भंगार By Ram Lakhan Mishra
शनिवार, अक्तूबर 01, 2022
पुष्पक 2
कब ट्रेन भोपाल पहुंची पता ही नहीं चला । कंपार्टमेंट में बहुत शोर हो रहा था, आंख खुली वह नारी बैठी हुई खामोशी से मेरी तरफ देख रही थी। उसने मुझसे पूछा, भैया आप मुंबई जा रहे हैं ? मैंने कहा हाँ मुंबई जा रहा हूं, फिर वह धीरे से कहने लगी मेरे पति अभी तक आए नहीं, काफी वक्त हो चुका है। वह कहीं खो तो नहीं गए हैं? मैं उसकी तरफ खामोशी से चुपचाप देखने लगा ,कुछ तलाश करने लगा उसे समझाने के लिए। कैसे इस आदमी के साथ आ गई, जिसको इतनी फिक्र नही कि उसकी पत्नी को साथ लेकर जा रही है। कुछ विचार करने के बाद तभी ट्रेन में चाय बेचने वाला आ गया , मैंने उसे एक चाय दी और खुद भी एक चाय ली, बहुत सोचने के बाद यह महसूस किया । यह लड़की कहीं अनजाने में ,इस ठग आदमी के साथ झूठ मुठ की शादी करके , इसके साथ चली तो नहीं आई ? फिर उस औरत की तरफ देखता हुआ , मैंने पूछा , एक बात बताना तुम इस आदमी को कब से जानती हो ? उसने शर्मा के कहा मैंने जाना कहां, अभी 2 दिन पहले शादी की और इनके साथ चली आई मुंबई की तरफ, अब आप ही बताइए अगर वह नहीं आएंगे तो मैं कहां जाऊंगी ? मैं कुछ पल सोचने लगा , मैंने कहा मैं तुमको कुछ पैसे दे देता हूं, तुम यही भोपाल स्टेशन पर उतर जाओ और दूसरा टिकट लेकर अकबरपुर चली जाओ जहां कि तुम रहने वाली हो । उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा ,वह आ गए तो ? यह सुनकर ,मैं ध्यान से उसके चेहरे को देखने लगा, बहुत सोच समझ के पूछा ? कहीं तुम इसके साथ भागकर तो नहीं जा रही हो ? उसने अपना मुंह छुपा कर कहा । यह क्या पूछते हैं भैया , मेरी इनके साथ शादी हुई है और मैं उनकी पत्नी हूं, मैं कैसे इनके साथ ? मैं कुछ पल सोचने लगा और फिर उसको समझाने की कोशिश की ।देखो अब तुम्हारे पास कोई और रास्ता नहीं है, ना तुम मुंबई में किसी को जानती हो । इससे अच्छा तुम अपने घर अपने गांव चली जाओ , वहां तुम्हारे मां-बाप हैं, भाई बहन हैं । उसके बाद तुम अपने पति की तलाश कर लेना । कुछ सोचने के बाद उसने मुझे जवाब दिया । देखिए भाई अब मैं अपने गांव नहीं जाने वाली ,वहां जाकर मैं क्या मुंह दिखाऊंगी ? कि मैं उनको छोड़ कर आ गई हूं । मैं मुंबई जाऊंगी और वहां उनकी तलाश करूंगी हो सकता है कहीं ना कहीं तो ट्रेन में बैठे ही होंगे ऐसा तो है नहीं मुझे छोड़ कर चले गए हैं । और जाना ही था तो शादी क्यों की थी मुझसे, आप मुझे कुछ दिनों के लिए अपने घर में जगह दे दे तो अच्छा रहेगा । मैं उनको खोज लूंगी, कैसे भी करके खोज लगीं, बस इतनी सी मेहरबानी मुझ पर करें कि मैं उनको खोज सकूं ,इतना सुन्दर कर मुझे बहुत अच्छा लगा ,समझदार है ।खामोशी से चुपचाप कुछ जवाब ना दे कर बाथरूम की तरफ चला गया ।
सोमवार, सितंबर 19, 2022
पुष्पक
पुष्पक ट्रेन लखनऊ से यह शाम के 7:30 बजे चलती है ,मैं भी इसी ट्रेन से मुंबई आ रहा था । उस वक्त मैं फिल्म लाइन में एक सहायक के रूप में काम कर रहा था। मेरे साथ में बैठा हुआ पैसेंजर जो अभी-अभी शादी करके अपनी पत्नी के साथ भी मुंबई जा रहा था ।
कुछ देर बाद उससे बातचीत होने लगी, उसने अपना नाम बताया और काम बताया। वह एक ड्राइवर की नौकरी करता था ,एक बहुत बड़े व्यापारी के पास । बस थोड़ी थोड़ी बातें उससे होने लगी और मैंने भी अपने बारे में बताया । कब आंख लग गई पता ही नहीं लगा । जब ट्रेन झांसी पहुंची उस वक्त रात का एक बजा हुआ था शायद इससे भी कुछ ज्यादा टाइम था ।मेरी आंख खुली तो मेरे बगल वाली सीट पर वह आदमी नहीं था ,बस उसकी औरत सो रही थी उपर वाली सीट पर ।मेरी कुछ समझ में नहीं आया वह आदमी कहां गया , यही सोच विचार में कुछ वक्त निकला और मैंने फिर से सोने की कोशिश की और अपने आप आंख कब लग गई पता ही नही चला ।
रविवार, सितंबर 18, 2022
भोर काल
सुबह का 4:00 बजा हुआ था ,अचानक मेरी आंख खुली बाहर देखा तो बहुत कस कर बारिश हो रही थी। तभी बादलों के बीच से एक तेज रोशनी मेरी तरफ आती हुई दिखी, मैं घबरा गया और पास पड़ी हुई चादर से मुंह छुपा लिया और कोशिश की सोने की, पर एक डर अंदर छुपा हुआ था । मैं सोचने लगा रोशनी कमरे में आकर क्या कर रही है। थोड़ी देर बाद आंखें खोली तो एक चमकता हुआ इंसान खड़ा हुआ था ना उसके पैर थे, ना उसकी आंखें ,थी ना सर, बस एक गोल सा चक्र घूम रहा था। जिसके अंदर वह छुपा बैठा था ।मैंने उससे जानने की कोशिश की कि तुम किस शहर से आए हो, फिर वह कुछ बोलने की कोशिश करने लगा लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।जैसे कोई साज आवाज करता है वैसे उसकी आवाज थी, मैं कुछ समझ नहीं सका और फिर जिस तरह से आया था, उसी तरह तेजी से आसमान की तरह उड़ गया ।
गुरुवार, जनवरी 09, 2020
रेहाना दीदी
ख़ुदा हम सभी में होते हैं बस एहसास करने की बात है
रेहाना दीदी में ख़ुदा रहते हैं यह सभी लोग जानते थे ,जब भी
हमें किसी चीज की जरूरत होती हम उनके पास जाते ,हमारे कुछ कहने
से पहले वह ला कर दे देती , हमारी जरूरत उन्हें पहले से कैसे
मालुम हो जाती थी ? यह रेहाना दीदी कोई और नहीं ,सुभाष घाई की
पत्नी थी। मेरे साथ सन ८६ में हुई एक घटना हुई , अचानक से मेरी नौकरी छूट गयी
तीन बच्चों का पिता था। कहाँ जाऊँ इसी सोच में बैठा हुआ था। तभी
ख़याल आया रेहाना दीदी का। मैं उन्हें पूना से जानता हूँ अशोक की
वजह से वह मेरा रूम मेट था और सुभाष जी का छोटा भाई।
मैं रेहाना दीदी के घर जा पहुंचा ,मुझे देख कर कहने लगी हमारे
.
घर का रास्ता भूल गए थे ? मेरे पास कोई जवाब नहीं था बस चुप रहने के
अलावा। मैंने कहा , नौकरी छूट गयी ? उन्होंने मेरी आँखों में झाँक कर देखा । मेरी आँखों
से दो आंसू टपक गए , फिर उन्हों ने पूछा चाय लोगे ? मैं सुभाष जी से बात
कर लूँगी .
और मैं सुभाष जी का सहायक निर्देशक बन गया फिल्म थी कर्मा ,........
.
रेहाना दीदी में ख़ुदा रहते हैं यह सभी लोग जानते थे ,जब भी
हमें किसी चीज की जरूरत होती हम उनके पास जाते ,हमारे कुछ कहने
से पहले वह ला कर दे देती , हमारी जरूरत उन्हें पहले से कैसे
मालुम हो जाती थी ? यह रेहाना दीदी कोई और नहीं ,सुभाष घाई की
पत्नी थी। मेरे साथ सन ८६ में हुई एक घटना हुई , अचानक से मेरी नौकरी छूट गयी
तीन बच्चों का पिता था। कहाँ जाऊँ इसी सोच में बैठा हुआ था। तभी
ख़याल आया रेहाना दीदी का। मैं उन्हें पूना से जानता हूँ अशोक की
वजह से वह मेरा रूम मेट था और सुभाष जी का छोटा भाई।
मैं रेहाना दीदी के घर जा पहुंचा ,मुझे देख कर कहने लगी हमारे
.
घर का रास्ता भूल गए थे ? मेरे पास कोई जवाब नहीं था बस चुप रहने के
अलावा। मैंने कहा , नौकरी छूट गयी ? उन्होंने मेरी आँखों में झाँक कर देखा । मेरी आँखों
से दो आंसू टपक गए , फिर उन्हों ने पूछा चाय लोगे ? मैं सुभाष जी से बात
कर लूँगी .
और मैं सुभाष जी का सहायक निर्देशक बन गया फिल्म थी कर्मा ,........
.
सोमवार, नवंबर 04, 2019
नर्स
दोस्तों बहुत वक़्त हो गया ,आप लोगों से बातचीत किये हुए। आज मेरी बेटी ने जिद्द की ,आप ने लिखना क्यों
छोड़ दिया ? वजह तो कुछ थी नहीं बस , आलस ही समझ लीजिए। अब आप को मेरे ब्लॉग पर कुछ जरूर
मिलेगा जिससे आपको वह जानकारी हासिल होगी जो आप को कोई और नहीं बता सकता।
यह कहानी एक नर्स की ,जिसका एक ही काम है , सेवा भाव। सिर्फ दूसरों के लिए जीना ,इसके बदले
कुछ पैसे मिल जाते हैं। जिससे इसके माता पिता और चार भाई -बहन का गुज़र -बसर हो जाया करता है। इधर कुछ महीनो से वह खाली बैठी थी। एक जगह नौकरी करती थी वह छूट गयी। दूसरी कई जगह कोशिश की लेकिन हुआ कुछ नहीं।
एक रात की बात है ,आँखों में नींद नाम की कोई चीज नहीं थी ,खुली आँखों से छत को देख रही थी। एक
छिपकली उसके ऊपर ही छत पे बड़े ध्यान से एक कीड़े को देख रही थी। जो इससे बड़ा ही था और यह उसे खाने फिराक में एक टक देखे जा रही थी। जैसे ही छिपकली उस कीड़े पे लपकी ,कीड़ा मेरे पास आ के गिर गया और इसके साथ -साथ छिपकली भी गिर गयी। मैं डर के विस्तार से नीचे गिर गयी। विस्तार पे देखा छिपकली के मुँह में पूरा कीड़ा समा गया। धीरे धीरे उसे वह निगलने लगी। मैं उसे भगाने के लिए झाड़ू खोजने लगी ,जब तक झाड़ू ले कर आयी। वह भाग चुकी थी ,विस्तार को फिर से अच्छी तरह से झाड़ा। छिपकली को ना पाकर छत की तरफ देखा ,वह फिर उसी जगह नज़र आयी।
बेड को कविता ने खिंच कर एक तरफ कर लिया ,एक डर अंदर समा जो चुका था। तभी उसका मोबाईल बजने लगा। पास पड़े टेबल से उठा के देखा तो उसकी फ्रेंड मीना का फोन है। कविता इसे भी बता चुकी थी ,काम के बारे में। हेलो हाँ ठीक है ,मैं पहुँच जाऊँगी ठीक है।यह सुन कर छिपकली का डर कहीं गायब हो चुका था ,और वह विस्तार पे आराम से लेट गयी ,सुबह होने के इन्तजार में।
संजय अपने पिता को उनके बेड पे ही स्पंजिंग कर रहा था। उसके पिता बेड पे ही पड़े रहते थे। सब कुछ उसी विस्तार पर ही होता था। एक नर्स रखा था ,वह छोड़ के चली गयी जब तक दूसरी नहीं मिलती सब कुछ संजय को ही करना पड़ता है। नर्स की तलाश जारी थी। डोर बेल बजने पे संजय ने जा कर दरवाजा खोला ,सामने कविता खड़ी थी। पूरी नर्स की ड्रेस में थी ,संजय ने उसे अंदर आने को कहा। अंदर आ जाइये ,आपको को मीना जी ने भेजा है ? जी हाँ ,आइये कविता उसके पीछे पीछे चल दी।
एक बहुत बड़ा कमरा ,बहुत खूबसूरत सा ,एक तरफ बेड लगा हुआ है ,जिस पे एक बुजुर्ग सोया हुआ
है। जिसके शरीर में कई नली लगी हुई है ,किसी से साँस लेता है किसी से खाना खाता है ,किसी से पेशाब बाहर जाता है। यह मेरे पापा हैं ,आप को फुल टाइम इनकी देख भाल करनी होगी !यहाँ पर ही आप के खाने -पीने का इंतजाम होगा और महीने के पचास हजार मिलेंगे। क्यों ठीक है ना ?कविता कुछ बोल नहीं पाई ,बस चुप रही
फिर धीरे धीरे कदमों से मरीज के पास पहुँची और ध्यान से देखने लगी।
फिर संजय कहने लगा , यहाँ आप को किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी। फिर क्या समझूं आप यहाँ
काम करयेंगी ?यह मेडिसिन का पर्चा है इसमें सभी दवा लिखी हैं ....दवा उस टेबल की दराज में रखी हैं ठीक है। बिना जवाब सुने संजय कमरे से बाहर चला गया और फिर एक मोबाइल ले आया और कहने लगा........ यह अपने पास रखिये सिर्फ नौ नंबर दाबियेगा , जिस चीज की जरूरत होगी वह आप के पास हाजिर होगी। और हाँ मैं आप के अकाउंट में एडवांस सैलरी डाल देता हूँ। आप मुझे अपना बैंक अकाउंट दे दीजिये। इतना कह के संजय वहां से चला गया। यह सब इतनी तेजी से हुआ जैसे वह फिल्म देख रही हो जिसको रोकना उसके बस में ही ना हो। कुछ सोच कर कविता मरीज की तीमारदारी में लग गयी। उसने वह फोन देखा जो संजय दे कर गया था ,कुछ सोच कर उसने नौ नंबर दबा दिया। कुछ ही देर में एक लड़की कमरे में आयी और कहने लगी "यस मेडम " मुझे नास्ते में कुछ खाने को चाहिए। क्या लेंगी ? कुछ भी !
