सोमवार, नवंबर 04, 2019

नर्स

दोस्तों बहुत वक़्त हो गया ,आप लोगों से बातचीत किये हुए।  आज मेरी बेटी ने जिद्द की ,आप ने लिखना क्यों
छोड़ दिया ? वजह तो कुछ थी नहीं बस , आलस ही समझ लीजिए।   अब आप को मेरे ब्लॉग पर कुछ जरूर
मिलेगा  जिससे आपको वह जानकारी हासिल होगी  जो आप को कोई और नहीं बता सकता।


       यह कहानी एक नर्स की ,जिसका एक ही  काम है , सेवा भाव। सिर्फ  दूसरों के लिए जीना ,इसके बदले
कुछ पैसे मिल जाते हैं।  जिससे इसके माता पिता और चार भाई -बहन  का   गुज़र -बसर हो   जाया करता है। इधर कुछ महीनो से वह खाली बैठी थी। एक जगह नौकरी करती थी वह छूट गयी। दूसरी कई जगह कोशिश की लेकिन हुआ कुछ नहीं।


         एक रात की बात है ,आँखों में नींद नाम की कोई चीज नहीं थी ,खुली आँखों से छत को देख रही थी। एक
छिपकली उसके  ऊपर ही छत पे बड़े ध्यान से एक कीड़े को देख रही थी। जो  इससे बड़ा ही था और यह उसे खाने फिराक में  एक टक देखे जा रही थी। जैसे ही छिपकली उस कीड़े पे लपकी ,कीड़ा मेरे पास आ के गिर गया और इसके साथ -साथ छिपकली भी गिर गयी। मैं डर के विस्तार से नीचे गिर गयी। विस्तार पे देखा छिपकली के मुँह में पूरा कीड़ा समा गया। धीरे धीरे  उसे  वह निगलने लगी।  मैं उसे भगाने के लिए झाड़ू खोजने लगी ,जब तक झाड़ू ले कर आयी। वह भाग चुकी थी ,विस्तार को फिर से अच्छी तरह से झाड़ा। छिपकली को ना पाकर छत की तरफ देखा ,वह फिर उसी जगह नज़र आयी।

         बेड को कविता ने खिंच कर एक तरफ कर लिया ,एक डर अंदर समा जो चुका था।  तभी उसका मोबाईल  बजने लगा। पास पड़े टेबल से उठा के देखा तो उसकी फ्रेंड मीना का फोन है। कविता इसे भी बता चुकी थी ,काम के बारे में।  हेलो  हाँ ठीक है ,मैं पहुँच जाऊँगी  ठीक है।यह सुन कर  छिपकली का डर कहीं गायब हो चुका था ,और वह विस्तार पे आराम से लेट गयी ,सुबह होने के इन्तजार में।


              संजय अपने पिता को उनके बेड पे ही स्पंजिंग कर रहा था। उसके पिता बेड पे ही  पड़े रहते थे। सब कुछ उसी विस्तार पर ही होता था। एक नर्स रखा था ,वह छोड़ के चली गयी जब तक दूसरी नहीं मिलती सब कुछ संजय को ही करना पड़ता है। नर्स की तलाश जारी थी।  डोर बेल बजने पे संजय ने जा कर दरवाजा खोला ,सामने कविता खड़ी थी। पूरी नर्स की ड्रेस में थी ,संजय ने उसे अंदर आने को कहा।  अंदर आ जाइये ,आपको को मीना  जी ने भेजा है ? जी हाँ  ,आइये  कविता उसके पीछे पीछे चल दी।

             एक बहुत बड़ा कमरा ,बहुत खूबसूरत सा ,एक तरफ बेड  लगा हुआ है ,जिस पे एक बुजुर्ग सोया हुआ
है। जिसके शरीर में कई नली लगी हुई है ,किसी से साँस लेता है किसी से खाना खाता है ,किसी से पेशाब बाहर जाता है। यह मेरे पापा हैं ,आप को फुल टाइम इनकी देख भाल करनी होगी !यहाँ पर ही आप के खाने -पीने का इंतजाम होगा और महीने के पचास हजार मिलेंगे।  क्यों ठीक है ना  ?कविता कुछ बोल नहीं पाई ,बस चुप रही
फिर धीरे धीरे कदमों से  मरीज  के पास पहुँची और  ध्यान से देखने  लगी।

            फिर संजय कहने लगा , यहाँ आप को किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी।  फिर क्या समझूं आप यहाँ
काम करयेंगी ?यह मेडिसिन का पर्चा है इसमें सभी दवा लिखी  हैं  ....दवा उस टेबल की दराज में रखी हैं  ठीक है।  बिना जवाब सुने संजय कमरे से बाहर चला गया  और फिर  एक मोबाइल ले आया और कहने लगा........      यह अपने पास रखिये सिर्फ नौ नंबर दाबियेगा , जिस चीज की जरूरत  होगी वह आप के पास हाजिर होगी। और हाँ मैं  आप के अकाउंट में  एडवांस सैलरी डाल  देता हूँ। आप मुझे अपना बैंक अकाउंट दे दीजिये। इतना कह के संजय वहां से चला गया। यह सब इतनी तेजी से हुआ जैसे वह फिल्म देख रही हो जिसको रोकना उसके बस में ही ना हो। कुछ सोच कर  कविता मरीज की तीमारदारी में लग गयी। उसने वह फोन देखा जो संजय दे कर गया था ,कुछ सोच कर उसने नौ नंबर दबा दिया। कुछ ही देर में एक लड़की कमरे में आयी और कहने लगी "यस   मेडम "  मुझे नास्ते में कुछ खाने को चाहिए।  क्या लेंगी  ? कुछ भी  !

          संजय अपने ऑफिस के कमरे में बैठा टी  वी पे सब देख रहा है। कविता क्या कर रही है कैसे वह उसके पिता  की देख भाल कर रही है। इस दौरान कविता किस तरह दवा को चेक करती है ,इंजेक्शन को देखती है उसमें दवा भर्ती है और ग्लुकोश के बॉटल में इंजेक्ट कर देती है। यह देख कर संजय ने अपना टी ,वी ,बंद कर दिया।संजय के चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कराहट है

       

           


         

       

कोई टिप्पणी नहीं: