सोमवार, जनवरी 16, 2017

आँख

आँख ,कुछ कहानी ही कुछ इस तरह की है ,जिसको समझना बहुत मुश्किल हो जाता है
   जब उनसे आँख मिली थी ,एक पल को मैं किसी अथाह समुन्द्र में डूबने लगा । फिर किसी
   ने मेरे हाथों को पकड़ के खिंच लिया ,यह मुझे नहीं समझ आया किसने बचाया ।

           आज फिर उनसे मुलाक़ात शेयरिंग ऑटो रिक्सा में हो गयी । तीसरी सवारी नहीं मिल
रही थी ,क्या सोच के मैंने कह दिया चलो । मैं डबल दे दूँगा ,फिर उन्होंने मुझे देखा और रिक्से
से उतर गयीं , मैं कुछ समझा ही नहीं ,उसने मुझे घूर के देखा । साहब आप अब अकेले ही चले
यह मेडम ग़लत समझ रहीं थी ,मुझे मालुम है आप को जल्दी है चलिए  ।

           उसी शाम फिर कुछ हुआ ,जिसे मैं समझ नहीं पाया । रिक्शा स्टैंड पे जैसा पहुँचा और एक
 खाली रिक्शे में बैठ गया ,तभी हवा के झोके की तरह वह भी आयी और बैठ गयी और रिक्शे वाले
को कहा चलो ,डबल मैं दे दूँगी ।  

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