संजय अपने ऑफिस के कमरे में बैठा टी वी पे सब देख रहा है। कविता क्या कर रही है कैसे वह उसके पिता की देख भाल कर रही है। इस दौरान कविता किस तरह दवा को चेक करती है ,इंजेक्शन को देखती है उसमें दवा भर्ती है और ग्लुकोश के बॉटल में इंजेक्ट कर देती है। यह देख कर संजय ने अपना टी ,वी ,बंद कर दिया।संजय के चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कराहट है
छोड़ दिया ? वजह तो कुछ थी नहीं बस , आलस ही समझ लीजिए। अब आप को मेरे ब्लॉग पर कुछ जरूर
मिलेगा जिससे आपको वह जानकारी हासिल होगी जो आप को कोई और नहीं बता सकता।
यह कहानी एक नर्स की ,जिसका एक ही काम है , सेवा भाव। सिर्फ दूसरों के लिए जीना ,इसके बदले
कुछ पैसे मिल जाते हैं। जिससे इसके माता पिता और चार भाई -बहन का गुज़र -बसर हो जाया करता है। इधर कुछ महीनो से वह खाली बैठी थी। एक जगह नौकरी करती थी वह छूट गयी। दूसरी कई जगह कोशिश की लेकिन हुआ कुछ नहीं।
एक रात की बात है ,आँखों में नींद नाम की कोई चीज नहीं थी ,खुली आँखों से छत को देख रही थी। एक
छिपकली उसके ऊपर ही छत पे बड़े ध्यान से एक कीड़े को देख रही थी। जो इससे बड़ा ही था और यह उसे खाने फिराक में एक टक देखे जा रही थी। जैसे ही छिपकली उस कीड़े पे लपकी ,कीड़ा मेरे पास आ के गिर गया और इसके साथ -साथ छिपकली भी गिर गयी। मैं डर के विस्तार से नीचे गिर गयी। विस्तार पे देखा छिपकली के मुँह में पूरा कीड़ा समा गया। धीरे धीरे उसे वह निगलने लगी। मैं उसे भगाने के लिए झाड़ू खोजने लगी ,जब तक झाड़ू ले कर आयी। वह भाग चुकी थी ,विस्तार को फिर से अच्छी तरह से झाड़ा। छिपकली को ना पाकर छत की तरफ देखा ,वह फिर उसी जगह नज़र आयी।
बेड को कविता ने खिंच कर एक तरफ कर लिया ,एक डर अंदर समा जो चुका था। तभी उसका मोबाईल बजने लगा। पास पड़े टेबल से उठा के देखा तो उसकी फ्रेंड मीना का फोन है। कविता इसे भी बता चुकी थी ,काम के बारे में। हेलो हाँ ठीक है ,मैं पहुँच जाऊँगी ठीक है।यह सुन कर छिपकली का डर कहीं गायब हो चुका था ,और वह विस्तार पे आराम से लेट गयी ,सुबह होने के इन्तजार में।
संजय अपने पिता को उनके बेड पे ही स्पंजिंग कर रहा था। उसके पिता बेड पे ही पड़े रहते थे। सब कुछ उसी विस्तार पर ही होता था। एक नर्स रखा था ,वह छोड़ के चली गयी जब तक दूसरी नहीं मिलती सब कुछ संजय को ही करना पड़ता है। नर्स की तलाश जारी थी। डोर बेल बजने पे संजय ने जा कर दरवाजा खोला ,सामने कविता खड़ी थी। पूरी नर्स की ड्रेस में थी ,संजय ने उसे अंदर आने को कहा। अंदर आ जाइये ,आपको को मीना जी ने भेजा है ? जी हाँ ,आइये कविता उसके पीछे पीछे चल दी।
एक बहुत बड़ा कमरा ,बहुत खूबसूरत सा ,एक तरफ बेड लगा हुआ है ,जिस पे एक बुजुर्ग सोया हुआ
है। जिसके शरीर में कई नली लगी हुई है ,किसी से साँस लेता है किसी से खाना खाता है ,किसी से पेशाब बाहर जाता है। यह मेरे पापा हैं ,आप को फुल टाइम इनकी देख भाल करनी होगी !यहाँ पर ही आप के खाने -पीने का इंतजाम होगा और महीने के पचास हजार मिलेंगे। क्यों ठीक है ना ?कविता कुछ बोल नहीं पाई ,बस चुप रही
फिर धीरे धीरे कदमों से मरीज के पास पहुँची और ध्यान से देखने लगी।
फिर संजय कहने लगा , यहाँ आप को किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी। फिर क्या समझूं आप यहाँ
काम करयेंगी ?यह मेडिसिन का पर्चा है इसमें सभी दवा लिखी हैं ....दवा उस टेबल की दराज में रखी हैं ठीक है। बिना जवाब सुने संजय कमरे से बाहर चला गया और फिर एक मोबाइल ले आया और कहने लगा........ यह अपने पास रखिये सिर्फ नौ नंबर दाबियेगा , जिस चीज की जरूरत होगी वह आप के पास हाजिर होगी। और हाँ मैं आप के अकाउंट में एडवांस सैलरी डाल देता हूँ। आप मुझे अपना बैंक अकाउंट दे दीजिये। इतना कह के संजय वहां से चला गया। यह सब इतनी तेजी से हुआ जैसे वह फिल्म देख रही हो जिसको रोकना उसके बस में ही ना हो। कुछ सोच कर कविता मरीज की तीमारदारी में लग गयी। उसने वह फोन देखा जो संजय दे कर गया था ,कुछ सोच कर उसने नौ नंबर दबा दिया। कुछ ही देर में एक लड़की कमरे में आयी और कहने लगी "यस मेडम " मुझे नास्ते में कुछ खाने को चाहिए। क्या लेंगी ? कुछ भी !
संजय अपने ऑफिस के कमरे में बैठा टी वी पे सब देख रहा है। कविता क्या कर रही है कैसे वह उसके पिता की देख भाल कर रही है। इस दौरान कविता किस तरह दवा को चेक करती है ,इंजेक्शन को देखती है उसमें दवा भर्ती है और ग्लुकोश के बॉटल में इंजेक्ट कर देती है। यह देख कर संजय ने अपना टी ,वी ,बंद कर दिया।संजय के चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कराहट है
बुधवार, फ़रवरी 28, 2018
वह मेरे लिए ,बिल्कुल अज़नबी ही था। पर वह हॉकी बहुत अच्छी
वह मेरे लिए ,बिल्कुल अज़नबी ही था। पर वह हॉकी बहुत अच्छी
खेलता था। मेरा छोटा प्रा भी उदेय नाल खेल्दा सी , पर वह हिन्दू था। हिन्दू -मुस्लिम दो इस तरह की जातियाँ हैं
जिनमें हमेसा दुश्मनी रहती है। जैसे सगे भाइयों में दुश्मनी हो जाती है , हो सकता है. हम शादिओं पहले भाई हों और फिर आपस में झगड़ के अलग हो गए हों। पर हम में मोहब्बत भी खूब होती है ,जब हम कभी मिल जाते हैं। सच कहूँ पर डर डर लगता है।
असल -बात कुछ और है ,मुझे उससे इश्क हो गया था ,उस समय मेरी उम्र कोई तेरह बरस की थी ,सात भाईओं की सबसे छोटी बहन , घर मे मेरी हर मुराद पूरी होती थी। मैं अपने छोटे होने का भर -पूर फायदा लेती थी। बस एक दिन मैंने अब्बू से कह दिया , अब्बू मुझे गुलज़ार से निक़ाह करना है। यह सुन के अब्बू की आँखे कबूतर जैसी हो गयी। और कहने लगे बेटी निम्मो वह हिन्दू है। तो क्या हुआ ? बेटी हिन्दू -मुसलमान की आपस में शादी नहीं होती है। अब्बू आप उसे मुसलमान बना लीजिये।
जब मैं और अब्बू बात करते है तब अम्मी जरूर आ जाती है। क्या बात हो रही बाप बेटी में ?,सुनती हो अभी यह क्या कह रही है ,क्या बोलती है गुलज़ार नाल ब्याह करना है ? पागल हो गयी है खसमखानिये। क्या और कहती है जानती है ? कहती है मुसलमान बना दे उसे ,और अब्बू जोर से हंस दिए। पर यह हो सकता है ,मैंने सुना है। जिन्ना साहब मुसलमानो के लिए अलग मुल्क मांग रहे हैं। बस क्या है लाहौर मुसलमानो का होगा ,गुलज़ार को यहीं रोक लेंगे और वह बस मुसलमान हो गया।
बड़ी गन्दी सोच है आप की हमारी कौम में लड़के मर गए हैं. क्या ?बड़बड़ाती हुई घर के अंदर चली गयी।
सत्तर साल बाद गुलज़ार और निम्मो का ब्याह हुआ तो जरूर। लेकिन निम्मो हिन्दू बन गयी और गुलज़ार अपने परिवार के साथ पकिस्तान से भाग के लखनऊ में बस गया रेलवे में नौकरी मिल गयी वजह हॉकी थी ,रेलवे कालोनी में रहने की जगह मिल गयी।
निम्मों को सात बेटे हुए ,सातो के नाम सबसे बड़ा ,अख़्तर ,दुसरा मुस्ताक फिर नादिर चौथा शलिम फिर निशात कादिर और सबसे छोटा रामचंद्र ,मोहल्ले में इस राज को कोई नहीं समझ पाया। निम्मों हिन्दू गुलज़ार
सरदार हिन्दू।
सच्चाई क्या है किसी को नहीं मालुम ना ही निम्मो ने किसी बताया। एक दिन पुलिस आयी और निम्मो और गुलज़ार पकड़ गयी। भरा -पूरा परिवार चंद्र को छोड़ के सब शादी - शुदा है
?
सोमवार, जनवरी 16, 2017
आँख
आँख ,कुछ कहानी ही कुछ इस तरह की है ,जिसको समझना बहुत मुश्किल हो जाता है
जब उनसे आँख मिली थी ,एक पल को मैं किसी अथाह समुन्द्र में डूबने लगा । फिर किसी
ने मेरे हाथों को पकड़ के खिंच लिया ,यह मुझे नहीं समझ आया किसने बचाया ।
आज फिर उनसे मुलाक़ात शेयरिंग ऑटो रिक्सा में हो गयी । तीसरी सवारी नहीं मिल
रही थी ,क्या सोच के मैंने कह दिया चलो । मैं डबल दे दूँगा ,फिर उन्होंने मुझे देखा और रिक्से
से उतर गयीं , मैं कुछ समझा ही नहीं ,उसने मुझे घूर के देखा । साहब आप अब अकेले ही चले
यह मेडम ग़लत समझ रहीं थी ,मुझे मालुम है आप को जल्दी है चलिए ।
उसी शाम फिर कुछ हुआ ,जिसे मैं समझ नहीं पाया । रिक्शा स्टैंड पे जैसा पहुँचा और एक
खाली रिक्शे में बैठ गया ,तभी हवा के झोके की तरह वह भी आयी और बैठ गयी और रिक्शे वाले
को कहा चलो ,डबल मैं दे दूँगी ।
जब उनसे आँख मिली थी ,एक पल को मैं किसी अथाह समुन्द्र में डूबने लगा । फिर किसी
ने मेरे हाथों को पकड़ के खिंच लिया ,यह मुझे नहीं समझ आया किसने बचाया ।
आज फिर उनसे मुलाक़ात शेयरिंग ऑटो रिक्सा में हो गयी । तीसरी सवारी नहीं मिल
रही थी ,क्या सोच के मैंने कह दिया चलो । मैं डबल दे दूँगा ,फिर उन्होंने मुझे देखा और रिक्से
से उतर गयीं , मैं कुछ समझा ही नहीं ,उसने मुझे घूर के देखा । साहब आप अब अकेले ही चले
यह मेडम ग़लत समझ रहीं थी ,मुझे मालुम है आप को जल्दी है चलिए ।
उसी शाम फिर कुछ हुआ ,जिसे मैं समझ नहीं पाया । रिक्शा स्टैंड पे जैसा पहुँचा और एक
खाली रिक्शे में बैठ गया ,तभी हवा के झोके की तरह वह भी आयी और बैठ गयी और रिक्शे वाले
को कहा चलो ,डबल मैं दे दूँगी ।
रविवार, अक्तूबर 16, 2016
मै वह मै
वही पल फिर आ गया ,जिसे मै भूलना चाहता हुँ लेकिन वह हमेशा मेरे सामने आ के खड़ा होजाता है ।चिल्ला -चिल्ला के कहता है । भाग जा भाग जा ,मैं वहीं खड़ा रहता हूँ ,एक डर जो मुझ में बैठा था कभी वह मुझे छोड़ के जा चुका था ।
सोमवार, अक्तूबर 10, 2016
गुरुवार, सितंबर 15, 2016
कुछ साल पहले कि बात है ,मैं इस कम्पयूटर से पहले मैं जुड़
नहीं पा रहा था ।अब तो यह आलम हैकि इसके वगैर कुछ सोच ही नहीं पाते हैं ।
एक समय की बात है कि मैं अपने गाँव जा रहा था ।शाम से रात होने में कुछ समय ही बाकी था,गोधुली का वक़्त था । रास्ते में आवाजही कम थी ,मैं बहुत तेजी से चला जा रहा था
इसी सोच में जल्द से अपने गाँव पहुँच जाऊँ इसी उधेड़-बुन में भागा जा रहा था तभी किसी ने मुझे आवाज दे कर बुलाया ।उधर देखा तो एक बूढ़ा आदमी ,मुझे बहुत ध्यान से देखें जा
रहा था । पहले मैं डर गया,फिर हिम्मत कर के पूछ लिया कि मुझे क्यों घूरकर के देख रहे हो ?
नहीं पा रहा था ।अब तो यह आलम हैकि इसके वगैर कुछ सोच ही नहीं पाते हैं ।
एक समय की बात है कि मैं अपने गाँव जा रहा था ।शाम से रात होने में कुछ समय ही बाकी था,गोधुली का वक़्त था । रास्ते में आवाजही कम थी ,मैं बहुत तेजी से चला जा रहा था
इसी सोच में जल्द से अपने गाँव पहुँच जाऊँ इसी उधेड़-बुन में भागा जा रहा था तभी किसी ने मुझे आवाज दे कर बुलाया ।उधर देखा तो एक बूढ़ा आदमी ,मुझे बहुत ध्यान से देखें जा
रहा था । पहले मैं डर गया,फिर हिम्मत कर के पूछ लिया कि मुझे क्यों घूरकर के देख रहे हो ?
