मैंने खिड़की से झांक कर देखा ,पास ही उसका बैग पड़ा हुआ था ,यह देख के मन शांत हुआ ,अब उसका साथ रहना अच्छा लग रहा था ,तभी वह खिड़की पे दो चाय ले कर आई ,और उसने मुझे नाम से बुलाया मिस्टर नीरज टेक टेक मैंने एक चाय ले ली ,इट्स हॉट ? यस इट्स हॉट ,ट्रेन चलने लगी ,जल्दी आवो मैंने कहा ,वह पीछे भागी ,ट्रेन धीरे -धीरे तेज चलने लगी ,लेकिन बेला अभी तक नहीं आई थी ,मैं थोड़ा चिंतित हो गया ,मैंने डिब्बे में इधर उधर देखने लगा वह कहीं नज़र नहीं आ रही थी ,मैंने दरवाज़े के पास बैठे लोगो से पूछा ,एक आसामी लड़की ट्रेन में अभी चढ़ी थी ,उसने ना में सर हिला दिया ,कोई नहीं चढ़ा ,मैं डर गया ,दरवाजे पे खड़े कुछ लोगों से पूछा ,भाई साहब कोई पहाड़ी लड़की इधर से अभी मनमाड से चढ़ी थी ? मुझे पता नहीं ! अब मैं डर गया ,बहुत डर गया ,लगा मुझे किसी को जवाब देना है ,फिर मैं सोचने लगा ,एक पहचान थी ,फिर मुझे अपने आप पे गुस्सा आने लगा ,इतना नीच हूँ मैं , वहीं खड़ा हुआ कितना कुछ सोच गया ,उसकी मौत तक , मैं अपनी सीट पे आ के बैठ गया ,मौलाना जी ने पूछ लिया ,क्यों भाई मेडम चढ़ नहीं सकी ,फिर तो आप को उतर के मनमाड जाना होगा ! मैं खामोश क्या बोलता ,सभी मुझ से कुछ ना कुछ पूछे जा रहे थे ,मेरे पास कोई जवाब नहीं था ,एक साहब बोल पड़े ,कमाल करते हैं आप को कुछ नहीं मालूम झांसी में तो आप हाथ में हाथ डाले घूम रहे थे ,और अब कह रहे हैं आप उसका नाम ही नहीं मालूम ,यह कैसा रिस्ता था ?
ट्रेन जलगाँव में रुकी ,मैं सच में उतरना नहीं चाहता था ,लेकिन लोगो के कहने पे मैं उसका समान ले कर उतार गया ,तभी देखा गार्ड के डिब्बे से वह निकल रही है। मैं भाग के उसके पास गया गार्ड इसकी तरफ देख रहा था ,और कह रहा था ,गो गो गो फ़ास्ट फिर क्या था ,हम दोनों भाग के अपने डब्बे में पहुंचे ,तभी मौलाना जी ने पूछ लिया ,क्यों भाई मिल गयी मोहतरमा ,तभी मेरे पीछे से बेला आ गयी ट्रेन तेज हो चुकी थी ,वह खिड़की के पास बैठ गयी ,और उसने मुझसे माफी मांगी ,उसकी आँखे नाम थी ,अब मुझसे देखा नहीं गया , मैंने उसे अपने गले लगा लिया । लोगो ने यह देख के ,सोचा होगा हमारा रिस्ता क्या है ,क्या हो सकता है ,और क्या नहीं हो सकता ? अब वह मुझसे मेरे बारे में काफी कुछ जानना चाह रही थी ,मैंने अपने बारे में इतना कुछ बता दिया ,कब कल्याण स्टेशन आया पता ही नहीं चला ,मुझे यहीं उतरना था ,और दूसरी गाड़ी पकड़ के पूना जाना था ,मैं अपना समान ले कर ट्रेन से बाहर आ गया वह अंदर ही बैठी रही ,मैं खिड़की के पास आया उससे अलबिदा ली हाथ मिलाया ,उसके पास
एक किताब थी वह उसने मुझे दी और मैंने उसे थैंक दिया और चल दिया।
यह ट्रेन का सफर मुझे हमेसा याद रहा ,जिसको सुनाया ,उन सब ने बहुत ही गलत ढंग से लिया ,लेकिन वह किताब जो उसने मुझे दिया था ,उसके बारे में मैंने किसी को नहीं बतलाया ,वह बुक क्या थी यह किताब उसकी लिखी हुई थी ,जिसमे उसकी पूरी कहानी थी ,किताब के पीछे उसकी फोटो भी थी। उस किताब का नाम था , कॉल गर्ल .........................।
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