कुछ देर बाद उससे बातचीत होने लगी, उसने अपना नाम बताया और काम बताया। वह एक ड्राइवर की नौकरी करता था ,एक बहुत बड़े व्यापारी के पास । बस थोड़ी थोड़ी बातें उससे होने लगी और मैंने भी अपने बारे में बताया । कब आंख लग गई पता ही नहीं लगा । जब ट्रेन झांसी पहुंची उस वक्त रात का एक बजा हुआ था शायद इससे भी कुछ ज्यादा टाइम था ।मेरी आंख खुली तो मेरे बगल वाली सीट पर वह आदमी नहीं था ,बस उसकी औरत सो रही थी उपर वाली सीट पर ।मेरी कुछ समझ में नहीं आया वह आदमी कहां गया , यही सोच विचार में कुछ वक्त निकला और मैंने फिर से सोने की कोशिश की और अपने आप आंख कब लग गई पता ही नही चला ।
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