शनिवार, जून 13, 2015
रविवार, मई 10, 2015
हम दोनों
हम दोनों की कहानी तेरह साल की उम्र से शुरू हुई थी , दोनों सातवीं क्लास में फेल हुए थे। तभी से
हमारा साथ हुआ था ,उसका नाम अरविंद खरे ,और मेरा शरद जोशी मैं पहाड़ का रहने वाला था ,बाबू जी
पी ,डब्लू ,डी में कलर्क थे। हम दोनों के बारे में कोई तीसरा कहे तो ज्यादा अच्छा होगा ,वह निष्पक्ष होगा
तभी हमारी दोस्ती के बारे में कुछ सही लिख सकेगा ………। फिर मैंने अपने दोस्त गुरबचन सिंह से बात की वह एक अच्छा लेखक था ,कई मैगजीनों में छप चुका था।वह मान गया ,वह हम दोनों को बचपन से ही
जानता था ,चाहे वह हम दोनों का इश्क हो या हमारी पढ़ाई -लिखाई हो। हम दोनों की शादी का गवाह भी था
बच्चो के मुंडन ,ब्याह शादी जगह उपस्थित था ,मतलब उससे कुछ छुपा नहीं था अब वह ही आगे की कहानी
कहेगा |
यह दोनों दोस्त इतने करीब थे ,तेरह साल की उम्र में कोई लड़की पसंद आयी तो ,दोनों को एक ही लड़की से प्यार कर बैठे, जो उनके साथ उनके क्लास में ही पढ़ती थी ,वह हमेसा अगली सीट पे बैठती थी इन दोनों का पहला लव मीना थी ,जो उनके साथ एक ही साल साथ पढ़ी ,दूसरे साल उसके घर वालो ने ,पास के जुबली गर्ल्स स्कूल में लिखा दिया लेकिन इन दोनों ने उसका पीछा करना नहीं छोड़ा …………… ।घर तक मालूम
कर लिया था ,घर में कितने भाई -बहन है बाप क्या करता है ,होली में इसके मुहल्ले में जा कर होली खेलना
एक बार मीना के बाप से मार खाते -खाते बचे थे ,उसी उम्र में , मीना के और आशिक की धुलाई करना मतलब
मार -पीट कर लेना।
आज साठ साल बाद ,दोनों दोस्त सत्तर से ऊपर हो चुके हैं ,शादी भी हो चुकी ,एक ही मुहल्ले में
रहते हैं, दोनों के अपने -अपने मकान हैं खरे साहब के घर में उनकी पत्नी दो बेटे चार बेटियाँ हैं ,लेकिन सब
की शादी हो चुकी ,सभी बाल बच्चे वाले हो चुके हैं ,बेटियाँ अपने घरो में हैं। उनके साथ दो बेटे विमल और अजय साथ रहते हैं अजय सबसे छोटा है , नहीं -नहीं विमल छोटा है पत्नी को कैंसर है ,डाक्टरों ने कह दिया ,बस साल भर की बात है जितने सुख इन्हे देना है दे दीजिये |
रात का कोई नौ बजा है खरे साहब घर से निकल के सड़क पे आते हैं ,नुक्कड़ की दुकान पर पहुँचते
हैं ,जहाँ जोशी जी (शरद )पहले से खड़े इन्हीं का इन्तजार कर रहे थे ,आज देर हो गयी ,क्या बात है ? नहीं वह शांती को दवाई खिलानी थी ,आज बहुत पेन में थी । पनवाड़ी ने दो सिगरेट निकाल के एक एक दोनों दोस्तों को दी दोनों ने सिगरेट जलाई और लगे पीने ,खरे ने एक काश खींचा और कहना शुरू किया ,एक दुःख ख़त्म होता नहीं दुसरा शुरू हो जाता । अब क्या हुआ ? अजय बड़े वाले साहब कह रहे हैं मकान हम दोनों भाईओं के नाम लिख दें.…… तू यार अच्छा है , तेरे कोई औलाद नहीं है ,पत्नी का भी ग़म नहीं, दस साल पहले तुझे छोड़ के स्वर्ग सिधार गयी। पर मेरी एक बात याद रखना अपने जीते जी मकान अपने नाम ही रखना ,बच्चों के नाम लिखने की गलती मत करना ………। पनवाड़ी दुकान बंद करने लगा ,तभी जोशी जी ने पूछ लिया
क्या हमारा इन्तजार करते हो ,जब तक हम लोग आते नहीं ,तब तक दुकान बंद नहीं करते ? बाबू जी कह के
गए थे ,जब तक जोशो जी खरे जी ना आएं दूकान बंद नहीं करना ,उनको सिगरेट पिला देना फिर बंद करना
दोनों दोस्त ने सिगरेट ख़त्म की और घर की तरफ चल दिए ,दोनों एक ही मुहल्ले में रहते हैं गालियाँ
अलग हैं ,दोनों के अपने -अपने मकान है दोनों ने साथ ही साथ खरीदा था ,जोशी खरीदना नहीं चाहता था खरे
की जिद्द के आगे उसकी नहीं चली ,इस मकान को ले कर जोशी के पिता बहुत नराज थे ,वह चाहते थे भुआली में जगह लेना ,नैनीताल के बंगले को होटल बना देना चाहते थे ,इसी बात को लेकर कई सालों तक आपस में
बात -चीत नहीं थी ,दोनों की शादियाँ आगे -पीछे हुई थी। पहले जोशी की हुई थी जब वह बारवहीं क्लास में था
जिसकी शादी में मैं भी गया था और क्लास के और लड़के भी गए थे ,नैनीताल घूमने को जो मिल रहा था ,हम
सभी दोस्तों को तभी पता लगा ,शरद का अपना बँगला भी है जो उसके दादा जी ने किसी अंग्रेज से लिया था
जब हिदुस्तान आजाद हुआ था। आज भी वह बँगला है दोनों दोस्त गर्मिओं में यहाँ छुटियाँ मनाने जाते थे।
शरद जोशी जब अपने घर पहुंचा ,गेट खोल के अंदर गया ,उसको ऐसा महसूस हुआ ,घर में कोई है
कुछ कमरों की लाईट जल रही थी। पत्नी को मरे दस साल हो चुके है कोई औलाद है नहीं एक मेड है जो रात में अपने घर चली जाती है खाना ,नास्ता वही ही बनाती है। घर के अंदर की सभी लाइट बुझा के अपने कमरे में सोने गया। खरे के कहने पे एक बार एक किरायेदार लड़की रखी जो एयरहोस्टेज थी ,अक्सर घर से बाहर रहती है ,एक दो बार जोशी जी ने उसके साथ बाहर की शराब भी पी थी ,घर में और डांस भी किया था ,यह सब
बाते खरे को भी बतलाई थी ,उसका भी दिल मचला था ,और फिर एक दिन पुलिस आयी और उसको पकड़ के ले गयी। जुर्म था ,उसने कुछ महीने पहले किसी बूढ़े को ठगा और उसका खून कर दिया था ,और घर का सारा धन ले के उड़ गयी थी ,तभी से पुलिश उसकी तलाश में थी और पकड़ के ले गयी। पुलिस जोशी जी को समझा के गयी ,अपने बुढ़ापे का ख्याल रखो ,इस तरह के किरायेदार न ही रखे ,और रखने से पहले पुलिस को इत्तला
जरूर कर दें। शरद यही सब सोचता हुआ सोने लगा ,बार -बार एयरहोस्टेज का ख्याल आ रहा था ,दिखने में
कहीं भी उसके चेहरे पे चालाकी बदमासी नजर नहीं आती थी ,फिर वह यह सब कैसे करती थी ? कब उसकी
आँख लग गयी पता नहीं चला।
रात का कोई दो बजा था ,किचन में बर्तन गिरने की आवाज आई ,जोशी जी उठ के ,कमरे की लाइट
जलाई और किचन की तरफ गए ,किसी ने उनके ऊपर पिस्तौल तान ली ,बोलने लगा चिल्लाने की कोशिश
की तो गोली मार दूंगा ,मैं सिर्फ चाय पीना चाहता हूँ ,या पिला दो मुझे या बनाने दो ! जोशी जी कुछ समझते
बुझते ,बोल पड़े मैं बना देता हूँ ,और लगे बनाने ,और डरे हुए सोचते रहे ,क्या किया जाय। वह बदमाश वहीं
किचेन में खड़ा ही रहा ,वह बदमाश तभी बोल पड़ा , बड़े रशिया हो बुढऊ ,बहुत लौन्डिओ की फोटो रखी है
एक फोटो मुझे बहुत पसंद आयी उसे ले जा रहा हूँ ,जोशी जी चाय छान चुके थे सोचने लगे कौन सी फोटो ली है ,चाय उसकी तरफ बढ़ाई ,और एक खुद ली ,तभी पूछा दिखाओ कौन सी फोटो ली है ?दोनों कमरे में आ गए। चोर ने वह फोटो दिखलाई जिसे इसने जेब में रखी थी। जो अब मुड़ चुकी थी ,फोटो इनके बचपन की गर्लफ्रेंड
मीना की थी जिसे आज तक दोनों दोस्त चाहते है ,जोशी बोल पड़े ,अरे भाई यह फोटो दे दो इसके बदले कुछ
और ले लो। क्यों ? इसमें ऐसा क्या है ? निशानी है किसी की ,यह दे दो मुझे। चोर लगा इसे फाड़ने यह देख के जोशी उस पे झपट पड़ा और गर्म चाय उस पर फेंक दिया ,चोर तिलमिला गया और जोशी को मारने बढ़ा और
पैर में घर का क्लीन फंस गया चोर मुहँ के बल गिरा और उसका सर सोफे के कोने से जा लगा चोर चिल्लाया
और बेहोश हो गया ,जोशी जी ने फोटो ली और ठीक से पास किताब में रखा अब सोचने लगे क्या किया जाय ,
तभी चोर को होश आने लगा ,कुछ सोच के एक ग्लास में पानी लिया उसमे कुछ मिलाया और चोर को कहा यह पी लो पानी है चोर के सर से खून भी बाह रहा था। पानी पी के चोर उठने लगा ,जोशी जी कहने लगे यहाँ
आराम से बैठ जाओ। चोर पास के सोफे पे बैठ गया और आँखे बंद के आराम करने लगा ,और फिर सो गया
जोशी ने अपने दोस्त खरे को फोन किया ,और कहा मेरे घर जल्दी आ जाओ मेरी जान खतरे में है
हमारा साथ हुआ था ,उसका नाम अरविंद खरे ,और मेरा शरद जोशी मैं पहाड़ का रहने वाला था ,बाबू जी
पी ,डब्लू ,डी में कलर्क थे। हम दोनों के बारे में कोई तीसरा कहे तो ज्यादा अच्छा होगा ,वह निष्पक्ष होगा
तभी हमारी दोस्ती के बारे में कुछ सही लिख सकेगा ………। फिर मैंने अपने दोस्त गुरबचन सिंह से बात की वह एक अच्छा लेखक था ,कई मैगजीनों में छप चुका था।वह मान गया ,वह हम दोनों को बचपन से ही
जानता था ,चाहे वह हम दोनों का इश्क हो या हमारी पढ़ाई -लिखाई हो। हम दोनों की शादी का गवाह भी था
बच्चो के मुंडन ,ब्याह शादी जगह उपस्थित था ,मतलब उससे कुछ छुपा नहीं था अब वह ही आगे की कहानी
कहेगा |
यह दोनों दोस्त इतने करीब थे ,तेरह साल की उम्र में कोई लड़की पसंद आयी तो ,दोनों को एक ही लड़की से प्यार कर बैठे, जो उनके साथ उनके क्लास में ही पढ़ती थी ,वह हमेसा अगली सीट पे बैठती थी इन दोनों का पहला लव मीना थी ,जो उनके साथ एक ही साल साथ पढ़ी ,दूसरे साल उसके घर वालो ने ,पास के जुबली गर्ल्स स्कूल में लिखा दिया लेकिन इन दोनों ने उसका पीछा करना नहीं छोड़ा …………… ।घर तक मालूम
कर लिया था ,घर में कितने भाई -बहन है बाप क्या करता है ,होली में इसके मुहल्ले में जा कर होली खेलना
एक बार मीना के बाप से मार खाते -खाते बचे थे ,उसी उम्र में , मीना के और आशिक की धुलाई करना मतलब
मार -पीट कर लेना।
आज साठ साल बाद ,दोनों दोस्त सत्तर से ऊपर हो चुके हैं ,शादी भी हो चुकी ,एक ही मुहल्ले में
रहते हैं, दोनों के अपने -अपने मकान हैं खरे साहब के घर में उनकी पत्नी दो बेटे चार बेटियाँ हैं ,लेकिन सब
की शादी हो चुकी ,सभी बाल बच्चे वाले हो चुके हैं ,बेटियाँ अपने घरो में हैं। उनके साथ दो बेटे विमल और अजय साथ रहते हैं अजय सबसे छोटा है , नहीं -नहीं विमल छोटा है पत्नी को कैंसर है ,डाक्टरों ने कह दिया ,बस साल भर की बात है जितने सुख इन्हे देना है दे दीजिये |
रात का कोई नौ बजा है खरे साहब घर से निकल के सड़क पे आते हैं ,नुक्कड़ की दुकान पर पहुँचते
हैं ,जहाँ जोशी जी (शरद )पहले से खड़े इन्हीं का इन्तजार कर रहे थे ,आज देर हो गयी ,क्या बात है ? नहीं वह शांती को दवाई खिलानी थी ,आज बहुत पेन में थी । पनवाड़ी ने दो सिगरेट निकाल के एक एक दोनों दोस्तों को दी दोनों ने सिगरेट जलाई और लगे पीने ,खरे ने एक काश खींचा और कहना शुरू किया ,एक दुःख ख़त्म होता नहीं दुसरा शुरू हो जाता । अब क्या हुआ ? अजय बड़े वाले साहब कह रहे हैं मकान हम दोनों भाईओं के नाम लिख दें.…… तू यार अच्छा है , तेरे कोई औलाद नहीं है ,पत्नी का भी ग़म नहीं, दस साल पहले तुझे छोड़ के स्वर्ग सिधार गयी। पर मेरी एक बात याद रखना अपने जीते जी मकान अपने नाम ही रखना ,बच्चों के नाम लिखने की गलती मत करना ………। पनवाड़ी दुकान बंद करने लगा ,तभी जोशी जी ने पूछ लिया
क्या हमारा इन्तजार करते हो ,जब तक हम लोग आते नहीं ,तब तक दुकान बंद नहीं करते ? बाबू जी कह के
गए थे ,जब तक जोशो जी खरे जी ना आएं दूकान बंद नहीं करना ,उनको सिगरेट पिला देना फिर बंद करना
दोनों दोस्त ने सिगरेट ख़त्म की और घर की तरफ चल दिए ,दोनों एक ही मुहल्ले में रहते हैं गालियाँ
अलग हैं ,दोनों के अपने -अपने मकान है दोनों ने साथ ही साथ खरीदा था ,जोशी खरीदना नहीं चाहता था खरे
की जिद्द के आगे उसकी नहीं चली ,इस मकान को ले कर जोशी के पिता बहुत नराज थे ,वह चाहते थे भुआली में जगह लेना ,नैनीताल के बंगले को होटल बना देना चाहते थे ,इसी बात को लेकर कई सालों तक आपस में
बात -चीत नहीं थी ,दोनों की शादियाँ आगे -पीछे हुई थी। पहले जोशी की हुई थी जब वह बारवहीं क्लास में था
जिसकी शादी में मैं भी गया था और क्लास के और लड़के भी गए थे ,नैनीताल घूमने को जो मिल रहा था ,हम
सभी दोस्तों को तभी पता लगा ,शरद का अपना बँगला भी है जो उसके दादा जी ने किसी अंग्रेज से लिया था
जब हिदुस्तान आजाद हुआ था। आज भी वह बँगला है दोनों दोस्त गर्मिओं में यहाँ छुटियाँ मनाने जाते थे।
शरद जोशी जब अपने घर पहुंचा ,गेट खोल के अंदर गया ,उसको ऐसा महसूस हुआ ,घर में कोई है
कुछ कमरों की लाईट जल रही थी। पत्नी को मरे दस साल हो चुके है कोई औलाद है नहीं एक मेड है जो रात में अपने घर चली जाती है खाना ,नास्ता वही ही बनाती है। घर के अंदर की सभी लाइट बुझा के अपने कमरे में सोने गया। खरे के कहने पे एक बार एक किरायेदार लड़की रखी जो एयरहोस्टेज थी ,अक्सर घर से बाहर रहती है ,एक दो बार जोशी जी ने उसके साथ बाहर की शराब भी पी थी ,घर में और डांस भी किया था ,यह सब
बाते खरे को भी बतलाई थी ,उसका भी दिल मचला था ,और फिर एक दिन पुलिस आयी और उसको पकड़ के ले गयी। जुर्म था ,उसने कुछ महीने पहले किसी बूढ़े को ठगा और उसका खून कर दिया था ,और घर का सारा धन ले के उड़ गयी थी ,तभी से पुलिश उसकी तलाश में थी और पकड़ के ले गयी। पुलिस जोशी जी को समझा के गयी ,अपने बुढ़ापे का ख्याल रखो ,इस तरह के किरायेदार न ही रखे ,और रखने से पहले पुलिस को इत्तला
जरूर कर दें। शरद यही सब सोचता हुआ सोने लगा ,बार -बार एयरहोस्टेज का ख्याल आ रहा था ,दिखने में
कहीं भी उसके चेहरे पे चालाकी बदमासी नजर नहीं आती थी ,फिर वह यह सब कैसे करती थी ? कब उसकी
आँख लग गयी पता नहीं चला।
रात का कोई दो बजा था ,किचन में बर्तन गिरने की आवाज आई ,जोशी जी उठ के ,कमरे की लाइट
जलाई और किचन की तरफ गए ,किसी ने उनके ऊपर पिस्तौल तान ली ,बोलने लगा चिल्लाने की कोशिश
की तो गोली मार दूंगा ,मैं सिर्फ चाय पीना चाहता हूँ ,या पिला दो मुझे या बनाने दो ! जोशी जी कुछ समझते
बुझते ,बोल पड़े मैं बना देता हूँ ,और लगे बनाने ,और डरे हुए सोचते रहे ,क्या किया जाय। वह बदमाश वहीं
किचेन में खड़ा ही रहा ,वह बदमाश तभी बोल पड़ा , बड़े रशिया हो बुढऊ ,बहुत लौन्डिओ की फोटो रखी है
एक फोटो मुझे बहुत पसंद आयी उसे ले जा रहा हूँ ,जोशी जी चाय छान चुके थे सोचने लगे कौन सी फोटो ली है ,चाय उसकी तरफ बढ़ाई ,और एक खुद ली ,तभी पूछा दिखाओ कौन सी फोटो ली है ?दोनों कमरे में आ गए। चोर ने वह फोटो दिखलाई जिसे इसने जेब में रखी थी। जो अब मुड़ चुकी थी ,फोटो इनके बचपन की गर्लफ्रेंड
मीना की थी जिसे आज तक दोनों दोस्त चाहते है ,जोशी बोल पड़े ,अरे भाई यह फोटो दे दो इसके बदले कुछ
और ले लो। क्यों ? इसमें ऐसा क्या है ? निशानी है किसी की ,यह दे दो मुझे। चोर लगा इसे फाड़ने यह देख के जोशी उस पे झपट पड़ा और गर्म चाय उस पर फेंक दिया ,चोर तिलमिला गया और जोशी को मारने बढ़ा और
पैर में घर का क्लीन फंस गया चोर मुहँ के बल गिरा और उसका सर सोफे के कोने से जा लगा चोर चिल्लाया
और बेहोश हो गया ,जोशी जी ने फोटो ली और ठीक से पास किताब में रखा अब सोचने लगे क्या किया जाय ,
तभी चोर को होश आने लगा ,कुछ सोच के एक ग्लास में पानी लिया उसमे कुछ मिलाया और चोर को कहा यह पी लो पानी है चोर के सर से खून भी बाह रहा था। पानी पी के चोर उठने लगा ,जोशी जी कहने लगे यहाँ
आराम से बैठ जाओ। चोर पास के सोफे पे बैठ गया और आँखे बंद के आराम करने लगा ,और फिर सो गया
जोशी ने अपने दोस्त खरे को फोन किया ,और कहा मेरे घर जल्दी आ जाओ मेरी जान खतरे में है
रविवार, मार्च 29, 2015
हम दोनों
हम दोनों की कहानी तेरह साल की उम्र से शुरू हुई थी , दोनों सातवीं क्लास में फेल हुए थे। तभी से
