गुरुवार, नवंबर 13, 2014

पुराने दोस्त

उनको गुलज़ार साहब ,कैलाश कह बुलाते हैं ,दोस्त हैं स्ट्रगल पीरियड के , आज भी वैसा ही रिस्ता है।  मैंने उनका नाम पहली बार तब सुना ,जब गुलज़ार साहब का मुख्य सहायक था।  हुआ कुछ इस तरह ,दो गाने
फिल्म इजाजत के रिकार्ड हो  चुके थे।  गुलज़ार साहब ऑस्ट्रलिया  जा चुके थे। और गुलज़ार साहब ,कैलाश को
मुख्य सहायक लेना चाहते थे ,यह बात मुझे बलराज टांक के जरिये कहा  गया ,मैं एक पल को खामोश हो गया

               मैं दुखी था उनका साथ जो छूठ गया , बीस सालो बाद एक दिन मेरे पास फिर से गुलज़ार साहब का फोन आया कहने कहने लगे ,मुझे कैलाश जी का पता निकाल के दो वह कहाँ है ?  मैं कुछ समझा नहीं ,फिर
उन्हों ने कहा ,उसका मोबाइल नंबर तो है ,लेकिन उठा नहीं रहा है , मुझे एक डर लगने लगा , कहीं  ……।
   
            थोड़ी देर अपने में रहा ,कैसे उनका पता खोजूं ,एक दोस्त  फोन किया उसने कहा, कुछ  साल भर पहले
मेरी मुलाक़ात हुई थी उनसे ,एक नंबर दिया था उन्होंने ,मैं देता हूँ ,फिर उसने  एक बात और कह दिया ,सुना
है उनकी मौत हो गयी ,मैं भी डर गया।   थोड़ी देर गुमसुम बैठा रहा ,यह खबर मैं कैसे दूंगा गुलज़ार साहब को
यही सोच मुझे घेरे हुए थी ,

            कोई एक घंटे के बाद अहमद का मैसेज आया जिसमें कैलाश  नंबर लिखा हुआ था , सोचने लगा फोन
कैसे करूँ ,मैं तो उनकी आवाज भी  चुका था ,फिर भी हिम्मत कर के फोन किया दो घंटी के बाद किसी ने  उठाया ,मैंने कहा   ,आप कैलाश जी बोल रहे हैं , हाँ  मैं,  मैं कैलाश ही बोल रहा हूँ , कैलाश आडवाणी  जो गुलज़ार
साहब के सहायक हुआ  थे।  हाँ भाई मैं वही बोल  रहा हूँ ,कैलाश आडवाणी ,हाँ बोलिए क्या काम है ?

                   मैंने फिर थोड़ी देर बाद ,गुलज़ार साहब  फोन कर के बता दिया यह कैलाश  नंबर है। ……

फिर क्या हुआ कैलाश मिले गुलज़ार साहब से  ……………… दोस्तों में जो मन मुटाव था वह दूर हो
गया   ………………………………………।            

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