हमारा साथ हुआ था ,उसका नाम अरविंद खरे ,और मेरा शरद जोशी मैं पहाड़ का रहने वाला था ,बाबू जी
पी ,डब्लू ,डी में कलर्क थे। हम दोनों के बारे में कोई तीसरा कहे तो ज्यादा अच्छा होगा ,वह निष्पक्ष होगा
तभी हमारी दोस्ती के बारे में कुछ सही लिख सकेगा ………। फिर मैंने अपने दोस्त गुरबचन सिंह से बात की वह एक अच्छा लेखक था ,कई मैगजीनों में छप चुका था।वह मान गया ,वह हम दोनों को बचपन से ही
जानता था ,चाहे वह हम दोनों का इश्क हो या हमारी पढ़ाई -लिखाई हो। हम दोनों की शादी का गवाह भी था
बच्चो के मुंडन ,ब्याह शादी जगह उपस्थित था ,मतलब उससे कुछ छुपा नहीं था अब वह ही आगे की कहानी
कहेगा |
यह दोनों दोस्त इतने करीब थे ,तेरह साल की उम्र में कोई लड़की पसंद आयी तो ,दोनों को एक ही लड़की से प्यार कर बैठे, जो उनके साथ उनके क्लास में ही पढ़ती थी ,वह हमेसा अगली सीट पे बैठती थी इन दोनों का पहला लव मीना थी ,जो उनके साथ एक ही साल साथ पढ़ी ,दूसरे साल उसके घर वालो ने ,पास के जुबली गर्ल्स स्कूल में लिखा दिया लेकिन इन दोनों ने उसका पीछा करना नहीं छोड़ा …………… ।घर तक मालूम
कर लिया था ,घर में कितने भाई -बहन है बाप क्या करता है ,होली में इसके मुहल्ले में जा कर होली खेलना
एक बार मीना के बाप से मार खाते -खाते बचे थे ,उसी उम्र में , मीना के और आशिक की धुलाई करना मतलब
मार -पीट कर लेना।
आज साठ साल बाद ,दोनों दोस्त सत्तर से ऊपर हो चुके हैं ,शादी भी हो चुकी ,एक ही मुहल्ले में
रहते हैं, दोनों के अपने -अपने मकान हैं खरे साहब के घर में उनकी पत्नी दो बेटे चार बेटियाँ हैं ,लेकिन सब
की शादी हो चुकी ,सभी बाल बच्चे वाले हो चुके हैं ,बेटियाँ अपने घरो में हैं। उनके साथ दो बेटे विमल और अजय साथ रहते हैं अजय सबसे छोटा है , नहीं -नहीं विमल छोटा है पत्नी को कैंसर है ,डाक्टरों ने कह दिया ,बस साल भर की बात है जितने सुख इन्हे देना है दे दीजिये |
रात का कोई नौ बजा है खरे साहब घर से निकल के सड़क पे आते हैं ,नुक्कड़ की दुकान पर पहुँचते
हैं ,जहाँ जोशी जी (शरद )पहले से खड़े इन्हीं का इन्तजार कर रहे थे ,आज देर हो गयी ,क्या बात है ? नहीं वह शांती को दवाई खिलानी थी ,आज बहुत पेन में थी । पनवाड़ी ने दो सिगरेट निकाल के एक एक दोनों दोस्तों को दी दोनों ने सिगरेट जलाई और लगे पीने ,खरे ने एक काश खींचा और कहना शुरू किया ,एक दुःख ख़त्म होता नहीं दुसरा शुरू हो जाता । अब क्या हुआ ? अजय बड़े वाले साहब कह रहे हैं मकान हम दोनों भाईओं के नाम लिख दें.…… तू यार अच्छा है , तेरे कोई औलाद नहीं है ,पत्नी का भी ग़म नहीं, दस साल पहले तुझे छोड़ के स्वर्ग सिधार गयी। पर मेरी एक बात याद रखना अपने जीते जी मकान अपने नाम ही रखना ,बच्चों के नाम लिखने की गलती मत करना ………। पनवाड़ी दुकान बंद करने लगा ,तभी जोशी जी ने पूछ लिया
क्या हमारा इन्तजार करते हो ,जब तक हम लोग आते नहीं ,तब तक दुकान बंद नहीं करते ? बाबू जी कह के
गए थे ,जब तक जोशो जी खरे जी ना आएं दूकान बंद नहीं करना ,उनको सिगरेट पिला देना फिर बंद करना
दोनों दोस्त ने सिगरेट ख़त्म की और घर की तरफ चल दिए ,दोनों एक ही मुहल्ले में रहते हैं गालियाँ
अलग हैं ,दोनों के अपने -अपने मकान है दोनों ने साथ ही साथ खरीदा था ,जोशी खरीदना नहीं चाहता था खरे
की जिद्द के आगे उसकी नहीं चली ,इस मकान को ले कर जोशी के पिता बहुत नराज थे ,वह चाहते थे भुआली में जगह लेना ,नैनीताल के बंगले को होटल बना देना चाहते थे ,इसी बात को लेकर कई सालों तक आपस में
बात -चीत नहीं थी ,दोनों की शादियाँ आगे -पीछे हुई थी। पहले जोशी की हुई थी जब वह बारवहीं क्लास में था
जिसकी शादी में मैं भी गया था और क्लास के और लड़के भी गए थे ,नैनीताल घूमने को जो मिल रहा था ,हम
सभी दोस्तों को तभी पता लगा ,शरद का अपना बँगला भी है जो उसके दादा जी ने किसी अंग्रेज से लिया था
जब हिदुस्तान आजाद हुआ था। आज भी वह बँगला है दोनों दोस्त गर्मिओं में यहाँ छुटियाँ मनाने जाते थे।
शरद जोशी जब अपने घर पहुंचा ,गेट खोल के अंदर गया ,उसको ऐसा महसूस हुआ ,घर में कोई है
कुछ कमरों की लाईट जल रही थी। पत्नी को मरे दस साल हो चुके है कोई औलाद है नहीं एक मेड है जो रात में अपने घर चली जाती है खाना ,नास्ता वही ही बनाती है। घर के अंदर की सभी लाइट बुझा के अपने कमरे में सोने गया। खरे के कहने पे एक बार एक किरायेदार लड़की रखी जो एयरहोस्टेज थी ,अक्सर घर से बाहर रहती है ,एक दो बार जोशी जी ने उसके साथ बाहर की शराब भी पी थी ,घर में और डांस भी किया था ,यह सब
बाते खरे को भी बतलाई थी ,उसका भी दिल मचला था ,और फिर एक दिन पुलिस आयी और उसको पकड़ के ले गयी। जुर्म था ,उसने कुछ महीने पहले किसी बूढ़े को ठगा और उसका खून कर दिया था ,और घर का सारा धन ले के उड़ गयी थी ,तभी से पुलिश उसकी तलाश में थी और पकड़ के ले गयी। पुलिस जोशी जी को समझा के गयी ,अपने बुढ़ापे का ख्याल रखो ,इस तरह के किरायेदार न ही रखे ,और रखने से पहले पुलिस को इत्तला
जरूर कर दें। शरद यही सब सोचता हुआ सोने लगा ,बार -बार एयरहोस्टेज का ख्याल आ रहा था ,दिखने में
कहीं भी उसके चेहरे पे चालाकी बदमासी नजर नहीं आती थी ,फिर वह यह सब कैसे करती थी ? कब उसकी
आँख लग गयी पता नहीं चला।
रात का कोई दो बजा था ,किचन में बर्तन गिरने की आवाज आई ,जोशी जी उठ के ,कमरे की लाइट
जलाई और किचन की तरफ गए ,किसी ने उनके ऊपर पिस्तौल तान ली ,बोलने लगा चिल्लाने की कोशिश
की तो गोली मार दूंगा ,मैं सिर्फ चाय पीना चाहता हूँ ,या पिला दो मुझे या बनाने दो ! जोशी जी कुछ समझते
बुझते ,बोल पड़े मैं बना देता हूँ ,और लगे बनाने ,और डरे हुए सोचते रहे ,क्या किया जाय। वह बदमाश वहीं
किचेन में खड़ा ही रहा ,वह बदमाश तभी बोल पड़ा , बड़े रशिया हो बुढऊ ,बहुत लौन्डिओ की फोटो रखी है
एक फोटो मुझे बहुत पसंद आयी उसे ले जा रहा हूँ ,जोशी जी चाय छान चुके थे सोचने लगे कौन सी फोटो ली है ,चाय उसकी तरफ बढ़ाई ,और एक खुद ली ,तभी पूछा दिखाओ कौन सी फोटो ली है ?दोनों कमरे में आ गए। चोर ने वह फोटो दिखलाई जिसे इसने जेब में रखी थी। जो अब मुड़ चुकी थी ,फोटो इनके बचपन की गर्लफ्रेंड
मीना की थी जिसे आज तक दोनों दोस्त चाहते है ,जोशी बोल पड़े ,अरे भाई यह फोटो दे दो इसके बदले कुछ
और ले लो। क्यों ? इसमें ऐसा क्या है ? निशानी है किसी की ,यह दे दो मुझे। चोर लगा इसे फाड़ने यह देख के जोशी उस पे झपट पड़ा और गर्म चाय उस पर फेंक दिया ,चोर तिलमिला गया और जोशी को मारने बढ़ा और
पैर में घर का क्लीन फंस गया चोर मुहँ के बल गिरा और उसका सर सोफे के कोने से जा लगा चोर चिल्लाया
और बेहोश हो गया ,जोशी जी ने फोटो ली और ठीक से पास किताब में रखा अब सोचने लगे क्या किया जाय ,
तभी चोर को होश आने लगा ,कुछ सोच के एक ग्लास में पानी लिया उसमे कुछ मिलाया और चोर को कहा यह पी लो पानी है चोर के सर से खून भी बाह रहा था। पानी पी के चोर उठने लगा ,जोशी जी कहने लगे यहाँ
आराम से बैठ जाओ। चोर पास के सोफे पे बैठ गया और आँखे बंद के आराम करने लगा ,और फिर सो गया
जोशी ने अपने दोस्त खरे को फोन किया ,और कहा मेरे घर जल्दी आ जाओ मेरी जान खतरे में है
हमारा साथ हुआ था ,उसका नाम अरविंद खरे ,और मेरा शरद जोशी मैं पहाड़ का रहने वाला था ,बाबू जी
पी ,डब्लू ,डी में कलर्क थे। हम दोनों के बारे में कोई तीसरा कहे तो ज्यादा अच्छा होगा ,वह निष्पक्ष होगा
तभी हमारी दोस्ती के बारे में कुछ सही लिख सकेगा ………। फिर मैंने अपने दोस्त गुरबचन सिंह से बात की वह एक अच्छा लेखक था ,कई मैगजीनों में छप चुका था।वह मान गया ,वह हम दोनों को बचपन से ही
जानता था ,चाहे वह हम दोनों का इश्क हो या हमारी पढ़ाई -लिखाई हो। हम दोनों की शादी का गवाह भी था
बच्चो के मुंडन ,ब्याह शादी जगह उपस्थित था ,मतलब उससे कुछ छुपा नहीं था अब वह ही आगे की कहानी
कहेगा |
यह दोनों दोस्त इतने करीब थे ,तेरह साल की उम्र में कोई लड़की पसंद आयी तो ,दोनों को एक ही लड़की से प्यार कर बैठे, जो उनके साथ उनके क्लास में ही पढ़ती थी ,वह हमेसा अगली सीट पे बैठती थी इन दोनों का पहला लव मीना थी ,जो उनके साथ एक ही साल साथ पढ़ी ,दूसरे साल उसके घर वालो ने ,पास के जुबली गर्ल्स स्कूल में लिखा दिया लेकिन इन दोनों ने उसका पीछा करना नहीं छोड़ा …………… ।घर तक मालूम
कर लिया था ,घर में कितने भाई -बहन है बाप क्या करता है ,होली में इसके मुहल्ले में जा कर होली खेलना
एक बार मीना के बाप से मार खाते -खाते बचे थे ,उसी उम्र में , मीना के और आशिक की धुलाई करना मतलब
मार -पीट कर लेना।
आज साठ साल बाद ,दोनों दोस्त सत्तर से ऊपर हो चुके हैं ,शादी भी हो चुकी ,एक ही मुहल्ले में
रहते हैं, दोनों के अपने -अपने मकान हैं खरे साहब के घर में उनकी पत्नी दो बेटे चार बेटियाँ हैं ,लेकिन सब
की शादी हो चुकी ,सभी बाल बच्चे वाले हो चुके हैं ,बेटियाँ अपने घरो में हैं। उनके साथ दो बेटे विमल और अजय साथ रहते हैं अजय सबसे छोटा है , नहीं -नहीं विमल छोटा है पत्नी को कैंसर है ,डाक्टरों ने कह दिया ,बस साल भर की बात है जितने सुख इन्हे देना है दे दीजिये |
रात का कोई नौ बजा है खरे साहब घर से निकल के सड़क पे आते हैं ,नुक्कड़ की दुकान पर पहुँचते
हैं ,जहाँ जोशी जी (शरद )पहले से खड़े इन्हीं का इन्तजार कर रहे थे ,आज देर हो गयी ,क्या बात है ? नहीं वह शांती को दवाई खिलानी थी ,आज बहुत पेन में थी । पनवाड़ी ने दो सिगरेट निकाल के एक एक दोनों दोस्तों को दी दोनों ने सिगरेट जलाई और लगे पीने ,खरे ने एक काश खींचा और कहना शुरू किया ,एक दुःख ख़त्म होता नहीं दुसरा शुरू हो जाता । अब क्या हुआ ? अजय बड़े वाले साहब कह रहे हैं मकान हम दोनों भाईओं के नाम लिख दें.…… तू यार अच्छा है , तेरे कोई औलाद नहीं है ,पत्नी का भी ग़म नहीं, दस साल पहले तुझे छोड़ के स्वर्ग सिधार गयी। पर मेरी एक बात याद रखना अपने जीते जी मकान अपने नाम ही रखना ,बच्चों के नाम लिखने की गलती मत करना ………। पनवाड़ी दुकान बंद करने लगा ,तभी जोशी जी ने पूछ लिया
क्या हमारा इन्तजार करते हो ,जब तक हम लोग आते नहीं ,तब तक दुकान बंद नहीं करते ? बाबू जी कह के
गए थे ,जब तक जोशो जी खरे जी ना आएं दूकान बंद नहीं करना ,उनको सिगरेट पिला देना फिर बंद करना
दोनों दोस्त ने सिगरेट ख़त्म की और घर की तरफ चल दिए ,दोनों एक ही मुहल्ले में रहते हैं गालियाँ
अलग हैं ,दोनों के अपने -अपने मकान है दोनों ने साथ ही साथ खरीदा था ,जोशी खरीदना नहीं चाहता था खरे
की जिद्द के आगे उसकी नहीं चली ,इस मकान को ले कर जोशी के पिता बहुत नराज थे ,वह चाहते थे भुआली में जगह लेना ,नैनीताल के बंगले को होटल बना देना चाहते थे ,इसी बात को लेकर कई सालों तक आपस में
बात -चीत नहीं थी ,दोनों की शादियाँ आगे -पीछे हुई थी। पहले जोशी की हुई थी जब वह बारवहीं क्लास में था
जिसकी शादी में मैं भी गया था और क्लास के और लड़के भी गए थे ,नैनीताल घूमने को जो मिल रहा था ,हम
सभी दोस्तों को तभी पता लगा ,शरद का अपना बँगला भी है जो उसके दादा जी ने किसी अंग्रेज से लिया था
जब हिदुस्तान आजाद हुआ था। आज भी वह बँगला है दोनों दोस्त गर्मिओं में यहाँ छुटियाँ मनाने जाते थे।
शरद जोशी जब अपने घर पहुंचा ,गेट खोल के अंदर गया ,उसको ऐसा महसूस हुआ ,घर में कोई है
कुछ कमरों की लाईट जल रही थी। पत्नी को मरे दस साल हो चुके है कोई औलाद है नहीं एक मेड है जो रात में अपने घर चली जाती है खाना ,नास्ता वही ही बनाती है। घर के अंदर की सभी लाइट बुझा के अपने कमरे में सोने गया। खरे के कहने पे एक बार एक किरायेदार लड़की रखी जो एयरहोस्टेज थी ,अक्सर घर से बाहर रहती है ,एक दो बार जोशी जी ने उसके साथ बाहर की शराब भी पी थी ,घर में और डांस भी किया था ,यह सब
बाते खरे को भी बतलाई थी ,उसका भी दिल मचला था ,और फिर एक दिन पुलिस आयी और उसको पकड़ के ले गयी। जुर्म था ,उसने कुछ महीने पहले किसी बूढ़े को ठगा और उसका खून कर दिया था ,और घर का सारा धन ले के उड़ गयी थी ,तभी से पुलिश उसकी तलाश में थी और पकड़ के ले गयी। पुलिस जोशी जी को समझा के गयी ,अपने बुढ़ापे का ख्याल रखो ,इस तरह के किरायेदार न ही रखे ,और रखने से पहले पुलिस को इत्तला
जरूर कर दें। शरद यही सब सोचता हुआ सोने लगा ,बार -बार एयरहोस्टेज का ख्याल आ रहा था ,दिखने में
कहीं भी उसके चेहरे पे चालाकी बदमासी नजर नहीं आती थी ,फिर वह यह सब कैसे करती थी ? कब उसकी
आँख लग गयी पता नहीं चला।
रात का कोई दो बजा था ,किचन में बर्तन गिरने की आवाज आई ,जोशी जी उठ के ,कमरे की लाइट
जलाई और किचन की तरफ गए ,किसी ने उनके ऊपर पिस्तौल तान ली ,बोलने लगा चिल्लाने की कोशिश
की तो गोली मार दूंगा ,मैं सिर्फ चाय पीना चाहता हूँ ,या पिला दो मुझे या बनाने दो ! जोशी जी कुछ समझते
बुझते ,बोल पड़े मैं बना देता हूँ ,और लगे बनाने ,और डरे हुए सोचते रहे ,क्या किया जाय। वह बदमाश वहीं
किचेन में खड़ा ही रहा ,वह बदमाश तभी बोल पड़ा , बड़े रशिया हो बुढऊ ,बहुत लौन्डिओ की फोटो रखी है
एक फोटो मुझे बहुत पसंद आयी उसे ले जा रहा हूँ ,जोशी जी चाय छान चुके थे सोचने लगे कौन सी फोटो ली है ,चाय उसकी तरफ बढ़ाई ,और एक खुद ली ,तभी पूछा दिखाओ कौन सी फोटो ली है ?दोनों कमरे में आ गए। चोर ने वह फोटो दिखलाई जिसे इसने जेब में रखी थी। जो अब मुड़ चुकी थी ,फोटो इनके बचपन की गर्लफ्रेंड
मीना की थी जिसे आज तक दोनों दोस्त चाहते है ,जोशी बोल पड़े ,अरे भाई यह फोटो दे दो इसके बदले कुछ
और ले लो। क्यों ? इसमें ऐसा क्या है ? निशानी है किसी की ,यह दे दो मुझे। चोर लगा इसे फाड़ने यह देख के जोशी उस पे झपट पड़ा और गर्म चाय उस पर फेंक दिया ,चोर तिलमिला गया और जोशी को मारने बढ़ा और
पैर में घर का क्लीन फंस गया चोर मुहँ के बल गिरा और उसका सर सोफे के कोने से जा लगा चोर चिल्लाया
और बेहोश हो गया ,जोशी जी ने फोटो ली और ठीक से पास किताब में रखा अब सोचने लगे क्या किया जाय ,
तभी चोर को होश आने लगा ,कुछ सोच के एक ग्लास में पानी लिया उसमे कुछ मिलाया और चोर को कहा यह पी लो पानी है चोर के सर से खून भी बाह रहा था। पानी पी के चोर उठने लगा ,जोशी जी कहने लगे यहाँ
आराम से बैठ जाओ। चोर पास के सोफे पे बैठ गया और आँखे बंद के आराम करने लगा ,और फिर सो गया
जोशी ने अपने दोस्त खरे को फोन किया ,और कहा मेरे घर जल्दी आ जाओ मेरी जान खतरे में है
गुरुवार, जनवरी 22, 2015
मैं
उसे सब कुछ मालूम था ,वह ऐसा ही कुछ कहता था। एक शाम मैं के करीब बैठा था ,और उसे सुन रहा था।
लगातार एक घंटे वह बोलता रहा ,सुनता रहा मैं को वह ,वह उम्र में बहुत छोटा था और मैं उम्र में बहुत बड़ा था !
मैं की कहानी के बहुत से रंग थे ,हर रंग बहुत खिला हुआ सा था ,एक बात थी, मैं, वह, को समझा -बुझा के ही आगे
की कहानी कहता था।
बात उस समय की है ,जब मैं जवान था मैं का नाम मुरली था । वह सोच से,बहुत सीधा था।
किसी के बारे में ,हमेशा पज़टिव सोच रखता था , कभी भी ऊँची आवाज में बोलते नहीं सुना , सब उसे बहुत सीधा कहते
थे। एक छोटी सी खोली थी ,जिसमे वह और अभी -अभी गाँव से आईु पत्नी साथ रहते थे। सुबह आफिस जाते समय पत्नी
को घर के अंदर बंद कर के जाता था ,वजह मुंबई शहर होने का ,बाहर से ताला लगा बार बार खींच के जरूर देखता था।
मैं जो था ,मतलब मुरली धर चौबे ,जो थे वह मथुरा के निवासी थे ,इनके पिता पन्डा थे ,लोगो को कृष्ण के बारे में बताते
उनके चमत्कार बता के वह अपना घर चलाते थे। मुरली उनकी इकौलती औलाद थी ,उसकी पढ़ाई -लिखाई यही मथुरा में हुई थी
पढ़ने में मुरली बहुत तेज था ,यही वजह थी पिता ने मुरली को अपने पंडिताई में नहीं लगाया ,और उसे पूरी छूटपढ़ने की दी।
समाज के कुछ कानून थे जिन्हें मानना ही पड़ता था ,जैसे मुरली की शादी जो बचपन में , तै हो चुकी थी , उसे करने का
वक्त आ गया था ,सो कर दिया गया। पढ़ -लिख के जब मुरली की नौकरी टाइम्स ऑफ़ इंडिया में क्राइम रिपोर्टर बतौर लग गयी।
अब बापू बार -बार यही चिठ्ठी में लिखते हैं। अपनी पत्नी को ले जावो ,फिर एक दिन सुबह -सुबह दरवाजे पे खट -खट होता है मुरली
ने दरवाजा खोला ,सामने अपने साले को देख के बोल पड़ा , अरे गोविन्द यहाँ कैसे ? ,दीदी को ले कर आया हूँ ! दीदी को क्यों ? मुझे
बापू ने कहा इसे , इसके कान्हा के पास पहुँचा के आ ,और मैं दीदी को ले कर आ गया। मुरली को अब जा के समझ आया उसकी
पत्नी उसके पास आ गयी है। कुछ सोचते हुए ,मुरली ने पूछा अरे गोविन्द तुम्हारी दीदी है कहाँ ? वह टैक्सी ,सड़क पे खड़ी है उसी में
बैठी है। अकेले छोड़ के क्यों आ गए ? क्या करता ,इस गली में थोड़े आ सकती थी। अच्छा चलो -चलो ,मुरली सोचने लगा ,वह पहली
बार अपनी घरवाली को देख रहा था ,कैसी हो गी ? दोनों टैक्सी के पास पहुँचे ,मुरली ने दूर से ही टैक्सी के अंदर देखना चाहा , घूँघट में
एक औरत बैठी थी। टैक्सी वाले ने खुद ही मुरली की पत्नी को कहा बिटिया तुम्हारे घरवाले आ रहे है ,तभी राधा ने घूँघट किया था।
टैक्सी का बिल मुरली ने दिया , गोविन्द ने समान निकाला और अपनी बहन को गाड़ी से बाहर निकलने को कहा ,दीदी बाहर आ
जावो। गोविंद थोड़ा समान मुझे दे दो ,नहीं जीजा ,आप दीदी को ले कर आवो गोविन्द ने कहा। दीदी टैक्सी से बाहर निकल के मुरली के
पैर छुए ,मुरली एक पल को सकपका गया ,और बोल पड़ा नहीं नहीं रहने दो ,उसने पत्नी राधा को बचपन में एक बार देखा था ,अब कैसी होगी
उसे नहीं मालूम है। मुरली के पीछे -पीछे मीरा आने लगी ,खोली तक आने में आस -पास के लोगों को पता चल गया ,मुरली शादी -शुदा है
इस छोटी सी चाल में ,एक कमरा था ,और उसी से लगा किचन था ,और उसी के बगल एक टॉयलेट था। मीरा ने अभी तक घूँघट
किया हुआ था , मुरली ने अभी तक मीरा की शक्ल तक नहीं देख पाया था उसके गोरे -गोरे हाथों को देख के उसे लगा ,गोरी तो बहुत है ,मुरली
ने चाय का पानी रख दिया ,पास रखी दो कुर्सिओं पे गोविंद और राधा बैठ गए। मुरली चाय बनाते -बनाते अपनी पत्नी को देख लेता था ,राधा ने
अपना घूँघट काम नहीं किया था अभी तक ,ब्रज यह रिवाज है पत्नियाँ हमेसा पति के समाने घूँघट रखती हैं।
आज मुरली आफिस नहीं गया ,अपने साले और पत्नी को यहाँ के बारे में बताया, सुबह उठ के पानी भरना होगा ,दूध लेने के लिए सड़क के
बूथ तक जाना होगा ,दिन का खाना बनाने को लेकर सब कुछ बताया, उस वक्त स्टोब पे खाना बनाया जाता था। सब से बड़ी दिक्कत शाम को हुई ,एक
ही कमरा था, उसी में तीनों को सोना था ,कैसे भी रात कटी सुबह मुरली जल्दी उठ के तैयार हो गया और आफिस को चल दिया ,बहुत कुछ भाई -बहन
को समझा गया। मुरली के जाने बाद ही राधा ने घूँघट काम किया ,गोविंद ने कहा दीदी मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए ,यहाँ हम तीनो का रहना बहुत
मुश्किल है , क्यों मुश्किल है ? रात में क्या नहीं सोये थे और कैसे सोना चाहिए ,बापू से यही कह के आये थे की मैं राधा का ख्याल रखूँगा ,फिर
क्यों जा रहे हो ?
शाम होते -होते भाई -बहन में ढेर सारी बात हुई ,करीब रात के आठ बजे मुरली घर में आया, फिर राधा ने घूँघट कर लिया ,उसको देखा ,मुस्कराते हुए
वहीं बैठ गया. गोविन्द पूछता है जीजू रोज ही इसी वक्त आते हो ,फिर तो दीदी पूरा बोर हो जाएगी ,फिर अपने साथ ऑफिस ले जाऊंगा ,यह सुन के हंस पड़ता
है , पास खडी राधा भी हँस पड़ती है ,दीदी को कहो चाय पिला दे , दीदी को स्टोप जलाना नहीं आता ,हमने ने तो दिन में इसी चक्कर में खाना भी नहीं खाया ,चलो
तुम लोगो को स्टोप जलाना सीखा देता हूँ ,राधा किचन में चली गयी ,मुरली ने गोविन्द से कहा "यार अपनी दीदी से कहो मेरे समाने घूँघट ना किया करे ,तभी राधा आ जाती है ,मुरली को पानी देती है
दीदी ,भैया कह रहे थे क्यों घूँघट करती हो इनके सामने ? वह हँस कर चली जाती है। फिर दिन में एक घटित घटना के बारे में बताते हैं , क्या हुआ मुझे स्टोप
जलाना नहीं आता था ,भूख भी बहुत लगी थी ,वह पेड़े जो आप के लिए लाये थे ,हम लोगो ने वही खाया,और भूख इतनी थी कि एक एक कर के सभी पेड़े खा गए , मतलब
पूरा डब्बा ही चट कर गए।
शाम का खाना बना , सभी ने मिल के खाया ,रात में सिर्फ सोने वाली दिक्कत थी. तीनो लोगो को एक ही कमरे सोना जो पड़ता था ,मुरली थोड़ा सा
बाहर टहलने गया ,उस एजेंट से जा मिला ,बड़े घर की बात करने लगा ,एजेंट ने बताया किराया थोड़ा ज्यादा देना पड़ेगा। ठीक है दिखा दो सन्डे को। घर पहुंचा
सालने ने पूछ ही लिया ,कहाँ चले गए थे ? वह घर का मालिक मिल गया था कहने लगा ,कैसे तीनो लोग एक कमरे में रहते हो ? जीजू आप ने क्या कहा ? मैं क्या कहता
चुप रहा ,फिर उसी ने कहा ,मैं देखता हूँ बड़ा घर । लेकिन क्यों , मैं तो चला जाऊँगा कुछ दिनों में। वह सब तो ठीक है ,लेकिन तुम्हारी दीदी को तकलीफ हो
जाती है। तभी राधा बोल पड़ी मुझे क्यों तकलीफ होगी ,गोविन्द बोल पड़ता है ,क्या दीदी सुबह क्या कह रही थी ,जीजू के साथ इस तरह सोना ठीक नहीं लगता है ,जीजू
मन की बात समझ जाते हैं , एक काम करते हैं ,मैं बाहर दरवाजे के सामने सो जाता हूँ ,घर की चौकीदारी जाएगी और सभी लोग आराम से सो जायेंगे ,तभी राधा बोल पड़ी किचन
में इतनी जगह मैं सो जाउंगी और आप लोग कमरे में। दीदी मुझे लग रहा है, मुझे चलेजाना चाहिए मथुरा बापू के पास ,फिर ऐसा कर मुझे भी अपने साथ लेते चल ,मैं क्या
करूंगी अकेले यहां ? राधा ने कहा। यह सुन मुरली चुप एकदम चुप ,यह सुन के गोविन्द भी खामोश।
एक सप्ताह रहने के बाद गोविन्द जाने को तैयार है ,वापसी टिकट गोविन्द मथुरा से ही ले के आया था, यह बात राधा को नहीं मालूम थी। राधा बहुत रोई अब भी उसके सर का
घूँघट थोड़ा सा काम हुआ था लेकिन तब भी चेहरा नहीं दिखता था। गोविन्द ने बहन के पैर छुए ,मुरली छोड़ने जा रहा था ,और पत्नी को कहा उधर से आफिस चला जाऊँगा ,और सुनो
कोई भी आये तो घर मत खोलना मैं शाम को आऊंगा। मैं बोलूंगा खोलो दरवाजा तब खोलना ,मेरी आवाज पहचान के ,समझ गयी ना। उसने घूँघट में से ही हाँ कहा ,राधा घर में आई
और अंदर से बंद कर दिया।
दोपहर का वक्त था ,राधा जमीन पे लेटी हुई थी , दरवाज़े पे किसी ने खटखटाया ,राधा उठी अभी तो दो बजे थे ,राधा ने अपनी घड़ी देख के अन्दाजा किया ,यह तो हो नहीं हो सकते हैं
इन्होने ने शाम में आने की बात की थी ,अभी कैसे आ सकते हैं ? फिर भी राधा उठ के बैठ गयी ,दरवाज़े की तरफ देखने लगी ,खटखट हो रहा था। बाहर छक्के थे, जो जोर -जोर से अपनी भाषा
में कह रहे थे ,नई -नई दुल्हन लाया ,हमें कुछ दिए मजे मार रहा है ,हाय हाय हमी से नखरा खोल भी दे मेहरिया की शक्ल दिखा हमें। राधा डरी सी चुप चाप अंदर बैठी ही रही ,और अपने कान्हा
से कह रही थी ,इनको भगा यहां से ,कुछ देर तक छक्के हल्ला मचाते रहे फिर खुद ब खुद चले गए।
राधा दिन भर आज भूखी ही बैठी रही न कुछ खाया न खुछ पिया ,बार -बार घड़ी ही देखे जा रही थी। रात का आठ बजा ,दरवाजे से लग के खड़ी हो गयी ,कब खट खट हो और वह जा के दरवाज़ा खोले
कुछ देर इन्तजार के बाद ,दरवाजा नाक हुआ ,राधा दरवाजे के पास कान लगा के सुनने लगी ,तभी बाहर से आवाज आयी , मैं हूँ खोल दो ,मैं हूँ …………। यह सुन के राधा ने दरवाजा
खोला ,सामने मुरली था , अंदर आया और पास रखी कुर्सी पे बैठ गया। गोविंद को ट्रेन पे बिठला दिया था और बीस रूपये दे दिया था ,राधा पानी ले कर आयी। पानी लेते -लेते उसके हाथों को पकड़
लिया ,और बहाने से कहने लगा यह तुम्हारा हाथ कैसे जल गया ? हाथ पकडे यह देखो ,यह देखो। कहाँ ? यह देखो मुरली राधा के बिलकुल करीब आ गया , झूठ -झूठ आप मुझे …………… . सच
कह रहा हूँ ,यह देखो मुरली ने उसको और करीब कर लिया। लजा गयी राधा ,तुम्हे नहीं दिख रहा है ?वह हंसने लगी , क्या हुआ ? क्या हुआ ?बताओ बताओ ना। मैंने सुबह से कुछ नहीं बनाया
सुबह की बची दो पूड़ियाँ खा लिया था ,लेकिन घबरा के कहने लगी दिन में कुछ छक्के आ गए थे ,ज़िद्द करने लगे ,और कहने लगे ,खूब मजा मार रहे हो ,उनको कैसे मालूम ? क्या ,हम कहाँ मजा
मार रहे हैं ,कितनी मुश्किल से सो रहे थे ,सही है ना। राधा पहली बार जी खोल के हँसी …………………।
मुरली उसके बगल बैठा ,राधा को समझा रहा था ,मैं सब समझ गयी ,यह सब करने से अच्छा है ,तुम बाहर से ताला लगा के जावो ,बात ख़त्म मैं अंदर से बंद रखूँगी ,जब तक तुम खोलने
के लिए नहीं कहोगे ,तब तक मैं अंदर से नहीं खोलूंगी। क्या बात है ,बहुत समझदार हो। अच्छा यह ,घूँघट मेरे सामने मत किया करो ,सर खोल के रहूँ , नहीं यह कहने का मतलब नहीं है , मैं जैसी हूँ
ठीक हूँ। मुरली को राधा का मिज़ाज समझ में आ गया ,बात को बदलते हुए कहने लगा , खाने में कुछ मिलेगा ? राधा ने खुली आँखों से मुरली को देखा ,पूछा क्या खायेंगे ? जैसे कह रही हो तुम्हे ,
खाने की भूख नहीं है ,मेरी भूख हो मुझे पाने की भूख है , मैं सोचने लगा यह पत्नियाँ अन्दर की बात कैसे समझ लेती हैं ? वह मुझे देखती रही ,मैं खड़ा हुआ ,और उसको गले लगा लिया ,आते थे और जी
भर के प्यार किया ,हम दोनों पसीने तर -बतर थे। हम दोनों देर रात तक लेटे रहे ,वह मुझसे पूछती रही ,कभी हमें याद भी नहीं किया ,आप ने ?भूल गए थे कोई वीबी भी है ,जो तुम्हारे इंतजार
में ,मथुरा में पड़ी है ,मैं कान्हा वाली राधा नहीं हूँ ,जिसने उन्हें द्वारिका जाने दिया और साथ नहीं गयी। अच्छा यह बताओ ,कुछ भूख अभी है ?यह कह के हँस पड़ी ...................
राधा ने पूरा घर अब सभाल लिया था, एक बच्चा भी होने वाला था। राधा देखने में सुन्दर बहुत थी ,रंग गोरा था ,कद अफगानी लड़किओं जैसा , उसकी सुंदरता ने सारे मोहल्ले
को अपनी मुठ्ठी में कर लिया था ,नवजवान एक बार दिन में उसके दर्शन जरूर कर लेते ,यह बात राधा को भी मालूम थी। घर बैठे अपना सारा काम करा लेती थी ,औरते भी उसकी दोस्त
बन गयी थी। मुरली की भी खूब दोस्ती लोगो से हो गयी थी ,हर कोई उसके बहुत करीब आना चाहता था। लोग डरते भी थे ,वह इस लिए कि वह क्राइम रिपोर्टर जो थी। अक्सर वह बदमाशो
से उसकी मुलाक़ात होती थी। अक्सर पुलिस वाले भी उससे मिलने आते थे।
एक दिन मुरली आफिस से लौट के ही नहीं आया ,सुबह तक राधा जागती रही ,कोई खबर नहीं मिली मुरली की ,अब राधा को चिन्ता होने लगी। मोबाईल का जमाना नहीं था।
कैसे पता करे ,यही सब सोच रही थी ,तभी मुरली घर में आया ,उसके चेहरे से लग रहा था रात भर सोया नहीं। राधा के मन में गुस्सा भी और आने की ख़ुशी भी थी ,राधा ने कुछ पूछा
नहीं जल्दी से चाय बना के ले आयी ,मुरली ने चाय ली और पीना शुरू किया ,अभी तक राधा ने कुछ पूछा भी नहीं। मुरली ने चाय पूरी ख़त्म की ,खुद ही कहना शुरू किया ,बहुत मुसबित में
फँस गया था ,पिछले हफ्ते मैंने जिस के बारे में लिखा था ,वह मुझे जबदस्ती अपनी कार में बिठा के खंडाला ले के गया था। वह नंबर दो का आदमी था , सब के पास पिस्तौल थी ,वह मुझे
किसी समय गोली से मार सकता था ,फिर मैंने उसको सच्चाई बतलाई ,तुम्हारे बारे में छापने के लिए तुम्हारे भाई ने मुझसे कहा था। और यह भी कहा इससे भाई का रूतबा बढ़ेगा ,और इसका मुझे
दस हजार रूपये भी दिए गए ,यकीन ना हो अपने भाई से अभी पूछ लो ?
जब भाई को सच्चाई पता चली ,तब उन्होंने मुझसे एक बात कही ,तुम मेरे बारे में लिखा करो, हर खबर का दस मिलेगा खुस हुआ तो डबल हो जाएगा ,पर छपने से पहले
एक बार मुझे सुनाना पडेगा , बस हमसे गद्दारी मत करना , इस मुंबई शहर में तुम्हे कोई छू भी नहीं सकता , सुरेश जा छोड़ के इसे आ, इसके इलाके के लड़कों को कह दे ,यह मेरा
छोटा भाई है।
इस तरह मैं बच आया ,इनकी दोस्ती भी अच्छी नहीं और ना दुश्मनी
मैं
मंगलवार, दिसंबर 23, 2014
एक ट्रेन की कहानी
मेरी मुलाकात उससे ,एक ट्रेन के सफर में हुई थी ,मेरे पास एक बर्थ थी ,कानपुर में एक जानपहचान का आदमी मिला ,मुझसे कहने लगा तू तो मुम्बई ही जा रहा है ना ! मैंने हाँ में कहा ,क्यों क्या बात है ? कहने लगा ,क्या है एक असामी लड़की मुंबई जा रही है ,उसे अपनी सीट पे आपने साथ ले जावो ? मैं चुप, फिर उसने पूछा क्या सोच रहा , लो वह आ ही गयी ,खुद सब कुछ कहने लगा ,इसके साथ बैठ जाओ यह मुंबई ही जा रहे है मेरी तरफ देख के क्या सीट नंबर है तेरा ? लो ट्रैन भी चल दी ,चलो बैठ जाओ ,वह लड़की जिसे अभी तक मैंने ठीक से देखा भी नहीं था ,मेरे साथ आ के ,मेरी सीट पे बैठ गयी ,मैं खिड़की से बाहर देखने लगा आस - पास बैठे लोग समझनहीं पा रहे थे ,यह क्या माज़रा है कोई एक घंटे के बाद ,उसकी तरफ देखा तो वह सीट के सहारे सर रख के सो रही है ,इस बार उसका चेहरा मैंने ठीक से देखा , बिल्कुल शांत ,गोरा रंग ,बैठी हुई नाक ,ओंठो का रंग लाल सुर्ख बार -बार सर उसका एक तरफ गिर रहा था ,मैं उसके थोड़ा करीब हो के बैठ गया ,इस बार उसके सर को मेरे कंधे का सहारा मिल गया ,और वह आराम से सोती रही।
उरई स्टेशन आया, गाडी यहां रुकी,, रुकने से एक झटका सा लगा और उस असामी लड़की की आँख खुली ,और तुरंत ही जब एहसास हुआ मेरे कंधे का सहारा उसने लिया है , तुरंत ही कहा सॉरी …… कोई बात नहीं। फिर कहने लगी मैं सो नहीं पाया कल से ,बहुत भीड़ था ट्रेेन में ,सॉरी। नो प्राब्लम ऐसा है ,आप आराम से लेट जाइए ,अभी तो लंबा सफर है ,वह अपनी छोटी -छोटी आँखों से मेरी तरफ देखती रही। जैसे उसे कोई भला इंसान मिल गया हो। इतना कहने के बाद सच में ही मेरी सीट पे लेट गयी ,और मुझे थैंक्स कहा लेकिन मैंने खिड़की नहीं छोड़ी वहीं बैठा रहा ,उरई से ट्रैन चल दी ,सामने बैठे हुए एक साहब ने हिम्मत कर के मुझसे पूछ ही लिया ,कौन हैं मेडम ? थोड़ा रुक के जवाब दिया, पहले मैंने उनकी आँखों में झांक के देखा , और फिर जवाब दिया , मेरे दोस्त की बहन है ,मेरे साथ चल रही है ,अब कुछ मत पूछना ! वह सच में डर गया ,यही सब बात चीत हो ही रही थी ,उस असामी लड़की ने मेरे जांघो पे अपना सर रख दिया ,यह देख के मैं एक पल को डर गया ,लेकिन जिन साहब ने मुझसे पूछा था ,वह यह देख के बाथ रूम की तरफ चल दिए , मैं बिलकुल ही फंस गया और वह सच में सो रही थी या जाग रही थी ?
उरई से झांसी तक आने में करीब तीन घंटे लगे मेरे पैर सुन हो रहे थे ,और वह आराम से कभी इस करवट कभी दूसरी करवट होती रही ,सामने वाले मौलाना जी अंदर ही अंदर हंस रहे थे ,बीच में एक बार उन्होंने कहा भी मुझसे ,मोहतरमा को एक तकिया दे दीजिये वरना ……………………। मेरी हालत उस कुत्ते की थी ना घर का ना घाट का ,कैसे भी जब झांसी आ के गाड़ी रुकी मेरे कहने से पहले वह खुद ही वह उठ बैठी ,कहने लगी खूब सोई, अब तो भूख लगी है। सामने बैठे मौलाना जी की हम पे पूरी नज़र रहती थी हर बात को बकायदा सुन रहे थे। हम दोनों स्टेशन पे आ गए ,वह मेरे हाथों में हाथ डाले स्टेशन पे घूमने लगी ,जैसे कोई नए जोड़े हों,, ट्रैन झांसी में दो घंटे रुकती है,, पीछे से पंजाब मेल आती है,, उसी में यह चार डिब्बे लगते हैं,, फिर गाड़ी आगे जाती है। हम दोनों में अभी तक कुछ ही बाते हुई थी ,एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं पूछा गया ? इसकी पहली वजह थी ,उसे सिर्फ इंग्लिश ही आती थी मुझे सिर्फ हिंदी ,दोनों थोड़ा हिंदी और इंग्लिश समझ और बोल पाते थे। हम स्टेशन के एक रेस्टोरेंटमें पहुंचे ,और लड़की ने मटन का ऑर्डर किया मैंने थाली मांगी वह उस समय बारह आने की आती थी। लेकिन मुझे एक ही डर सता रहा था यह साढे चार रुपए का बिल कौन देगा?
पहले बिल देने की इच्छा ज़ाहिर की लेकिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया , नो ई विल पे ,और उसने पैसे दिए ,फिर उसने कहा आई वांट स्मोक ,मैंने कहा ओके , मैं बाहर गया एक सिगरेट जला के ले आया ,उस वक्त खुले रूप में लड़कियां सिगरेट नहीं पीती थी ,रेस्टोरेंट में मैं एक कस लेता था , फिर उसे दे देता था। इस तरह उसने सिगरेट का मजा लिया
तभी वेटर ने कहा साहब पंजाब मेल आ रही है। हम दोनों जल्दी से उठे और अपने कम्पार्टमेंट की तरफ चल दिए।
मौलाना जी हमारा इंतज़ार ही कर रहे थे ,कहने लगे ,मुझे लगा आप लोगो ने झांसी को ही आशियना बना लिया है ,अब मुझे लगा इन्हे भी कोई जवाब देना चाहिए ,जनाब हम तो आजाद पछींं हैं,, कहीं भी बसेरा बना लेते है,, कहीं भी चटाई बिछा के सो जाते हैं,, हमारा क्या है, आप ने कुछ खाया -पीया या यूँ ही सूखते रहे डब्बे में ? अब कुछ बोले मैंने उस बेला को (फिलहाल उसे बेला ही बुलाते हैं ) खिड़की के पास बिठा दिया , मौलाना जी से रहा नहीं गया ,कहने लगे मोहतरमा की आँखों में कोयला चला जाएगा , हुजूर अब बिजली का इंज्जन लगेगा ,कोयला नहीं उड़े गा ,कोयला का वक्त गया।
बेला कुछ समझ नहीं पा रही थी ,लेकिन उसे यह महसूस हो गया था ,जो बाते हो रही थी उसे लेकर हो रही थी , तब उसने मुझसे पूछा व्हाट ही इज सेयिंग ,कुछ नहीं बस उनको अच्छा नहीं लग रहा व्हाई यू आर सो क्लोज टू मी ? ओह ओल्ड मैन ,पुअर ,मौलाना यह सुन के चुप हो गए ,और वह असामी लड़की मुझ से इस तरह चिपक के बैठ गयी ,और कभी -कभी
मुझे छेड़ देती ,मेरे गालो को छू लेती और मेरी जाघों के बीच अपना हाथ दाल देती ,मतलब बेशर्मी की हद हो चुकी थी। मौलाना अब खिड़की से बाहर ही झांकते रहे बस ,कभी कदार कनखिओं से झांक लेते ,टूटी -फूटी इंग्लिश में अपने बारे में बतलाया ,उसने अपने बारे में बताया वह मुंबई में सेंजेबियस में पढ़ती है ,मैं अब समझ गया बड़े घर लड़की है ,तभी तो घर से इतनी दूर पढ़ती
है।
रात का कोई नौ बजा था ,भोपाल आने वाला था ,भूख लगी थी हम दोनों को ,हम लोगो ने सोचा, अब खाना खा लेना चाहिए लेकिन कैसे खाया जाय ,माँ ने मुझे पूड़ी और शब्जी बांध के दिया था ,लेकिन दोपहर को खा नहीं सका था ,अब तक बेला से इतनी पहचान हो चुकी थी कि छिपा के खा सकता नहीं था ,मैंने कहा ,माँ ने कुछ फ़ूड दिया है ,यु लाइक टू ईट ,?यह
सुन के उसने बेहिचक हाँ कह दिया। फिर मैंने अपने बैग से एक डिब्बा निकाला ,एक ही डब्बा था ,मैंने उसके हाथ में पकड़ा दिया और बैग बंद कर के ऊपर रख दिया ,उसने मेरी तरफ देखा और कहा खोलो ,मैंने खोल के देखा ,तो पाया मीठी वाली पूड़ी थी और आचार आम का ,आचार देख के बोल पड़ी ,आई लाइक पिकल्स ,और मुस्करा इस तरह थी जैसे उसको कुछ वह मिल गया
जिसकी वर्षों से इच्छा थी और कहने लगी यू ईट चपाती ,एण्ड आई विल टेक मैंगो पिकल्स ,उसने दोनों आचार उठा लिए और खाने लगी ,और मैं मीठी पूड़ी खाने लगा। वह यूँ चटखारे ले खाने लगी की सामने बैठे मौलाना जी से रहा नहीं गया ,और बोल ही पड़े ,क्यों भाई, बहन का पैर भारी है क्या ? जो इतना आचार खा रहीं है। पैर का तो पता नहीं ,हाँ ! हाथ भारी जरूर है , यह सुन के मौलाना
साहब चुप हो गए ,उनको एहसास था ,अब कुछ और बोला तो कुछ उलटा हो ही जाएगा। मैं मौलाना जी की तरफ देखता रहा ,और मीठी पूड़ी भी साथ -साथ खाता रहा ,गुस्सा इतना आ रहा था , यह कुछ और पूछे मैं इसके मुँह पे एक कस के घूंसा जमा दूँ , मौलाना समझ गया था कि मैं गुस्से में हूँ ……………… .।
रात का एक बज रहा था , सामने के मौलाना जी सो चुके थे। जाड़े का मौसम था ,मेरे पास एक कम्बल था ,जिसे मैंने बैग से निकाल लिया था , लेकिन बेला के पास कुछ नहीं था लेकिन उसने लेदर का जैकेट पहना हुआ था पैरों में गर्म मोज़े थे , यह शरद रात इन्हीं कपड़ों में ही बिताएंगी ,मुझे लगा रात मेरी बैठे -बैठे ही गुजरेगी ,मैंने आधा कम्बल उसकी तरफ बढ़ा दिया
सभी लोग सो चुके थे , बेला भी खामोश सी बैठी खिड़की से बाहर झाँक रही थी ,चांदनी रात थी ,चाँद के उजाले में कुछ नज़र आ रहा था ,और इस ठंड रात में बाहर का मौसम कैसा होगा इसका अनुमान अंदर से लगाना मुश्किल ही था । मैं आँखे बंद किये ,यही सोचे जा रहा था । रात तो बड़ी लम्बी है ,इस तरह बैठे बैठे कैसे गुजरेगी ?और एक सीट पे दो लोगो का सोना ,और फिर वह एक लड़की है
बार बार मैं अपने दोस्त को कोसता जा रहा था ,उस वक्त ट्रेन की जो सीटें होती थी वह पटरे की होती थी ,नीचे से भी ठंडी हवाएँ से छू रही थी । तभी मुझे महसूस हुआ ,वह मुझे हिला रही थी ,आँखे खोली ,बेला मुझसे कह रही थी ,यु स्लीप , आई ....... सिट। नो नो नो आप सो जावो ……… । उसने मेरी बात को अनसुनी कर के मुझे जबरदस्ती लिटा दिया ,और उसने अपना बैग ,एक तकिया बना
के मेरे सर के नीचे रख दिया ,मुझे उसकी बात माननी पड़ी ,और उस ने कम्बल ठीक से मुझ पे डाल दिया ,और थोड़ा सा अपने ऊपर रख लिया । मैं आँखे बंद किये यही सोचे जा रहा था ,कैसा रिस्ता बनता जा रहा था ,उसने कम्बल में से मेरे सर को सहलाने लगी ,उसका हाथ गर्म था ,उसका इस तरह सहलाना मुझे अच्छा लगने लगा , सच कहता हूँ मुझे अपनी माँ की याद आने लगी ,एक पल को उसके बारे में जो गलत -सलत विचार थे वह सब कहाँ गए ,मैं कब सो गया मुझे पता नहीं चला ।
सुबह जब आँख खुली तो वह सीट पर नहीं थी ,किससे पूछूं समझ नहीं आ रहा था ,कोई स्टेशन था ,बाहर चाय ,गर्म चाय ,चाय गर्म आवाजे आ रही थी ,मैंने खिड़की से झांक कर देखा ,पास ही उसका बैग पड़ा हुआ था ,यह देख के मन शांत हुआ ,अब उसका साथ रहना अच्छा लग रहा था ,तभी वह खिड़की पे दो चाय ले कर आई ,और उसने मुझे नाम से बुलाया मिस्टर नीरज टेक टेक मैंने एक चाय ले ली ,इट्स हॉट ? यस इट्स हॉट ,ट्रेन चलने लगी ,जल्दी आवो मैंने कहा ,वह पीछे भागी ,ट्रेन धीरे -धीरे तेज चलने लगी ,लेकिन बेला अभी तक नहीं आई थी ,मैं थोड़ा चिंतित हो गया ,मैंने डिब्बे में इधर उधर देखने लगा वह कहीं नज़र नहीं आ रही थी ,मैंने दरवाज़े के पास बैठे लोगो से पूछा ,एक आसामी लड़की ट्रेन में अभी चढ़ी थी ,उसने ना में सर हिला दिया ,कोई नहीं चढ़ा ,मैं डर गया ,दरवाजे पे खड़े कुछ लोगों से पूछा ,भाई साहब कोई पहाड़ी लड़की इधर से अभी मनमाड से चढ़ी थी ? मुझे पता नहीं ! अब मैं डर गया ,बहुत डर गया ,लगा मुझे किसी को जवाब देना है ,फिर मैं सोचने लगा ,एक पहचान थी ,फिर मुझे अपने आप पे गुस्सा आने लगा ,इतना नीच हूँ मैं , वहीं खड़ा हुआ कितना कुछ सोच गया ,उसकी मौत तक , मैं अपनी सीट पे आ के बैठ गया ,मौलाना जी ने पूछ लिया ,क्यों भाई मेडम चढ़ नहीं सकी ,फिर तो आप को उतर के मनमाड जाना होगा ! मैं खामोश क्या बोलता ,सभी मुझ से कुछ ना कुछ पूछे जा रहे थे ,मेरे पास कोई जवाब नहीं था ,एक साहब बोल पड़े ,कमाल करते हैं आप को कुछ नहीं मालूम झांसी में तो आप हाथ में हाथ डाले घूम रहे थे ,और अब कह रहे हैं आप उसका नाम ही नहीं मालूम ,यह कैसा रिस्ता था ?
ट्रेन जलगाँव में रुकी ,मैं सच में उतरना नहीं चाहता था ,लेकिन लोगो के कहने पे मैं उसका समान ले कर उतार गया ,तभी देखा गार्ड के डिब्बे से वह निकल रही है। मैं भाग के उसके पास गया गार्ड इसकी तरफ देख रहा था ,और कह रहा था ,गो गो गो फ़ास्ट फिर क्या था ,हम दोनों भाग के अपने डब्बे में पहुंचे ,तभी मौलाना जी ने पूछ लिया ,क्यों भाई मिल गयी मोहतरमा ,तभी मेरे पीछे से बेला आ गयी ट्रेन तेज हो चुकी थी ,वह खिड़की के पास बैठ गयी ,और उसने मुझसे माफी मांगी ,उसकी आँखे नाम थी ,अब मुझसे देखा नहीं गया , मैंने उसे अपने गले लगा लिया । लोगो ने यह देख के ,सोचा होगा हमारा रिस्ता क्या है ,क्या हो सकता है ,और क्या नहीं हो सकता ? अब वह मुझसे मेरे बारे में काफी कुछ जानना चाह रही थी ,मैंने अपने बारे में इतना कुछ बता दिया ,कब कल्याण स्टेशन आया पता ही नहीं चला ,मुझे यहीं उतरना था ,और दूसरी गाड़ी पकड़ के पूना जाना था ,मैं अपना समान ले कर ट्रेन से बाहर आ गया वह अंदर ही बैठी रही ,मैं खिड़की के पास आया उससे अलबिदा ली हाथ मिलाया ,उसके पास
एक किताब थी वह उसने मुझे दी और मैंने उसे थैंक दिया और चल दिया।
यह ट्रेन का सफर मुझे हमेसा याद रहा ,जिसको सुनाया ,उन सब ने बहुत ही गलत ढंग से लिया ,लेकिन वह किताब जो उसने मुझे दिया था ,उसके बारे में मैंने किसी को नहीं बतलाया ,वह बुक क्या थी यह किताब उसकी लिखी हुई थी ,जिसमे उसकी पूरी कहानी थी ,किताब के पीछे उसकी फोटो भी थी। उस किताब का नाम था , कॉल गर्ल .........................।
गुरुवार, नवंबर 13, 2014
पुराने दोस्त
उनको गुलज़ार साहब ,कैलाश कह बुलाते हैं ,दोस्त हैं स्ट्रगल पीरियड के , आज भी वैसा ही रिस्ता है। मैंने उनका नाम पहली बार तब सुना ,जब गुलज़ार साहब का मुख्य सहायक था। हुआ कुछ इस तरह ,दो गाने
फिल्म इजाजत के रिकार्ड हो चुके थे। गुलज़ार साहब ऑस्ट्रलिया जा चुके थे। और गुलज़ार साहब ,कैलाश को
मुख्य सहायक लेना चाहते थे ,यह बात मुझे बलराज टांक के जरिये कहा गया ,मैं एक पल को खामोश हो गया
मैं दुखी था उनका साथ जो छूठ गया , बीस सालो बाद एक दिन मेरे पास फिर से गुलज़ार साहब का फोन आया कहने कहने लगे ,मुझे कैलाश जी का पता निकाल के दो वह कहाँ है ? मैं कुछ समझा नहीं ,फिर
उन्हों ने कहा ,उसका मोबाइल नंबर तो है ,लेकिन उठा नहीं रहा है , मुझे एक डर लगने लगा , कहीं ……।
थोड़ी देर अपने में रहा ,कैसे उनका पता खोजूं ,एक दोस्त फोन किया उसने कहा, कुछ साल भर पहले
मेरी मुलाक़ात हुई थी उनसे ,एक नंबर दिया था उन्होंने ,मैं देता हूँ ,फिर उसने एक बात और कह दिया ,सुना
है उनकी मौत हो गयी ,मैं भी डर गया। थोड़ी देर गुमसुम बैठा रहा ,यह खबर मैं कैसे दूंगा गुलज़ार साहब को
यही सोच मुझे घेरे हुए थी ,
कोई एक घंटे के बाद अहमद का मैसेज आया जिसमें कैलाश नंबर लिखा हुआ था , सोचने लगा फोन
कैसे करूँ ,मैं तो उनकी आवाज भी चुका था ,फिर भी हिम्मत कर के फोन किया दो घंटी के बाद किसी ने उठाया ,मैंने कहा ,आप कैलाश जी बोल रहे हैं , हाँ मैं, मैं कैलाश ही बोल रहा हूँ , कैलाश आडवाणी जो गुलज़ार
साहब के सहायक हुआ थे। हाँ भाई मैं वही बोल रहा हूँ ,कैलाश आडवाणी ,हाँ बोलिए क्या काम है ?
मैंने फिर थोड़ी देर बाद ,गुलज़ार साहब फोन कर के बता दिया यह कैलाश नंबर है। ……
फिर क्या हुआ कैलाश मिले गुलज़ार साहब से ……………… दोस्तों में जो मन मुटाव था वह दूर हो
गया ………………………………………।
फिल्म इजाजत के रिकार्ड हो चुके थे। गुलज़ार साहब ऑस्ट्रलिया जा चुके थे। और गुलज़ार साहब ,कैलाश को
मुख्य सहायक लेना चाहते थे ,यह बात मुझे बलराज टांक के जरिये कहा गया ,मैं एक पल को खामोश हो गया
मैं दुखी था उनका साथ जो छूठ गया , बीस सालो बाद एक दिन मेरे पास फिर से गुलज़ार साहब का फोन आया कहने कहने लगे ,मुझे कैलाश जी का पता निकाल के दो वह कहाँ है ? मैं कुछ समझा नहीं ,फिर
उन्हों ने कहा ,उसका मोबाइल नंबर तो है ,लेकिन उठा नहीं रहा है , मुझे एक डर लगने लगा , कहीं ……।
थोड़ी देर अपने में रहा ,कैसे उनका पता खोजूं ,एक दोस्त फोन किया उसने कहा, कुछ साल भर पहले
मेरी मुलाक़ात हुई थी उनसे ,एक नंबर दिया था उन्होंने ,मैं देता हूँ ,फिर उसने एक बात और कह दिया ,सुना
है उनकी मौत हो गयी ,मैं भी डर गया। थोड़ी देर गुमसुम बैठा रहा ,यह खबर मैं कैसे दूंगा गुलज़ार साहब को
यही सोच मुझे घेरे हुए थी ,
कोई एक घंटे के बाद अहमद का मैसेज आया जिसमें कैलाश नंबर लिखा हुआ था , सोचने लगा फोन
कैसे करूँ ,मैं तो उनकी आवाज भी चुका था ,फिर भी हिम्मत कर के फोन किया दो घंटी के बाद किसी ने उठाया ,मैंने कहा ,आप कैलाश जी बोल रहे हैं , हाँ मैं, मैं कैलाश ही बोल रहा हूँ , कैलाश आडवाणी जो गुलज़ार
साहब के सहायक हुआ थे। हाँ भाई मैं वही बोल रहा हूँ ,कैलाश आडवाणी ,हाँ बोलिए क्या काम है ?
मैंने फिर थोड़ी देर बाद ,गुलज़ार साहब फोन कर के बता दिया यह कैलाश नंबर है। ……
फिर क्या हुआ कैलाश मिले गुलज़ार साहब से ……………… दोस्तों में जो मन मुटाव था वह दूर हो
गया ………………………………………।
सोमवार, अक्तूबर 06, 2014
चुप हो जा ………
मौत ,कब आयेगी किसी को नहीं मालूम ,वह उसकी माँ थी।
लेकिन बेटा क्या करता ,घर से कहीं बाहर जा नहीं सकता
हर पल एक डर घेरे रहता ,अभी तक माँ ने अपनी मौत को
अपने पास नहीं आने दे रही थी ,हमेसा कहती मैं अभी और
दिन ज़िंदा रहूँ गी ,रोज -रोज नई -नई फ़रमाईश होती यह खिलावो
वह बना के लाओ ,घर वाले तंग आ गए थे ,कभी बहु आ कर कहती
मेरी सास, अब तो मर जावो ,माँ सोचती ,जैसे वह वहाँ से जाती
उसका चेहरा हंस पड़ता ,उसके अंदर से एक आवाज आती ,मेरे
बेटा मुझसे छीन लिया और अब कहती मर जावो ,९५ साल की
माँ सब जानती है ,बस इन सब को मेरी सेवा ना करनी पड़े ,माँ जी
बिस्तर पे ही पड़ी रहती हैं एक ही करवट सोती हैं तो पीठ पे बेड सोर
हो चुका है बहुत तकलीफ है ,एक पल बैठने को कहती है ,बिठा दो
गिन के पांच से छे मिनट के बाद कहती हैं ,लिटा दो ,पूरा -दिन, पूरी
रात यही चलता है। घर वाले तंग आ चुके थे भगवान से प्रार्थना करते
हे प्रभु माँ को जल्दी मौत दे दो ,जब भगवान ने उनकी बात नहीं तब एक रात
दादी के कमरे में बाप -बेटा आ गए, दादी आँख बंद किये लेती थी
बेटा और पोता आ के कहते दादी बहुत हो गया ,बहुत जी ली
हैं आप , अब, अब हम लोगों को जीने दो ,जल्दी से यह जान छोड़ दो.
दादी मुस्कराती है ,और सोचती है सारी जिन्दगी मैंने तुम लोगो की
सेवा में निकल दिया और आज दो महीने से मेरी देख -भाल कर रहे हो
तो मेरी मरने की बात , सोच रहे हो , लेकिन मरने वाली नहीं। .
एक दिन ,यह सब करते -करते तंग आगयी ,बहु ! वह कैसे भी
कर के सास से छुटकारा पाना चाहती थी ,चार महीनों से इतनी तंग आ
गयी थी ,खुद मरने की बात सोचने लगी थी ,पति -पत्नी रिश्ते में खटास
आ गयी थी ,इतने दोनों चिड़चिड़े हो गए थे ,एक दूसरे को काट खाने को
दौड़ते हैं।
एक दिन रात में ,बहु ने ढेर सारी नीद की गोलियाँ एक ग्लास में
पानी में मिला के सास को जबरदस्ती पिला दिया ,पूरा पीने के बाद सास
ने बहु की तरफ देखा और डूबती हुई आवाज में बोल पड़ी , कर दिया अपना खेल
और सुन ,ले यह चाभी मेरे बक्से की ,सुनील को मत बताना ………। यह
कहते -कहते वह सो गयी। बहु अपने कमरे में आई ,देखा पति सो रहा है
वह सास के बिस्तर के नीचे से एक टुटा-फूटा बक्सा निकाला और खोल के देखा
तो उसकी आँखे खुली की खुलीरह गयी ,सोने के पांच बिस्कुट पड़े थे यह देख के
उसकी आँखे भर आयी ,और साथ में एक चिठ्ठी थी ,जिसे देख के बहु ने पढ़ा
सुबह हुई सास मर चुकी थी ,घर खुशी के मारे रो रहे थे ,माँ को शमशान
घाट ले जाने की तैयारी हो चुकी थी। नाती ने आ के पापा को कहा ,पापा दादी
अभी ज़िंदा है तुझे कैसे मालुम ? उनकी आँखे खुली हैं ,बेटा मरने बाद कभी कभी
आँखे खुली ही रहती ,कहीं हम उन्हें ज़िंदा तो नहीं जला रहे है ?
चुप हो जा …………………… यह मत किसी को नहीं बोलना
लेकिन बेटा क्या करता ,घर से कहीं बाहर जा नहीं सकता
हर पल एक डर घेरे रहता ,अभी तक माँ ने अपनी मौत को
अपने पास नहीं आने दे रही थी ,हमेसा कहती मैं अभी और
दिन ज़िंदा रहूँ गी ,रोज -रोज नई -नई फ़रमाईश होती यह खिलावो
वह बना के लाओ ,घर वाले तंग आ गए थे ,कभी बहु आ कर कहती
मेरी सास, अब तो मर जावो ,माँ सोचती ,जैसे वह वहाँ से जाती
उसका चेहरा हंस पड़ता ,उसके अंदर से एक आवाज आती ,मेरे
बेटा मुझसे छीन लिया और अब कहती मर जावो ,९५ साल की
माँ सब जानती है ,बस इन सब को मेरी सेवा ना करनी पड़े ,माँ जी
बिस्तर पे ही पड़ी रहती हैं एक ही करवट सोती हैं तो पीठ पे बेड सोर
हो चुका है बहुत तकलीफ है ,एक पल बैठने को कहती है ,बिठा दो
गिन के पांच से छे मिनट के बाद कहती हैं ,लिटा दो ,पूरा -दिन, पूरी
रात यही चलता है। घर वाले तंग आ चुके थे भगवान से प्रार्थना करते
हे प्रभु माँ को जल्दी मौत दे दो ,जब भगवान ने उनकी बात नहीं तब एक रात
दादी के कमरे में बाप -बेटा आ गए, दादी आँख बंद किये लेती थी
बेटा और पोता आ के कहते दादी बहुत हो गया ,बहुत जी ली
हैं आप , अब, अब हम लोगों को जीने दो ,जल्दी से यह जान छोड़ दो.
दादी मुस्कराती है ,और सोचती है सारी जिन्दगी मैंने तुम लोगो की
सेवा में निकल दिया और आज दो महीने से मेरी देख -भाल कर रहे हो
तो मेरी मरने की बात , सोच रहे हो , लेकिन मरने वाली नहीं। .
एक दिन ,यह सब करते -करते तंग आगयी ,बहु ! वह कैसे भी
कर के सास से छुटकारा पाना चाहती थी ,चार महीनों से इतनी तंग आ
गयी थी ,खुद मरने की बात सोचने लगी थी ,पति -पत्नी रिश्ते में खटास
आ गयी थी ,इतने दोनों चिड़चिड़े हो गए थे ,एक दूसरे को काट खाने को
दौड़ते हैं।
एक दिन रात में ,बहु ने ढेर सारी नीद की गोलियाँ एक ग्लास में
पानी में मिला के सास को जबरदस्ती पिला दिया ,पूरा पीने के बाद सास
ने बहु की तरफ देखा और डूबती हुई आवाज में बोल पड़ी , कर दिया अपना खेल
और सुन ,ले यह चाभी मेरे बक्से की ,सुनील को मत बताना ………। यह
कहते -कहते वह सो गयी। बहु अपने कमरे में आई ,देखा पति सो रहा है
वह सास के बिस्तर के नीचे से एक टुटा-फूटा बक्सा निकाला और खोल के देखा
तो उसकी आँखे खुली की खुलीरह गयी ,सोने के पांच बिस्कुट पड़े थे यह देख के
उसकी आँखे भर आयी ,और साथ में एक चिठ्ठी थी ,जिसे देख के बहु ने पढ़ा
सुबह हुई सास मर चुकी थी ,घर खुशी के मारे रो रहे थे ,माँ को शमशान
घाट ले जाने की तैयारी हो चुकी थी। नाती ने आ के पापा को कहा ,पापा दादी
अभी ज़िंदा है तुझे कैसे मालुम ? उनकी आँखे खुली हैं ,बेटा मरने बाद कभी कभी
आँखे खुली ही रहती ,कहीं हम उन्हें ज़िंदा तो नहीं जला रहे है ?
चुप हो जा …………………… यह मत किसी को नहीं बोलना
गुरुवार, जून 26, 2014
मंगलवार, जून 24, 2014
safar
एक सफर था मेरा
उनका भी एक सफर थाहम साथ जिए फिर भी अलग -थलग
सोच की एक बूँद ,चिपक कर मेरे साथ
रंग -रूप बिलकुल उनका था
पर उठना -बैठना मेरे साथ था
वह आज बहुत बड़ा आदमी हो गया
अक्सर अपने माँ -बाप को खोजता
मुझ तक आता है
पकड़ कर बहुत रोता है हाथ मेरा
मैं खामोश सा चुप कराता हूँ उसको
तू बरसात की रात मुझे मिला था
खार डांडा की रोड पे
गुरुवार, जून 19, 2014
jadu
जादूगर था वह ,खुद भी कहता
एक पल में किसी को भी फ़ांस सकता
फ़साना मेरी आदत थी ,आज तक जो है
मुझे लोग कई नामों से बुलाते
असली नाम मैं भी भूल चुका हूँ
इसी नाम को पहचानता हूँ मैं भी
जो बुलाते हैं लोग ,कोई कहता नटवर
कोई कान्हा कहता ,चुरा लेता हूँ पल भर में किसी का दिल
ढेरो राधा हैं मेरी जिंदगी में ,साल में किसी एक का नंबर आता
वह राधा नहीं थी ,वह रुक्मणी थी
वह मेरी बदमाशिओं को जानती थी
कभी लगता जलते दिल को हवा देती है वह
एक बार मेरा खेल उसने खुद -बा -खुद देख लिया
अंदर एक डर ज्वार आने लगा ,
उसने मेरा साथ दिया वह जानती थी
घर इसी काम से ही चलता है
एक पल में किसी को भी फ़ांस सकता
फ़साना मेरी आदत थी ,आज तक जो है
मुझे लोग कई नामों से बुलाते
असली नाम मैं भी भूल चुका हूँ
इसी नाम को पहचानता हूँ मैं भी
जो बुलाते हैं लोग ,कोई कहता नटवर
कोई कान्हा कहता ,चुरा लेता हूँ पल भर में किसी का दिल
ढेरो राधा हैं मेरी जिंदगी में ,साल में किसी एक का नंबर आता
वह राधा नहीं थी ,वह रुक्मणी थी
वह मेरी बदमाशिओं को जानती थी
कभी लगता जलते दिल को हवा देती है वह
एक बार मेरा खेल उसने खुद -बा -खुद देख लिया
अंदर एक डर ज्वार आने लगा ,
उसने मेरा साथ दिया वह जानती थी
घर इसी काम से ही चलता है
शुक्रवार, जून 06, 2014
९१ कोज़ी होम
मुझे ,कुछ अर्से से यह लगने लगा ,अपने फ्लॉप होने की वजहों का पता करूँ ,
मैं गुलज़ार साहब का सहायक बना, बतौर सहायक निर्देशक ,फिल्म थी अचानक
यह गुलज़ार साहब की तीसरी फिल्म बतौर निर्देशक थी ……………। क्या सीखा
क्या नहीं सीखा ,एक उम्र गुज़ार दी उनके साथ ,उन फिल्मों के नाम गिना देता हूँ
जिनमें मैं उनका सहायक रहा . . फिल्म अचानक ,खुश्बू ,मौसम ,आंधी ,मीरा ,किनारा
किताब ,अंगूर ,लिबास (अब मैं मुख्य सहायक था ) नमकीन ,हु तू तु ............११ फिल्मे .
मैंने कुछ फिल्मे की जिनके नाम है ,नागफनी ,ऐ मेरी बेखुदी ,बेलगाम ,थारी -म्हरी
कुछ सीरियल्स हैं ,किस्सा शांति का , वाह मजा आ गया , देहलीज एक मर्यादा
अब आप लोगो को कुछ सूझता हो तो कहें ?
सोमवार, मार्च 31, 2014
गुरुवार, मार्च 27, 2014
मंगलवार, जुलाई 02, 2013
अर्जुन
...............हम दोनों में ख़ामोशी छाई रही ,जैसे हम दोनों ही कुछ तलाश कर रहे हो, कुछ कहने के लिए ........मैंने ही पूछा ....इस युद्ध में तुम अकेले ही थे या किसी ने तुम्हारा साथ दिया .......कुछ सोच के अर्जुन ने कहा सभी मुझसे किनारा कर चुके थे ,सिर्फ एक इंसान था जो मेरे साथ खडा था ........मुझे हिम्मत भी देता था .....और मेरे घर को भी सभालता था ,मेरे जानवर को देखता था उनको खिलाना -पिलाना सभी काम वह करता था .......अभी तक मुझे नहीं समझ आ रहा था वह कौन था ?........मैंने कहा उस वक्त तो पूरा गाँव ही तुम्हारा दुश्मन हो चूका था ,एक तरह से सभी ने तुम से वाई-काट कर लिया था ........फिर वह कौन था ......भगू .....
भगू हम दोनों के बचपन का दोस्त था ...हम तीनो ही साथ घूमते थे वह गरीब था पढ़ -लिख सका नहीं ......बस आठ क्लास ही पास था .........अपने स्कूल में चपरासी की नौकरी दे दी थी .....
फिर मैं सोचता रहा ........भगू से अब जब मिलता हूँ वह एक ही बात कहता है ......अर्जुन ने मुझे मिस -यूज किया ........यह सोच सभी की थी .....अर्जुन सभी को इउज करता है (यहाँ एक बात बता दूँ आज कल गाँव में भी बोल -चल की भाषा में अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल होता है )
यह सवाल मैं पूछ नहीं सकता था ....हो सकता है ,इसका जवाब वह ना में ही देता .....अर्जुन ने जम्हाई ली
और मैंने चलने की इज्जात मांग ली ...........हम लोग घर से बाहर निकले तरच की रौशनी दिखा रहा था अर्जुन ...तभी एक चलने की आवाज आई ..........अर्जुन ने मुझे धका दिया ...और तुरंत अर्जुन ने अपनी रिवाल्वर निकाल ली और तीन चार फायर किया .....और टार्च की रोशनी में उधर देखने लगा जिधर से गोली चली थी ...पर कोई नज़र नहीं आया .....मुझे कहा आप घर जाए ......इस अंधेरी रात में किसे खोजे गें ......
मैं घर चला आया मेरी बुआ डर के मारे बैठी हुई थी .....बुआ ने पूछा अर्जुन काहे गोली चलावत रहा .....एक ठु पटाका बचा रहा ......तरु ने कहा अम्मा बजाय लें ....बस वही पटाका बजत अर्जुन गोली चलाने लाग ......बहुत डरपोक है ......
मैं अपने बिस्तर पे लेट के सोचने लगा .........अपना अस्तित्व बचाने के लिए क्या -क्या नहीं करना पड़ता है ...
कब आँख लग गयी ......मुझे पता ही नहीं चला
भगू हम दोनों के बचपन का दोस्त था ...हम तीनो ही साथ घूमते थे वह गरीब था पढ़ -लिख सका नहीं ......बस आठ क्लास ही पास था .........अपने स्कूल में चपरासी की नौकरी दे दी थी .....
फिर मैं सोचता रहा ........भगू से अब जब मिलता हूँ वह एक ही बात कहता है ......अर्जुन ने मुझे मिस -यूज किया ........यह सोच सभी की थी .....अर्जुन सभी को इउज करता है (यहाँ एक बात बता दूँ आज कल गाँव में भी बोल -चल की भाषा में अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल होता है )
यह सवाल मैं पूछ नहीं सकता था ....हो सकता है ,इसका जवाब वह ना में ही देता .....अर्जुन ने जम्हाई ली
और मैंने चलने की इज्जात मांग ली ...........हम लोग घर से बाहर निकले तरच की रौशनी दिखा रहा था अर्जुन ...तभी एक चलने की आवाज आई ..........अर्जुन ने मुझे धका दिया ...और तुरंत अर्जुन ने अपनी रिवाल्वर निकाल ली और तीन चार फायर किया .....और टार्च की रोशनी में उधर देखने लगा जिधर से गोली चली थी ...पर कोई नज़र नहीं आया .....मुझे कहा आप घर जाए ......इस अंधेरी रात में किसे खोजे गें ......
मैं घर चला आया मेरी बुआ डर के मारे बैठी हुई थी .....बुआ ने पूछा अर्जुन काहे गोली चलावत रहा .....एक ठु पटाका बचा रहा ......तरु ने कहा अम्मा बजाय लें ....बस वही पटाका बजत अर्जुन गोली चलाने लाग ......बहुत डरपोक है ......
मैं अपने बिस्तर पे लेट के सोचने लगा .........अपना अस्तित्व बचाने के लिए क्या -क्या नहीं करना पड़ता है ...
कब आँख लग गयी ......मुझे पता ही नहीं चला
सोमवार, जुलाई 01, 2013
पंडित जी की बातें सुन के ,बहुत अच्छा लगा ......मैंने फिर से पूछा कहाँ जा रहें है (अवधी कम बोलते हैं )जाना कहाँ है मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक ........खेत देखने जा रहा हूँ ....अन्धेरा हो रहा है ......आप भी घर की तरफ चले ,....चलते -चलते बोल पड़े मेड -मेड जाइएगा ....और हाँ गाँव में एक डंडा लेकर चलना जरूरी है .......मैं उनकी बात सुनते -सुनते आगे बढने लगा ......एक बात बता दूँ मेड पे चलना थोड़ा मुश्किल काम ही है ..
रात का एक पहर बीत चुका था .....यही कोई करीब नौ बज चुका था मेरे मोबाईल पे अर्जुन का फोन आया ......कहने लगा ....हमारी तरफ आ जाओ ......ठीक कह के फोन रख दिया .....चलने को हुआ तो बोल पड़ी
इतनी रात में कहाँ जा रहे हो ? मैं कुछ बोला नहीं ......बस इतना ही कहा ....आता हूँ जल्दी आ जाना .....हूँ कह के चल दिया हाथ में टार्च की रौशनी में अर्जुन के घर की तरफ बढने लगा ....गरमी के दिन थे ...रात में जब हलकी सी नमी आती है ...तब अपने बिलों से साँप -बिच्छू निकलते हैं ...यह डर तो मुझे था ही इसी लिए बहुत सभल -सभल के चल रहा था ......
अर्जुन अपने घर के दरवाज़े पे ही मिल गया ......हम दोनों घर के अन्दर पहुँच गये ....घर में बिजली की रोशनी थी ,पंखा चल रहा था ....यह देख के मैं बहुत खुश हो गया ......मैंने छूटते पूछा बिजली है हमारे यहाँ तो नहीं है .....इनवर्टर पे है .....रात में बाहर सोना मुश्किल है .....कमरे में सोने के लिए पंखा तो चाहिए ही ......
अर्जुन ने पूछा खाना तो खा लिया होगा ? हाँ खाना खाए तो देर हो गयी क्या लेंगे ...सब कुछ है मैं समझ गया शायद यह शराब की बात कर रहें है .......तभी अर्जुन बोल पड़े दूध की बात कर रहा हूँ आम और दूध ले ...देसी गाय का दूध है ...........
सोचा अर्जुन से अब क्या पूछूँ .....? सब कुछ तो जान ही लिया ....अर्जुन ने किस तरह महाभारत का युद्ध लड़ा था .....
रात का एक पहर बीत चुका था .....यही कोई करीब नौ बज चुका था मेरे मोबाईल पे अर्जुन का फोन आया ......कहने लगा ....हमारी तरफ आ जाओ ......ठीक कह के फोन रख दिया .....चलने को हुआ तो बोल पड़ी
इतनी रात में कहाँ जा रहे हो ? मैं कुछ बोला नहीं ......बस इतना ही कहा ....आता हूँ जल्दी आ जाना .....हूँ कह के चल दिया हाथ में टार्च की रौशनी में अर्जुन के घर की तरफ बढने लगा ....गरमी के दिन थे ...रात में जब हलकी सी नमी आती है ...तब अपने बिलों से साँप -बिच्छू निकलते हैं ...यह डर तो मुझे था ही इसी लिए बहुत सभल -सभल के चल रहा था ......
अर्जुन अपने घर के दरवाज़े पे ही मिल गया ......हम दोनों घर के अन्दर पहुँच गये ....घर में बिजली की रोशनी थी ,पंखा चल रहा था ....यह देख के मैं बहुत खुश हो गया ......मैंने छूटते पूछा बिजली है हमारे यहाँ तो नहीं है .....इनवर्टर पे है .....रात में बाहर सोना मुश्किल है .....कमरे में सोने के लिए पंखा तो चाहिए ही ......
अर्जुन ने पूछा खाना तो खा लिया होगा ? हाँ खाना खाए तो देर हो गयी क्या लेंगे ...सब कुछ है मैं समझ गया शायद यह शराब की बात कर रहें है .......तभी अर्जुन बोल पड़े दूध की बात कर रहा हूँ आम और दूध ले ...देसी गाय का दूध है ...........
सोचा अर्जुन से अब क्या पूछूँ .....? सब कुछ तो जान ही लिया ....अर्जुन ने किस तरह महाभारत का युद्ध लड़ा था .....
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